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जय श्री राम

रा = राधा + माँ = माधव

 || जय श्री राधा ||

भगवान् है या नहीं ?

          

Image by GLady from Pixabay

                                                  

विषय सूचि

0.प्रस्तावना

१.अंत

२.हम किस लिए बने है

३.हमें अपने आप को कैसे समझना है

४.विश्वास जरुरी है

५.हमारा शरीर


0. प्रस्तावना

इस किताब को लिखने का उद्देश्य यह है की भगवान क्या है किसलिए है या नहीं है ? सालों से यही सवाल बार बार सुनने को मिलता है, कहा है भगवान् ? जब यह दुनिया बनी थी या बनाई गयी थी तो क्या हम वहा थे ,नहीं हमें नहीं पता की दुनिया कैसे बनी ,हम इस दुनिया में क्या कर रहे है, क्यों हम सुबह उठते है, खाना खाते है , काम करते है और रात को सो जाते है, दुसरे दिन फिरसे वही जीवन क्यों ? हमारे मन में इसी तरह के लाखो सवाल है, इन्ही सवालों का जवाब आपको इस इ-बुक में मिलेगा.


चलिए शुरू करते है

एक अनोखा सफ़र


१.अंत

जब किसी चीज या वस्तुका अंत होता है तो उसके द्वारा नयी वास्तुका निर्माण भी होता है. यह हम अच्छी तरह जानते है ,जैसे की एक पेड़ कटता है तो उसका अंत होता है. लेकिन उसके द्वारा बनाया गया फर्नीचर ,पेपर या उसके दिए गए फल द्वारा एक पौधे का निर्माण होता है, इसमें एक समझने वाली बात यह है की फुर्निचर अपने आप नहीं बना ,नहीं पेपर अपने आप बना ,ऐसा हो सकता है की वृक्ष का फल निचे गिरा और दुसरे पौधे को जन्म दिया .लेकिन जिस तरह से इस ब्रम्हांड को बनाया गया, तो ऐसा नहीं हो सकता की किसीने इसे बनाया न हो और यह अपने आप बन गया. इस दुनिया में जितनी भी प्राकृतिक चीजे है, उन सबकी एक अलग पहचान है. सारी चीजे अपने आप में एक रहस्य है. जैसे जमीन ,जमीन में आप कोई भी पौधा लगाओ धीरे धीरे वह बड़ा कोने लगता है, कुछ समय बाद वह पौधा फल, फुल देने लगता है. लेकिन ऐसा क्यों होता है ? क्योकि भगवान है. भगवान ने इस दुनिया की रचना ही ऐसे की है की सारी चीजे एक दुसरे के साथ जुडी हुई है. अगर इसमें से एक भी चीज इस दुनिया से ख़त्म हो जाय तो हमें बहोत सारी मुसीबतों का सामना भी करना पड सकता है, यह दुनिया के ख़त्म होने का संकेत भी हो सकता है.

        इसलिए भगवान ने दिन और रात ,सुख और दुःख,अच्छा और बुरा इस तारह के अनेको उदहारण है जिनकी रचना भगवान ने की है और यह दुनिया के अस्तित्व के लिए जरुरी है.अंत एक नयी वस्तुके निर्माण के लिए जरुरी है. भगवान ने हमें बनाया ही इस तरह है की हम ऐसे समय में पैदा होते हे जिस समय को हमारी जरुरत होती है. हम पैदा ही इसलिए होते है की हम दुसरो की मदत कर सके .हमने देखा है हम छाते का भी इस्तेमाल तब करते है जब बारिश हो रही होती है. हमारा जन्म सिर्फ अपने आपको और अपने परिवार को संभालना ही नहीं बल्कि हमारे आस पास जो पर्यावरण है, जो लोग है, जानवर है ,पशु पक्षी है उनकी रक्षा और देखभाल करना भी है. हमारे अन्दर बहोत सारी ऐसी शक्तिया है जिससे हम इस दुनिया को बदल सकते है और इसे बदलनेकी जरुरत है. हम जो कर सकते है वह पशु पक्षी नहीं कर सकते और जो पशु पक्षी कर सकते है वो हम नहीं कर सकते .

        हम सबको मिलकर इस दुनिया को बदलना है हमें एक ऐसी दुनिया बनानी है जिसमे किसीको यह सोचने की जरुरत न पड़े की कल क्या होगा ,कल खाना मिलेगा की नहीं, कल कहा रहेंगे ,और भी बहोत कुछ है. समय जैसे बीतता जा रहा है वैसे प्रदुषण ,आबादी, महगाई बढ़ रही है. अंत की शुरुआत हो गयी है.और इस दुनिया का अंत हो के रहेगा .लेकिन हमें चाहिए कि हम अपने आस पास होने वाले प्रदुषण को रोके और सबसे बड़ी समस्या है बढती हुई आबादी इसे काबू में रखने से हमारी आधे से ज्यादा समस्याय ख़त्म हो जायगी.जितनी कम लोकसंख्या होगी उतना फायदा है. इससे महगाई कम होगी ,कम प्रदुषण होगा और इसके अनेको फायदे है.जिसको हमें समजने की जरुरत है.


२.हम किस लिए बने है

हमारे मन में अक्सर यह सवाल जरुर आता है की हम किस लिए बने है ? क्यों बने ? किसने हमें बनाया ? और हमने जन्म लेकर क्या किया इन्ही सवालों का जवाब आज हमें इस पाठ से मिलने वाला है. चलो शुरू किया जाय. हर किसीका जन्म एक अनोखे कार्य करने के लिए हुआ है. जैसे सूरज ,सूरज का काम है खुद रोशन रहकर दुसरो को रौशनी प्रदान करना. इसी तरह हम इन्सान को भी भगवान ने एक मकसद के साथ भेजा है, लेकिन हम अपने आप को ही इतना भूल गए है की हमें कोनसा कार्य दिया है ,क्या याद रहेगा. भगवान की सबसे बेहतर रचनाओ में से हम इन्सान है. भगवान ने हमें इतना शक्तिशाली और बुद्धिमान बनाया है की आज हमें यह सोचने की जरुरत नहीं पड़ती की हम क्या क्या कर सकते है. हमें करना क्या है ,इसमें इतना सोचने वाली बात कोई नहीं है. हमें सिर्फ एक ही काम करना है और वह है खुद बेहतर बनना और दुसरो को बेहतर बनने में उनकी मदत करना, यह काम इतना आसन भी नहीं और हम न कर सके इतना मुश्किल भी नहीं. एक मूर्ति अपने आप नहीं बनती , उसे बनने में मिटटी, पानी, एक मूर्तिकार और जरुरी अवजारो की जरुरत पड़ती है. ठीक उसी तरह हम भी अपने आप नहीं बनते , हमें सफल बनाने में हमारे मा-बाप , हमारे गुरु , मित्र और भी लोग हमारी हर कदम मदत करते है . हम एक ऐसे समाज में जी रहे है जिसमे हमें कोई भी कार्य करने से पहले कुछ मिले न मिले लेकिन सलाह जरुर मिलतीं है . सलाह भी हमें दो तरह के आदमी बताते है पहला आदमी वह होता है जो उस काम को करके असफल हुआ हो और दूसरा इन्सान वह होता है जो उस काम में माहिर हो और उसे वह काम करना पसंद हो. इसमें दोनों ही इन्सान महत्वपूर्ण है, वो कैसे ? चलिए जानते है. 

        पहला इन्सान जो असफल हुआ वः हमें सिखाता है की हमें क्या नहीं करना और दूसरा यह बताता है की क्या करने से हम सफल होंगे. यहाँ दोनों ही जरुरी है. भगवान् ही एक ऐसी शक्ति है जो देने का काम करती है .जब हमें किसी की जरुरत पड़ती है तब हम उसे याद करते है, और ऐसा अक्सर होता है की, जिसे हम याद करते है अचानक उनसे हमारी मुलाकात हो जाती है या उससे बात हो जाती है. लेकिन ऐसा क्यों होता है क्योकि हम एक ऐसे हॉटस्पॉट से जुड़े हुए है जिसका सिर्फ एक ही पासवर्ड है और वह है “दिल से चाहत” और उस हॉटस्पॉट का नाम भगवान् है. इस हॉटस्पॉट में एक खास बात है और वह है आप इसे कही पर भी इस्तेमाल कर सकते है और न इसके लिए पैसो की भी जरुरत नहीं पड़ती है. हमारा जन्म सिर्फ आबादी बढाने के लिए नहीं हुआ बल्कि हमें खुद समझना चाहिए की जो चीज जितनी ज्यादा मात्र में होती है उसी चीज की कीमत उतनी ही कम हो जाती है. और हम इन्सान यही भूल कर रहे है. हमने आबादी इतनी बढ़ा दी है की कुछ समय में चिडिया घर में जानवरों की जगह इन्सान नोकरी करते दिख जायेंगे. और उस समय कोई जॉब भी बहोत मुश्किल से मिगेली और सैलरी भी इतनी कम मिलेगी की दो वक्त का खाना भी मुश्किल से मिल पायेगा. भगवान् द्वारा या भगवान् ने हमें बनाया इसमें कोई शक नहीं .भगवान् हर जगह है. हमारे अन्दर भी बस हमें पहचानने की जरुरत है. जिस दिन हम अपने अन्दर के भगवान् को पहचान जायेंगे उस दिन से हमारी जिंदगी बदल जाएगी .हम भगवान् द्वारा इसलिए बनाये गए ताकि हम यह देख पाए की क्या देखने योग्य है, आज कल हम सब उल्टा काम कर रहे है.जो नहीं सुनना वह सुनेगे ,जो नहीं देखना वही देखेंगे और जो काम नहीं करना है उसे ही हम करते जा रहे है. हमें इन सब विचारों को अलग रखकर अपने आप को देखना चाहिए, सुनना चाहिए और खुदको अपने अन्दर महसूस करना चाहिए. जब आप यह सब कम करेंगे तो आप जान पाओगे की हम किस लिए बने है. 


३.हमें अपने आप को कैसे समझना है

ध्यान, ध्यान द्वारा हमें अपने बारे में पता चलेगा जैसे किसीको या किसीके बारे में जानना होता है, तो हम उसे जानने के लिए इन्टरनेट की सहायता लेते है और हमारे शरीर के अन्दर भी एक इन्टरनेट है .बस हमें उसके लिए एक रिचार्ज की जरुरत है ,चलिए जानते है इस बॉडी रिचार्ज के बारे में .....

        ध्यान, ध्यान एक रिचार्ज है .जिसके लिए आपको कोई पैसे देने की जरुरत नहीं ,बल्कि पैसो से ज्यादा कीमती अपना समय देने की जरुरत है. आप जितना ज्यादा समय देंगे उतना ही हम अपने बारे में जानते जायेंगे. मैंने ध्यान को कैसे जाना ? चलिए जानते है. शुरू शुरू में यह एक बड़ा सा एवेरेस्ट पर्वत उठाने के बराबर लगता है ,लेकिन जैसे जैसे आप इसके अन्दर जाते है, आपके लिए समय जैसे से रुक गया हो, ऐसा लगने लगता है. मैंने यह खुद महसूस किया है. ध्यान के बारे में आप इन्टरनेट द्वारा जान सकते है. फिर भी में आपको एक बार बताना चाहूँगा. जैसा की हमने ध्यान के बारे में सुना है, सबसे पहले एक शांत जगह का चयन करे जहा आपको कोई दुविधा न हो. यह होने के बाद एक आसन ले जिसपर आप सही से बैठ पाए .उसके बाद उस पर बैठ कर अपनी आँखे बंद कर ले और अपनी साँस पर ध्यान केन्द्रित करे, इस तरह से आप ध्यान कर सकते है. शुरू शुरू में यह आपको थोडा मुश्किल लग सकता है लेकिन जैसे जैसे आप करते जायेंगे वैसे वैसे आप अपने अन्दर से बहोत खुश महसूस करने लगेंगे. ध्यान करने का एक और सरल तरीका है. मौन रहना ,हा आपने सही पढ़ा मौन रहना अन्दर से और बाहर से. देखिये हम पुरे दिन मौन नहीं रह सकते लेकिन दिन भर में ऐसा भी समय आता है जब आप अकेले होते हो, और जो बिन जरुरी हो उसके बारे में सोचते रहते हो एक तरह से आप अपने आप से बात करते रहते हो. बस उस समय को भी अगर हम मौन में बदल दे तो यह हमारे लिए ध्यान जैसा ही काम करेगा. इन तरीको के द्वारा हम ध्यान कर सकते है. ध्यान करने से आप इस दुनिया के बहोत से रहस्यों के बारे में जान सकते है .ध्यान में इतनी शक्ति है जो आपके आने वाले पुरे जीवन को बदल सकती है .वैसे तो ध्यान के अनेको फायदे है जिसे हम जानते है लेकिन कभी महसूस नहीं कर पाते क्योकि हमने कभी ध्यान किया ही नहीं रहता .तो चलिए कुछ पलों से ही ध्यान की शुरुआत करे और अपने जीवन को आनंदपूर्ण बनाये.


४.विश्वास जरुरी है

दोस्तों पूरी दुनिया विश्वास पर जी रही है. हमें भी विश्वास रखना है अपने आप पर ,अपने भगवान् पर. यहा एक चीज तय है अगर भगवान् होते ही नहीं तो भगवान् नाम आया कहासे ? चलो समझते है भगवान् का अर्थ क्या है. भगवान् दो शब्दों से बना है ,उसमे से पहला शब्द है भग यानि सृष्टि और वान यानि स्वामी अर्थात सृष्टि का स्वामी. कुछ चीजे ऐसी होती है जिनके साथ विश्वास शब्द जुड़ जाने से उनकी महानता बढ़ जाती है. हम मंदिरों में देखते है, लोग भगवान् की पूजा करते है एक मूर्ति के रूप में, हमें नहीं पता की उस मूर्ति के अन्दर भगवान् है या नहीं. लेकिन हम अगर उस पत्थर से या अन्य किसी वस्तु से बने भगवान् पर विश्वास करने लग जाय तो भगवान् हमारी बाते सुनते है. हमारे और भगवान् के बिच का जो सम्बन्ध है वो है विश्वास. विश्वास  वह पुल है या रास्ता है जिससे भगवान् तक पहुंचा जा सकता है. विश्वास को दो भागों में बताया जाय तो जो पहला वि है यानि विनम्रता,विशाल,विशेष ,विवेकशील और इसके अलावा वि से अनेक अर्थ निकलते है. दूसरा है श्वास जो हम हर समय लेते है, जिसके बिना हम जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते इसके लिए विश्वास जरुरी है. 

        दोस्तों विश्वास एक भगवान् द्वारा दी गई ऐसी शक्ति है जिससे इन्सान आज इतना आगे बढ़ गया है. अगर दुनिया से विश्वास ख़त्म हो जाय तो ऐसे समझना हम बिना सिमकार्ड से किसीको कॉल लगाने का प्रयास कर रहे है, जो की असंभव है. यह सिर्फ एक उदाहरन है. आने वाले भविष्य में यह संभव हो सकता है की हम बिना सिमकार्ड के किसीको कॉल लगाये. लेकिन यह असंभव है की हम बिना विश्वास के आगे भविष्य में कुछ कर पाय, इसीलिए विश्वास जरुरी है. आज कल हर कोई किसी पर संदेह करता है, यहाँ तक की खुद पर भी. आज हम अपने आप पर से ही विश्वास खोते जा रहे है तो दुसरो पर क्या विश्वास कर पाएंगे. वैसे तो जो इन्सान खुद पर शक करता हो उसके लिए किसीभी काम में सफलता मिलना मुश्किल हो जाता है और जो इन्सान कोई काम कितना भी कठिन क्यों न हो फिर भी अपने काम और अपने पर विश्वास रखता हो उसकी सफलता तय है. विश्वास से भरे आदमी को सफलता पाने से कोई नहीं रोक सकता.

 

धन्यवाद आपने यह पाठ इतने ध्यान से पढ़ा, इससे आपको यह तो समझने आ ही गया होगा की पूरी दुनिया का जो धरातल यानि आधार (BASE) एक विश्वास है तो आप अपने आप पर विश्वास जरुर रखे.आपका फिरसे धन्यवाद.


५.हमारा शरीर

शरीर इसके बारे में जो व्यक्ति या इन्सान जान लेता है उसे और कुछ जानना शेष नहीं रहता. बॉडी यानि शारीर, हम यह तो जानते है की हमारे पास दो हाथ, दो कान, एक मुह, दो पैर, दो मल मार्ग और इस तरह के अनेक भाग है लेकिन हमारे शरीर में एक ऐसा भाग भी है जिसे कोई नहीं जानता और वह है दिमाग, यार आप लोग यह सोच रहे होंगे की हम तो जानते है, हमारे पास दिमाग है. इन्सान का शरीर पहले जैसा था वैसा ही है आज भी उसे दो हाथ ,दो पैर और बाकि अंग है. देखिये कोई भी पौधा हमें लगाना हो तो हम उसके बिज का या उसके अंश का इस्तेमाल करते है उसी तरह अगर हम अपने शरीर का सहिसे इस्तेमाल करे तो हर एक चीज या हर एक बात हम संभव कर सकते है जिसका होना हमारे लिए जरुरी है. हमें यह अवश्य पता होना चाहिए की हर कुछ जो आज हो रहा है या आगे होने वाला है वह सबकुछ भगवान् जानते है. हमारे दिल में, हमारे शरीर में या कहे पुरे ब्रम्हांड में, ब्रम्हांड के हर एक कण में भगवान् है.


धन्यवाद

|| जय श्री राधा ||

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 || जय श्री राधा ||

Image by shalender kumar from Pixabay

दोस्तों भगवान् कृष्ण को सबसे प्यारी श्री राधा लगती है. श्री राधा के बारे में हम कुछ लिख सके इतनी बुद्धि हमारे पास नहीं है, यह लेख भगवान् कृष्ण ही प्रेरित करते है लिखने के लिए बस वही लिख रहे है. सबसे पहले जानते है श्री राधा कौन है ?

श्री राधा भगवान् कृष्ण का ह्रदय है. जब भगवान् कृष्ण को अपने आप से प्रेम करने की इच्छा हुई तब उनका ह्रदय ही श्री राधा के रूप में प्रकट हो गया. यानि श्रीराधा और कोई नहीं श्रीकृष्ण ही है. श्रीराधा भगवान् तो है ही लेकिन      भगवान् श्रीकृष्ण की सबसे बड़ी भक्त भी है और भक्त ही भगवान् कृष्ण का परम प्रेमी है. 

भगवान् कृष्ण ही अनेक रूपों में प्रकट होते है. वे ही सबकुछ बने हुए है. यह पूरा विश्व भगवान् से प्रकट हुआ है, वे ही इसका पालन करते है और इसका अंत भी भगवान् स्वयं करते है. हम इन्सान भगवान् को भूल गए है इसके लिए हमें भगवान् नहीं दिखाई देते, जिस दिन हमें भगवान् से बढ़कर और कोई अच्छा नहीं लगता तब भगवान् स्वयं हमसे मिलने के लिए आते है. पहले के युगों में भगवान् बड़े कठोर तप से, यज्ञ से प्राप्त होते थे, लेकिन इस कलियुग में भगवान् बड़े आसानीसे मिल सकते है अगर हम भगवान् का नाम जप करे.

हमसे भगवान् का नाम जपना नहीं होता क्योकि हमारे जीवन में गुरु का अभाव है. सबसे पहले भगवान् से जो बहोत प्रेम करता है उनका नाम जपता है उनके ध्यान में रहता है ऐसे भगवद प्रेमी को अपना गुरुदेव बनाये. गुरुदेव जो हमें भगवान् का नाम दे वही नाम जपना चाहिए. उनका दिया हुआ नाम हम लम्बे समय तक जप सकते है. गुरुदेव द्वारा दिए गए नाम में उनकी नाम जपने की शक्ति भी हममे आने लगती है. इसलिए भगवान् को पाने से पहले गुरुदेव को पाईये क्योकि भगवान् का मार्ग गुरुदेव जानते है, उनकी कृपा से ही हम भगवान् को जान सकते है और मिल सकते है.

भगवान् का सबसे प्यारा बनने के लिए सबसे सरल उपाय नाम जप ही है. क्योकि भगवान् और भगवान् के नाम में कोई अन्तर नहीं है. भगवान् से मिलना है तो भगवान् का नाम सदा जपना चाहिए तभी भगवान् हमें मिल सकते है. 

|| जय श्री राधा ||


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|| Jai Sree Radha ||

🧠 ChatGPT क्या है और इसका उपयोग कैसे करें? – एक सरल हिंदी मार्गदर्शिका



📌 परिचय

आज के डिजिटल युग में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) ने जीवन को बहुत आसान बना दिया है। ChatGPT एक ऐसा ही उन्नत AI टूल है, जिसे OpenAI ने विकसित किया है। यह आपके सवालों के जवाब दे सकता है, कंटेंट लिख सकता है, कोडिंग में मदद कर सकता है, अनुवाद कर सकता है और बहुत कुछ – वो भी हिंदी सहित कई भाषाओं में।


🤖 ChatGPT क्या है?

ChatGPT (Chat Generative Pre-trained Transformer) एक AI चैटबॉट है जो इंसानों की तरह बात करता है। यह एक प्रकार का डिजिटल सहायक (Digital Assistant) है जो आपको पढ़ाई, काम, व्यवसाय, और रचनात्मक लेखन में मदद कर सकता है।

यह इंटरनेट पर पहले से मौजूद अरबों शब्दों और वाक्यों से सीखा हुआ है और आपकी बात को समझकर सटीक और उपयोगी जवाब देने की कोशिश करता है।


🔧 ChatGPT का उपयोग कैसे करें?

✅ Step-by-Step तरीका:

  1. OpenAI की वेबसाइट पर जाएं:
    👉 https://chat.openai.com

  2. एक अकाउंट बनाएं या लॉगिन करें:

    • आप अपने Google या Microsoft अकाउंट से भी साइन इन कर सकते हैं।

  3. भाषा चुनें (हिंदी भी चलेगी):

    • आप हिंदी में ही सवाल पूछ सकते हैं। जैसे:

      "भारत के प्रधानमंत्री कौन हैं?"
      "एक प्रेरणादायक कविता लिखो।"

  4. सवाल पूछें या टास्क दें:

    • आप कुछ भी पूछ सकते हैं:

      • होमवर्क में मदद

      • निबंध या ब्लॉग लेखन

      • यात्रा योजना बनाना

      • बिज़नेस आइडिया सुझाव

      • कोड लिखवाना (Python, HTML, आदि)

      • और भी बहुत कुछ...


📱 मोबाइल पर ChatGPT कैसे चलाएं?

आप मोबाइल से भी आसानी से ChatGPT चला सकते हैं:

  • वेब ब्राउज़र से: Chrome या Safari में chat.openai.com खोलें।

  • एप डाउनलोड करें:

    • Android के लिए: Google Play Store पर "ChatGPT" सर्च करें।

    • iPhone के लिए: App Store से डाउनलोड करें।


💡 ChatGPT का उपयोग किन चीजों में करें?

काम का प्रकार उपयोग का तरीका
शिक्षा                         - निबंध लेखन, प्रश्न उत्तर, गणित हल करना
नौकरी और करियर    -
रिज़्यूमे बनाना, कवर लेटर लिखना
व्यवसायिक उपयोग    - बिज़नेस आइडिया, सोशल मीडिया पोस्ट, ईमेल ड्राफ्ट
कोडिंग/प्रोग्रामिंग        - कोड लिखना, डिबग करना, एक्सप्लेन करना
यात्रा योजना               - घूमने की जगहें बताना, ट्रैवल शेड्यूल बनाना
भाषा अनुवाद             - किसी भी भाषा को हिंदी में या हिंदी से अनुवाद करना
स्वास्थ्य सुझाव (सामान्य) हेल्दी रूटीन, मोटिवेशन, डाइट प्लान (डॉक्टर के बिना सलाह नहीं)

⚠️ ChatGPT का उपयोग करते समय सावधानियाँ:

  1. 100% सटीक जानकारी जरूरी नहीं होती। हमेशा क्रॉस-चेक करें।

  2. व्यक्तिगत या गोपनीय जानकारी शेयर न करें।

  3. यह डॉक्टर, वकील या फाइनेंशियल एडवाइजर नहीं है, केवल सहायक है।


🌟 ChatGPT हिंदी में क्यों खास है?

  • यह अब हिंदी में भी अच्छे उत्तर दे सकता है।

  • छात्रों, शिक्षकों, फ्रीलांसर्स और यूट्यूबर्स के लिए अत्यंत उपयोगी है।

  • भारत जैसे देश में यह ज्ञान democratize करता है — यानि हर किसी को सस्ता, सरल और स्मार्ट सहारा देता है।


✍️ निष्कर्ष

ChatGPT एक शक्तिशाली डिजिटल सहायक है जो सही तरीके से इस्तेमाल करने पर आपकी पढ़ाई, काम और क्रिएटिविटी को एक नई ऊंचाई पर ले जा सकता है। चाहे आप एक स्टूडेंट हों, जॉब की तैयारी कर रहे हों, या बिज़नेस में नया प्रयोग करना चाहते हों – ChatGPT आपका साथी बन सकता है।


🙋‍♂️ क्या आप तैयार हैं ChatGPT के साथ अपनी यात्रा शुरू करने के लिए?

👇 नीचे कमेंट करें —
आप ChatGPT का किस काम में उपयोग करना चाहते हैं?

|| Jai Sree Radha ||

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 || जय श्री राधा ||

Image by Steve Buissinne from Pixabay


दोस्तों हम सबको २४ घंटो में कुछ न कुछ खाली समय मिल ही जाता है, इस समय का हम सदुपयोग न करके केवल मोबाइल या टीवी देखने में ही ख़राब कर देते है. समय को पैसो से भी मूल्यवान कहा गया है, क्योकि समय का सही इस्तेमाल करके हम पैसे तो भरपूर कमा सकते है लेकिन बीते हुए समय को हम वापस नहीं ला सकते. इसलिए दोस्तों समय का सही उपयोग कैसे किया जाय उसके बारे में यह लेख प्रस्तुत किया जा रहा है.

१. भगवान् का नाप जप करे.

दोस्तों दिन भर में हमसे अनेको पाप हो जाते है, इन पापों का विनाश सिर्फ भगवान् का नाम ही करता है. भगवान् का नाम जपने से मनको शांति और आनंद मिलता है. दोस्तों भगवान् का नाम जप करने से तीर्थो में जाने का फल मिल जाता है. भगवान् के नाम की महिमा अनंत है. 

२. अपने अन्दर की कला को पहचाने.

सबके अन्दर भगवान् ने कोई न कोई कला भरकर ही इस दुनिया में हमें भेजा है. बस हमें अपने अन्दर के हुनर को पहचान कर उसे विकसित करना होता है, इसलिए हमें जब भी खाली समय मिले तब हमें अपने आप को जानना चाहिए की हमें क्या पसंद है, कोनसा काम हम बेहतरीन तरीके से कर सकते है, किस कामको करने से हम खुश होते है. जब हमें पता चलता है की हमारे अन्दर भगवान् ने क्या गुण रखे है तब उसे हमें फ्री टाइम देकर विकसित करना चाहिए, जैसे किसीकी आवाज अच्छी होती है उसे अपनी आवाज पर काम करना चाहिए, किसीको चित्र बनाना पसंद होता है उसे अपनी चित्रकला पर काम करना चाहिए. इससे हमें ख़ुशी भी मिलेगी और पैसे भी मिल सकते है.

३. किताबे पढ़े.

किताबे सिर्फ स्कूल में या कोलेज में अच्छे मार्क्स लाने के लिए ही नहीं पढनी चाहिए, हमें किताबो को इसलिए पढ़ना चाहिए क्योकि इन किताबो में अनेको रहस्य भरे होते है, ऐसी जानकारी भरी होती है जो हमारा पूरा जीवन बदल सकती है. खासकरके हमें उन किताबो या पुरानो को पढ़ना चाहिए जो हमें आध्यात्म से जोड़े. वैसे हमारे हिन्दू धर्म में १८ पुराण है. जिन्हें पढ़कर हम अपने भगवान् को जान सकते है. जीवन में क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए यह हमें हमारे पुराण, भगवद गीता, रामचरितमानस सिखाते है. हमें हर दिन कम से कम आधा घंटा इन किताबो को पढना ही चाहिए. "भगवद गीता" जो भगवान् श्रीकृष्ण और उनके सखा अर्जुन का संवाद है, इसे पढ़कर हम परमात्मा से जुड़ जाते है, भगवद गीता में हमारी हर समस्या का समाधान लिखा है, बस हमें इसे पुरे ध्यान से पढना और अपने जीवन में अपनाना होगा. इस तरह दोस्तों हमने जाना की किताबे सिर्फ पढने के लिए नहीं बल्कि अपने जीवन को बेस्ट तरीके से जीने के लिए होती है.

४. संगीत सुने .

संगीत का जीवन पर गहरा असर पड़ता है. इसलिए हमें वैसेही गीत सुनने चाहिए जो मन को शांति दे. भजन भी संगीत ही होता है. जिससे हमारे अन्दर सद्विचार आते है, सद्विचारो से ही तो हम अपना कार्य उत्साहपूर्वक करते है. कुछ नकारात्मक संगीत भी होते है जिससे हमें चिंता होती है,बुरे बुरे ख्याल आते है उन्हें नहीं सुनना चाहिए. अच्छे संगीत (भजन) से मन एकाग्र होता है, ख़ुशी देता है, मन में जो बुरे विचार आते है उससे बचाता है. संगीत जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है.     

इस तरह दोस्तों हमने जाना की हम खाली समय में क्या कर सकते है .

|| जय श्री राधा ||

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|| जय श्री राधा || 

Image by Iris,Helen,silvy from Pixabay


दोस्तों आज के मोबाइल युग में हर कोई मोबाइल या टीवी देखने में व्यस्त है, किसीके पास अपने लिए समय ही नहीं है तो वह दुसरो को क्या समय देगा. जिस गति से आधुनिकीकरण बढ़ते जा रहा है उसी गति से हम अपने आप से, अपने परिवार से और प्रकृति से दूर जा रहे है. इसी वजह से हमारे संबंधो में दूरिया आ रही है, इन्ही दूरियों को मिटाने के लिए, एक अच्छा जीवनसाथी बनने के लिए यह लेख प्रस्तुत किया जा रहा है.

१. प्रेम का मतलब समझे 

दोस्तों सिर्फ I Love You बोल देना ही प्रेम नहीं होता. कोई सिर्फ सुन्दर है यह देखके हम किसीसे प्रेम नहीं कर सकते, हा आकर्षण होना स्वाभाविक ही, एक पुरुष का स्त्री की तरफ या स्त्री का पुरुष की तरफ एक आकर्षण होता ही है. लेकिन हमें भगवान् ने बुद्धि दी है जिससे हमारे अन्दर समझ होती है की हमारे लिए क्या सही है और क्या गलत है. प्रेम एक ऐसा अहसास है जिसे पाने पर कुछ भी पाने का मन न करे, प्रेम सिर्फ भगवान से ही किया जा सकता है. इस दुनिया के हर कण में भगवान् वास करते है उसी तरह हमारे जीवनसाथी में जब तक हमें भगवान् नजर नहीं आते तब तक हम सिर्फ उस इन्सान से आकर्षित है न की उससे प्रेम करते है, जिस दिन से हमें अहसास हो जाये की जिसके साथ हम है उसमे भगवान् ही है जो मेरे साथ है, तब हमें अपने जीवनसाथी से प्रेम होगा. प्रेम में कितनी ही दुरिया क्यों न हो लेकिन सिर्फ उसी के बारे में सोचना, उसे ही पाने की चाह रखना, यही प्रेम है. प्रेम के बारे में ज्यादा लिख सकू इतनी गहराई मुझमे नहीं है, क्योकि प्रेम भगवान् का ही रूप है, और भगवान् अनंत है.


२. अपने जीवन साथी को समय दे

दोस्तों समय को पैसो से ज्यादा मूल्यवान  बताया गया है क्यों ? पता है, क्योकि समय का सदुपयोग करके हम पैसे तो भरपूर कमा सकते है लेकिन बीते हुए कल को हमारे बचपन, जवानी को पूरी जिंदगी भर की गयी कमाई से नहीं खरीद सकते. इसलिए दोस्तों कितने भी हम व्यस्त हो, हमें हमारे जीवनसाथी को समय देना चाहिये. हमारा लाइफ पार्टनर हमसे कुछ नहीं चाहता, उसे सिर्फ प्रेम के कुछ पल चाहिए होते है जिसके देने पर वह रिश्ता जीवन के अंत तक आनंदपूर्वक व्यतीत होता है. 


३. एक दुसरे को सम्मान दे 

दोस्तों जितना सम्मान हम चाहते है उतना ही सम्मान हमें अपने जीवनसाथी को देना चाहिए. सम्मान रिश्ते की नीव होती है. इस नीव के मजबूत होने पर रिश्ते में विश्वास बढ़ता है. विश्वास दृढ़ होने पर हमें अपने जीवनसाथी के आलावा किसीकी चाह नहीं रहती, हमें सिर्फ अपने पार्टनर में ही सुख मिलने लग जाता है. सम्मान ही रिश्ते में मिठास भर देता है. इसलिए दोस्तों हमें अपने जीवनसाथी को सम्मान देना ही चाहिए.


४. हमारे बीते हुए कल के बारे में बताना   

सबसे महत्वपूर्ण रिश्ते में कुछ है तो वह है हमें अपने पार्टनर से कुछ छुपाना नहीं चाहिए. हमसे अनेको गलतिया हो चुकी होती है उन गलतियों पर पर्दा न डालकर हमें अपने बीते हुए जीवन के बारे में अपने जीवनसाथी को बता देना चाहिए. अपने कल के बारे में बताने से अगर हमारे जीवन में कुछ परिशानिया आती है तो वह कुछ समय तक ही रहेगी लेकिन हमें रिश्ता जीवन के अंत तक चलाना है उसके लिए हमारे जीवन साथी को हमारे बारे में पूर्ण ज्ञान होना चाहिए इससे रिश्ते में मजबूती बढ़ जाती है.


५. एक दुसरे की तारीफ करे  

हर किसीको तारीफ सुनना पसंद होता है. जब हम अपने जीवनसाथी की छोटी छोटी बातों की सच्ची तारीफ करते है तब उसे लगता है की में इस दुनिया का सबसे भाग्यशाली पति या पत्नी हु जिसे इस तरह का जीवनसाथी मिला है. जब हम अपने जीवनसाथी की तारीफ करते है तब हमारा जीवन साथी हमसे ज्यादा प्रेम करने लगता है, हमारा पूर्ण समर्पण से ख्याल रखता है, हम हमेशा खुश रहे इस तरह के अनेको उपाय करता रहता है.


आशा है दोस्तों यह लेख आपके जीवन में ख़ुशी लाये और आपका जीवन सफल बनाये.

|| जय श्री राधा ||



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 आलस को कैसे दूर करें?

Image by Gabor Fejes from Pixabay


आलस, वो दुश्मन जो हमें हमारे लक्ष्यों को प्राप्त करने से रोकता है। कई बार हम जानते हैं कि हमें कुछ करना चाहिए, लेकिन फिर भी उस काम को टालते रहते हैं। आलस को दूर करना कोई जादू नहीं है, बल्कि इसे दूर करने के लिए सही मानसिकता और आदतों की ज़रूरत होती है। तो चलिए जानते हैं, आलस को कैसे दूर किया जा सकता है:

0.1 नाम जप करने 

दोस्तों भगवान् का नाम जपने से हमारी एकाग्रता बढती है, एकाग्रता बढ़ने से हमारा काम करने का मन करता है और आलस धीरे धीरे कम होने लगता है.


1. स्मॉल स्टेप्स लें:

   आलस का सबसे बड़ा कारण होता है एक बड़े काम को देखकर डर लगना या घबराहट महसूस करना। इस डर को दूर करने के लिए काम को छोटे-छोटे हिस्सों में बांटें। छोटे कदम उठाने से आपका आत्मविश्वास बढ़ेगा और आप इसे पूरा करने में सक्षम होंगे।


2. स्पष्ट लक्ष्य बनाएं:

   जब हमें पता नहीं होता कि हमें क्या करना है, तो आलस आना स्वाभाविक है। इसलिए अपने लक्ष्य को स्पष्ट रूप से तय करें। जब हमें पता होगा कि हमें किस दिशा में जाना है, तो आलस कम होगा।


3. समय का प्रबंधन करें:

   आलस को खत्म करने के लिए समय का सही प्रबंधन बेहद जरूरी है। एक दिन का शेड्यूल बनाएं और उसपर चलें। अपने समय को बर्बाद करने की बजाय, उसे उत्पादक रूप से इस्तेमाल करें।


4. स्वास्थ्य पर ध्यान दें:

   सही आहार, पर्याप्त नींद, और व्यायाम से शरीर और दिमाग दोनों सक्रिय रहते हैं। एक स्वस्थ शरीर में आलस कम होता है। ध्यान रखें कि अगर आप शारीरिक रूप से थके हुए होते हैं, तो मानसिक आलस भी बढ़ सकता है।


5. मनोबल बढ़ाएं:

   आत्म-संवाद (self-talk) का तरीका बदलें। खुद से कहें, "मैं यह कर सकता हूँ!" सकारात्मक सोच से आलस पर काबू पाया जा सकता है। जब आप खुद पर विश्वास करेंगे, तो आपके अंदर की आलसी प्रवृत्तियाँ कम हो जाएंगी।


6. आलस का कारण पहचानें:

   कई बार आलस के पीछे कोई गहरी वजह हो सकती है जैसे कि डर, असफलता का डर, या थकावट। इन कारणों को पहचानने और उनसे निपटने की कोशिश करें। इसके लिए किसी से सलाह लेने या गहरी सोचने की जरूरत हो सकती है।


7. प्रेरणा स्रोत ढूंढें:

   कभी-कभी हमें अपनी प्रेरणा की आवश्यकता होती है। किसी किताब, फिल्म, या किसी प्रेरणादायक व्यक्ति से प्रेरणा लेकर आप आलस को मात दे सकते हैं।


समाप्ति में, आलस को दूर करना एक निरंतर प्रक्रिया है। यह कोई रातोंरात नहीं होता, लेकिन यदि आप उपरोक्त उपायों को अपने जीवन में शामिल करेंगे, तो निश्चित रूप से आप इसे काबू पा सकते हैं और सफलता की ओर बढ़ सकते हैं।


क्या आप आलस को दूर करने के लिए इनमें से कोई टिप्स पहले से आज़मा चुके हैं?


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 केरल देश में मेधावी नामके राजा राज्य करते थे. दुश्मन  राजा ने उनके देश पर आक्रमण कर दिया. युद्ध में मेधावी राजा मारे गए. उनका एक छोटा पुत्र था जिसका नाम चंद्रहास था. राजाके मारे जाने पर चंद्रहास की धाय माँ उन्हें चुपके से दुसरे देश कुंतलपुर ले गयी. वहा पर धाय माँ उस राजकुमार का पालन पोषण करने लगी. एक दिन देवर्षि नारद जी उसी नगर से निकल रहे थे. उन्हें चन्द्रहासजी पर कृपा करनी थी तो देवर्षि नारदजी ने उन्हें भगवान् का नाम, मंत्र बताया. देवर्षि नारद से मिलने के बाद वे भगवान् में मन लगाकर उनकी पूजा सेवा करने लगे. कुंतलपुर देश के राजा भी भगवान् में मन लगाकर उनकी सेवा करते थे. उन राजा के एक लालची मंत्री था उसीके हाथ में राज्य की देखरेक की जिम्मेदारी थी. वो हमेशा धन जुटाने में लगा रहता था. एक दिन चन्द्रहासजी भगवान् का कीर्तन करते हुए उस मंत्री के महल के सामने से गुजर रहे थे उस समय महल में मंत्री के बेटे जो भगवान् को बहोत् मानते थे वे ब्राह्मणों के साथ भगवानकी चर्चा कर रहे थे जब उन्होंने चंद्रहासजी का भजन सुना तो उन्होंने उसे महल में बुलवाया. ब्राम्हनोने मंत्री से कहा की तुम इस बच्चे की देखभाल करो, यह इस कुंतलपुर देश का राजा बनेगा. मंत्री को ब्राह्मनोकी यह बात अच्छी नहीं लगी वे अपने पुत्र को राजाकी गद्दी पर बिठाना चाहते थे. उसने एक षड़यंत्र किया....मंत्री ने एक खास आदमी को कहा की इस चंद्रहास को जंगल में जाकर मार देना. उस बच्चे को बहलाकर वह कसाई जंगल में ले गया. भगवान् पर चंद्रहासका बहोत प्रेम होने से वह बात को समझ गया की उसे मरने के लिए जंगल में लाया गया है. वह उस कसाई से कहता है मुझे मारने के पहले मुझे एक बार भगवान् का भजन करने दो. ऐसाही होता है वह बालक भजन करता है....भजन सुनते ही उस कसाई को उस बालक पर दया आती है. लेकिन डर भी लगता है की अगर मैंने इसे नहीं मारा तो मंत्री मुझे मार डालेगा. चंद्रहासके एक पैर में ६ उँगलियाँ होती है.....वह कसाई एक ऊँगली को काट लेता है और उस बालक यानि चन्द्रहासको जीवित छोड़ देता है. वह कसाई उस ऊँगली को मंत्री के पास दिखाता है.....मंत्री खुश हो जाता है की मैंने ब्रम्हानोकी भविष्यवाणी को विफल कर दिया. वह चंद्रहास दुःख के मारे करुण स्वर से भगवान् को याद कर रहा होता है उसी समय कुंतलपुर देश से सटे हुए एक राज्य के राजा वहासे गुजर रहे होते है. उनके कोई पुत्र नहीं होता है. वे उस बालक को गोद ले लेते है. चंद्रहास को राजा और प्रजा बड़ा प्रेम करने लगती है.....धीरे धीरे चंद्रहास बड़े हो जाते है और उन्हें उस देश का राजा बना दिया जाता है. हर साल की तरह उस राज्य से १०,००० स्वर्ण मुद्राए कर के रूप में कुंतलपुर भेजी जाती है और कुछ खास उपहार भी भेजे जाते है. उस राज्यकी व्यवस्था देखने के लिए कुंतलपुर देश से वह लालची मंत्री उस राज्यमे आता है .....आतेही वह क्या देखता है की जिसको उसने बरसो पहले मारने का षड़यंत्र किया था वह आज भी जिन्दा है. इसका जिन्दा रहना ठीक नहीं वह दुबारा उसे मारने की लिए उसके हाथ में एक चिट्ठी देता है और कहता है.....बेटा इसे मेरे पुत्र के पास दे देना, मुझे किसी और पर भरोसा नहीं है इसलिए में तुम्हे भेज रहा हु. चंद्रहास उस चिट्ठी को लेकर कुंतलपुर के लिए रवाना हो जाता है. जब वह कुंतलपुर पहोंचता है तब उसे बड़ी थकान महसूस होती है वह पासके ही बगीचे में कुछ देर के लिए लेट जाता है. उसी समय उस देश के राजा की राजकुमारी और मंत्री की बेटी विषया उस बगीचे में घूम रही होती है. विषया को वह राजकुमार दिख जाता है... वह उसके पास जाती है और उसके  हाथ की चिट्ठी खोलती है. उस चिट्ठी में लिखा होता है ..... "बेटा इस राजकुमार को आते ही विष दे देना"   उस मंत्री की बेटी को लगता है की पिताजी ने इस चिठ्ठी में कुछ लिखने में भूल कर दी है उसे लगता है की पिता ने मुझे इस राजकुमार को देने के लिए कहा होगा. तो वह क्या करती है की पत्र में विष की जगह वह विषया कर देती है. उस पत्र को बंद करके वह उस राजकुमार के हाथ में दे देती है और वह वहासे निकल जाती है. कुछ देर बाद जब उस राजकुमार की आँख खुलती है तो वह उस मंत्री के बेटे के पास जाकर वह पत्र उसे देता है. पत्र के मुताबिक मंत्री का बेटा अपनी बहन विषया का विवाह चंद्रहास जी के साथ कर देते है. मंत्री वापस आता है कुंतलपुर देश में और देखता है की वह राजकुमार अभी जिन्दा है और सोचता है ....भले मेरी बेटी विधवा हो जाये में इसे मरकर ही रहूँगा. तो वह अपने आदमी को बुलाता है और कहता है की तुम सवेरे माँ भवानी के मंदिर में चले जाना वहा जैसे ही कोई पूजा करने आये उसे मार डालना. वह उस राजकुमार से भी कहता है की बेटा तुम सवेरे माता के मंदिर में पूजा करने चले जाना. जब उस मंत्री के बेटी की शादी हो रही थी तब उस देश के राजा भी उस शादी में आये हुए थे.उन्हें चंद्रहासजी पसंद आ गए और उन्होंने सोचा की मेरी बेटी के लिए भी यह राजकुमार योग्य होगा. तो वे उस मंत्री के बेटे को उस राजकुमार के पास भेजते है की तुम उसे बुला लाओ. मंत्री का बेटा उस राजकुमार को बुलाने के लिए जाता है. मंत्री का बेटा कहता है .... चंद्रहासजी आपको राजाने बुलाया है.....चंद्रहास कहता है लेकिन मंत्री जी ने मुझे मंदिर जाने को कहा है......मंत्री का बेटा कहता है .....आपकी जगह में मंदिर चला जाता हु और आप राजा  के पास चले जाइये. वैसे ही होता है राजकुमार का राजा की बेटी के साथ विवाह हो जाता है और वहा मंदिर पर मंत्री का बेटा मारा जाता है. जब मंत्री को यह बात पता चलती है की उसका बेटा ही मंदिर पर गया है तो वह भी मदिर पर भागते भागते जाता है और देखता है की मेरा बेटा मर चूका है. पच्छाताप में वह भी अपना गला काट देता है. कुछ समय बाद चंद्रहासजी मंदिर पर आते है और देखते है की मंत्री और उनका बेटा मरा पड़ा है,उनकी यह दशा देख कर उसे लगता है की यह सब मेरे कारन ही हुआ है इसलिए वह भी अपने आप को मारने जाता है तो स्वयं माँ भगवती वहा प्रगट हो जाती है और कहती है ... बेटा रुको तुम्हे मरने की जरुरत नहीं है. सबको अपने कर्मो का ही फल मिलता है. तुम वरदान मांगो .... चंद्रहासजी कहते है माँ मेरी भक्ति और बढे और यह मंत्री और मंत्रीं का बेटा पुनः जीवित हो जाये और इस मंत्री में सद्बुद्धि आ जाये यही मेरी कामना है. माँ तथास्तु कहकर अंतर्धान हो जाती है. फिर सब राज्य में लौट आते है और अपना जीवन भगवान् की भक्ति में लगाकर पूर्ण करते है.

जय श्री राधा 

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दोस्तो भगवद गीता एक रोडमैप की तरह है, हमारे शरीर का एक दिन अंत होने वाला है, हम अपने पुण्य और पापों को ही साथ ले जाएंगे। हमसे शुभ कर्म ज्यादा हो, हमे ज्ञान प्राप्त हो, क्या सही है और क्या गलत है इसकी समझ प्राप्त करने में भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन का यह अद्भुत संवाद हमे भगवान की और ले जाने में सहायता करता है। इसलिए भगवद गीता से हमे जुड़ना जरूरी है।
जय श्री राधा 
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जय श्री राधा 
हा दोस्तो भगवान हमारे दिल में ही वास करते है, भगवद गीता का यह श्लोक प्रमाण है.......
वे इस श्लोक में कह रहे है कि में ही सारे जीवो के हृदय में स्थित परमात्मा हु, में ही समस्त जीवो का आदि, मध्य तथा अंत हु।
दोस्तो मंदिर में भगवान के दर्शन तो हम करते ही है, लेकिन भगवान मंदिर के अलावा हमारे मन में ही अपना दीदार (दिखना) करवाते है। लेकिन उसके लिए मन का साफ होना जरूरी है,
हमसे अनंत जन्मों से अनेकों विभिन्न प्रकार के अच्छे तथा बुरे कर्म किए है, और उनका फल हमे भोगना ही पड़ता है लेकिन जब हम प्रति दिन भगवान को स्मरण करते है, उनका भजन करते है, उन्हें देखते है तो वे पाप कर्म मानो तलवार से छोटे होकर सुई जितना ही दर्द देते है यानी हमारे पाप कर्मों को अति सूक्ष्म कर देते है और शुभ कर्मों का हमे अच्छा फल भी देते है। 
इसलिए दिन में कम से कम एक बार हमे भगवान को जरूर याद कर लेना है।
जय श्री राधा 
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जय श्री राधा 

नमस्ते दोस्तों भगवद गीता के अध्याय 18 में 65 वे श्लोक में भगवान कह रहे है कि......
सदैव मेरा चिंतन करो, मेरे भक्त बनो, मेरी पूजा करो और मुझे नमस्कार करो।
इस प्रकार तुम निश्चित रूप से मेरे पास आओगे ।
में तुम्हे वचन देता हूँ, क्योंकि तुम मेरे मित्र हो ।
दोस्तो भगवान को पाने के लिए हमे सबसे पहले भगवान से रिश्ता बनाना होगा, हम उन्हें अपना दोस्त, बेटा, पिता या और कोई रिश्ता हम भगवान से बना सकते है। भगवान मिलना मुश्किल है लेकिन भगवान को अपना रिश्तेदार बनाकर जल्द से जल्द मिला जा सकता है।
दोस्तो श्लोक में भगवान कह रहे है कि सदैव मेरा चिंतन करो, लेकिन पहले पहले हमारा चिंतन नहीं होगा, लेकिन बार बार भगवान को याद करने से, उनका भजन करने से, उनकी सेवा करने से धीरे धीरे भगवान में हमारा मन लगने लगेगा। जब हम भगवान के सच्चे भक्त बनेंगे, भगवान की पूजा करेंगे, उन्हें नमस्कार करेंगे तो आसानीसे भगवान हमे मिल जाएंगे
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Jai Shree Radha 

 दोस्तों भगवद गीता के अध्याय 9 के 19 वे श्लोक में भगवान कह रहे है कि में ही ताप प्रदान करता हु, और सूर्य को सुर्यनारायण भी कहते है, यानी सूर्य और कोई नहीं भगवान कृष्ण ही है, वे ही अमर है और हमारे जीवन की मृत्यु रूप में भी वही आते है, वे ही आत्मा है और शरीर भी वही है, बस फर्क इतना है कि शरीर जन्म लेता है इसलिए उसकी मृत्यु निश्चित है और आत्मा अमर है इसलिए उसे कोई मार नहीं सकता।
दोस्तो हम किसी जगह घूमने या किसी काम से जाते है तो उसकी हम पूरी तैयारी करते है, वहां कितने पैसे लगेंगे, क्या पहनेंगे, क्या क्या खायेंगे इस तरह की अनेकों तैयारियां हम करते है, लेकिन जब अंत में भगवान के पास जाना है तब उसकी तैयारी भी हमे करनी चाहिए।
मन में सवाल आता है कि भगवान के पास जाने के लिए क्या करना पड़ेगा
देखो दोस्तो भगवान हमारा दो तरह से वेलकम करते है
अगर हमने अच्छे कर्म किए तो वे कृष्ण बनकर मिलेंगे और हमसे प्रेम करेंगे
और बुरे कर्म किए तो कृष्ण ही यमराज बनकर हमें हमारे बुरे कर्म की सजा भुगतवाकर निष्पाप करके पुनः हमे मौका देते है, लेकिन हमे मनुष्य शरीर मिले यह जरूरी नहीं, मनुष्य शरीर कई योनियों में से गुजरने के बाद मिलेगा।
इसलिए यह मनुष्य शरीर की बहुत अहमियत है, हम जो भी कर रहे है उसे करते करते अगर भगवान को याद कर लिया तो सहज ही भगवान हमे मिल सकते है।
दोस्तो भगवान की और कदम बढ़ाना है तो दिन में कम से कम एक बार महामंत्र गाना चाहिए, जो इस तरह है......
"हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे"
यह मंत्र भजन की तरफ इक नींव बनता है,
इस मंत्र को हर दिन गाना चाहिए।
जय श्री राधा 
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मेरे प्रिय मित्रो,
हम सबको पता है वृन्दावन में रहना आसान नहीं है, लेकिन भगवान कृष्ण ने भगवद गीता में कुछ इस तरह परम गुप्त रहस्य बताया है, जो कुछ इस तरह है.......
इसका मतलब होता है.....
मैं ही लक्ष्य, पालनकर्ता, स्वामी, साक्षी, धाम, शरणस्थली तथा अत्यंत प्रिय मित्र हु ।
मैं सृष्टि तथा प्रलय, सबका आधार, आश्रय तथा अविनाशी बीज भी हूँ।
यानी हम कृष्ण का नाम गाते है, तो हम अनजाने में भी वृन्दावन में ही रह रहे है, लेकिन कृष्ण जल्दी पाने का बस एक ही रास्ता है और वो है श्रीराधा, श्रीराधा ही है जो हमें कृष्ण से समयसे पहले यानी मृत्यु से पहले कृष्ण से मिलवा देगी ।
जय श्री राधा 
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दोस्तो जीवन में कई पडाव आते है, कभी दुख आता है तो कभी सुख मिलता है, यह सब क्यों होता है, इस तरह के अनेक सवाल मन में आते ही है। 

इन सब सवालों के जवाब आज सुलझाने वाले है, 
इस दुनिया में जो कुछ भी हो रहा है, इसमे भगवान ही सब कुछ बने हुए है, वही इंसान है और वे ही ईश्वर है, फर्क बस इतना है की इंसान लेना जानते है, और भगवान देते है। भगवान सिर्फ मूर्ति में ही नही हर इंसान के दिल में भी बसते है, जिसने भगवान को जान लिया उसने सब कुछ जान लिया ऐसा समझना चाहिए, इसलिए हमे कोशिश करनी है की हमसे गलतीसे भी किसका दिल न दुखे, सबको हम खुश नही रख सकते, हमे बस भगवान को खुश करना है, उनके खुश होने के बाद हमारे जीवन में भी खुशियां आ जाती है।
भगवान को खुश करने का बस एक ही रास्ता है और वह है उनके बच्चो का ध्यान रखना, जो राह में भटके है उन्हें राह दिखाना, जिसे भूख लगी है उसे खाना खिलाना, जिसे चोट लगी है उसे दवाई लगाना, जो यह सब ना कर पाए उसके लिए बस एक ही काम है और वह है श्रीराधा का नाम गाना, बस श्रीराधा ही जो हमे कन्हैया से मिलाएगी। इसलिए श्रीराधा श्रीराधा गाते रहो, अपने जीवन में खुशियां लाते रहो।

Jai Sree Radha.......
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श्री गणेशाय नमः


दोस्तो जैसा कि हमे पता है, गंगा जी, जो की श्री नारायण भगवान के चरण कमलों से प्रकट हुई है, यानी नारायण भगवान ही गंगाजी बनकर बह रहे है, उन्हें संभालने की ताकत सिर्फ श्री शिवजी के पास है, इसलिए उन्होंने श्री गंगा जी को अपने सिर पर धारण किया, इसी लिए वह हिमालय से यानी श्री शिवजी के ससुराल से निकलती है, शिवजी को अपनी प्रिया पार्वती से बहोत प्रेम है इसलिए गंगाजी हिमालय से निकलती है शिव बनकर, जब यह नदी बहते बहते समुंदर (बंगाल की खाड़ी) में मिल जाती है, समुंदर में जाते ही सूर्यनारायण भगवान उसे तपाते है और वह बाफ (ब्रम्हा) बनकर आसमान में चली जाती है, पानी में H20 यानी हाइड्रोजन और ऑक्सीजन होता है, जो को हम सांस में लेते है, सांस कोई और नही स्वयं ब्रम्हा बनते है, इसलिए ब्रम्हा की पूजा नही की जाती, क्योंकि उन्हें तो हम सांस के जरिए हर वक्त ले ही रहे है, बर्फ ( शिवजी ), पानी (विष्णुजी) जिन्हे हम देख सकते है उन्ही की ही तो पूजा होगी ना, जय श्री राधे 

इस पूरी थियरी का मतलब साफ है, ये तीनो देवता कोई अलग नहीं है, तीनो एक ही भगवान के प्रकट किए हुए है, और वह है प्रेम के प्यारे श्री राधाकृष्ण, प्रेम के बैगैर ना तो जन्म हो सकता है, न ही कुछ और.........
जय श्री राम 
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|| जय श्री राधा ||

दोस्तों जीवन में गुरुका होना उतना ही जरुरी है जितना इन्सान के लिए साँस लेना. बिना ओक्सिजन के जैसे हमारा शरीर नहीं रह सकता वैसे ही हमारे मन में भगवान् बसे होते है उन्हें जानने के लिए गुरु का होना जरुरी है. मैंने तो मेरे गुरु को पहचान लिया वो है शिव पार्वती जो हमारे माता पिता के दिल में बसे होते है. शरीर को छोड़ा जा सकता है लेकिन परमात्मा को नहीं। गुरु की कृपा से जब कुछ दिनों का वृन्दावन वास मिला तब पता चला की गुरु बिना भगवान् के नहीं रहते, हर जगह बस राधा राधा राधा राधा .....सिर्फ राधा का नाम सुनने को मिलता है क्योकि राधा प्रेम का स्वरुप है जो कृष्ण से प्रेम करे वही श्री राधा है बाकि सब माया है. इस माया मोह से निकालने वाली सिर्फ श्री राधा है. भगवान का जब मन किया की में अपने आप से प्रेम करू तो उनका मन ही श्रीराधा के रूप में प्रकट हो गया. में कोई ज्ञानी नहीं हु मेरे गुरु मेरे मन में बसे है वही सब कुछ करने वाले है हम तो बस उनके गोद में बैठे है. वे जैसा चाहे वैसा कराये. गुरु की कृपा से पता चला की कृष्ण भगवान् के एक एक रोम में अनंत ब्रम्हांड बसते है, तो उनमें ही हम है. हमारे ह्रदय में भी भगवान् बसे है क्योकि जब यह दिल धड़कना बंद करता है तब इस शरीर की कोई अहमियत नहीं रहती इसे जला दिया जाता है या दफना दिया जाता है. इसलिए अपने गुरु से प्रेम करे वे हमें सबके गुरु श्रीराधाकृष्ण के पास पहुंचा देते है. इस बात की सच्चाई श्रीमद भागवत महापुराण में लिखी है उसमे भगवान् श्री कृष्ण कहते है की सच्चा गुरु मेरा ही स्वरुप है इसलिए गुरु ही  श्रीराधाकृष्ण है.

जीवन में गुरु क्यों बनाये ?

  भगवान् ने भी जब अवतार लिया तब भगवान् को भी उपदेश देने के लिए गुरुको आना पड़ता है. क्योकि बिना गुरु के भगवान् भी भगवान् नहीं बन सकते. श्रीराम हो चाहे श्रीकृष्ण दोंनो ही गुरु के पास गए उनसे सीखे वैसे तो भगवान् होने पर उन्हें सब ज्ञान है परन्तु हम जैसे सामान्य जनों को शिक्षा देने हेतु वे भी गुरु के पास जाते है उनकी सेवा करके वे भगवान् बनते है. हमें भगवान् से यह शिक्षा मिलती है की जो गुरु की मन से तन से या धन से सेवा करता है वह भगवान् का ही स्वरुप है.भगवान् और गुरु में कोई अंतर हो ही नहीं सकता. गुरुसे एक कथा सुनने को मिली की महाराष्ट्र के एक संत जिन्हें भगवान ने कई बार दर्शन दिए फिर भी वे अपूर्ण थे क्योकि उन्होंने गुरु नहीं बनाया था, जिसने गुरु नहीं बनाया उसे भगवान् मिलने पर भी उसके मन में आनंद का उद्गम नहीं हो सकता, जब विट्ठल (श्रीकृष्ण) भगवान ने उन्हें गुरु बनाने को बोला तब वे पूर्ण परमेश्वर को प्राप्त हो गए उन भक्त संत का नाम था श्री नामदेवजी. जब उनके गुरूजी से उन्हें भगवान् का स्वरुप का पता चला तब उन्हें ज्ञान हुआ की सिर्फ भगवान् की मूर्ति में ही भगवान् नहीं होते हर जगह हर किसीमें सिर्फ भगवान् ही बसे है. इस तरह के अनंत ब्रम्हांड को चलाने वाले सिर्फ भगवान् ही है.

में गुरुकी महिमा का वर्णन करने में असमर्थ हु इसलिए अपने गुरु की आग्या का पालन करे. उनकी आग्या बस इतनी है की भगवान् को हम हमेशा याद रखे, उन्हें प्यार करे, उनके नाम का गान करे, भगवान् श्रीकृष्ण भी गीता में यह कहते है " हे अर्जुन मैंने तुम्हे जो ज्ञान दिया है उसे तुम भूल जाओ और सिर्फ मेरा ध्यान करो, मुझे प्रेम करो, मुझे अर्पित किया प्रसाद पाओ, अपने आप को मुझे समर्पित कर दो. यही सबसे बड़ा, गहरा और जानने योग्य है, भगवान् गुरु ही प्रेमानंद है जो हमें प्रेम में डुबाकर भगवान् के पास पहोंचाने वाले है.

इसलिए बस श्रीराधा श्रीराधा श्रीराधा श्रीराधा कहते चलो..., भगवान् कही दूर नहीं तुम्हारे अन्दर ही बसे है.

|| जय श्री राधा || 
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|| जय श्री राधा ||

 प्रेम :-



प्रेम में दुसरे का सुख देखा जाता है. में जिसे चाहता हु वह सुखी रहे. प्रेम निस्वार्थ होता है. प्रेम किसीसे भी किया जा सकता है, लेकिन सबसे ज्यादा जरुरी अगर हमारे लिए कोई है तो वे हे हमारे माता पिता, जो अपने माता पिता से प्यार न कर सके वो किसीसे भी प्यार नहीं कर सकता. इसका सबसे अच्छा उदाहरण श्री राम जी का है जिन्होंने अपने पिता की आग्या पर १४ वर्षो का वनवास ख़ुशी ख़ुशी स्वीकार कर लिया. वे चाहे तो राज्य उन्हें मिल सकता था लेकिन वे अपने माता पिता से प्रेम करते थे. प्रभु तो प्रेम के अधीन है, दूसरी बात माता कैकई भी महान है जिसने राम को एक महान कार्य हेतु वनवास प्रदान किया इससे उन्हें काफी भला बुरा सुनने को भी मिला. वैसे भगवान् का जन्म ही दुष्टो का विनाश करने हेतु हुआ था अगर उन्हें सीधे सीधे राज्य मिल जाता तो ... जो भक्त जन है जो भगवान् की पूजा अर्चना करते है उन्हें राक्षसों का भय लगा रहता था राक्षस उन्हें कच्चा खा जाते थे, परीशान करते थे ... गुरु से तो ऐसा भी सुनने को आया है की भक्तजनों की हड्डीयों का ढेर लग गया था इतना राक्षसों का आतंक बढ़ गया था. इन राक्षसों का विनाश और भक्तों पर कृपा करने हेतु भगवान् श्री राम का जन्म हुआ था. कैकई माता ( को यह आदेश की राम को वनवास दिया जाय ) को इसलिए चुना गया की वे बढ़ी साहसी नारीशक्ति थी इकबार जब देवता राक्षसों से बड़े परेशान थे तब राजा दशरथ जो की बड़े शूरवीर योद्धा थे उन्हें देवताओने अपने साथ राक्षसों पर विजय पाने के लिए साथं में बुलाया था .... जब दोनों पक्षों का युद्ध हुआ तब राजा दशरथ का रथ का पहिया रथ से अलग होने वाला था तब माता कैकई जो उनके साथ गयी थी उन्होंने अपनी ऊँगली को पहिये से रथ को जोड़े रखा ताकि राजा दशरथ युद्ध करते रहे उन्हें कोई परिशानी न हो. वे युद्ध पर विजय पाए और उन्हें विजय यानि जित मिली भी. और सच्चा प्रेम का स्वरुप भी यही है की खुदकी परवा न करके अपने पति के लिये दुःख को भी ख़ुशी के साथ सह ले. हमें यह विचार आ सकता है की यह प्रेम कहा गया था जब श्रीराम को उन्होंने वनवास भेजके अपने पति को सबसे बड़ा दुःख दिया. इसमें देश का प्रेम पति के प्रेम से बड़ा होता है जैसे की एक सैनिक भी जब बॉर्डर पर जाता है तो उसके लिए अपने परिवार से ज्यादा देश की महत्वता रहती है. देश यानि अपनी मातृभूमि जिसने हमें जन्म दिया इस मातृभूमि के लिए हर एक कैकई माता अपने बेटे को देश की रक्षा के लिए बॉर्डर पर भेजती है ऐसी माता और बेटे पर हमें गर्व होना चाहिए. यह लिखते हुए में अपने आंसू नहीं रोक पा रहा हु क्योकि में भी तो इस भारत भूमि का ही पुत्र हु. जय श्री भारत, जय श्री राम, माता के चरणों में कोटि कोटि प्रणाम. सीताराम का प्रेम भी बड़ा अद्भुत है....अपनी पत्नी प्रेयसी के लिए कोई सेना, कोई राज्य शासन न होने पर भी जो है उसे ही अपना साथी (श्री हनुमान जी और उनके साथी मित्रों) बनाकर शिवके बड़े भक्त रावन को परास्त किया. श्रीराम और रावन दोनो ही श्री शिवजी के बड़े भक्त थे, श्रीराम से ज्यादा शक्ति, माया, सम्पति में रावन बड़े थे लेकिन चरित्र श्रीरामजी का बड़ा था जिसका चरित्र साफ सुधरा होता है उसे परास्त करने वाला इस धरा पर पैदा होने से पहले मर जाता है. हमने एक पिक्चर देखि होगी सोल्जर जिसका किरदार अल्लू अर्जुन ने बड़े अच्छेसे निभाया है उसमे भी दिखाया है की करैक्टर से बड़ा कोई नहीं ( झुकेका नही साला). झुकेगा तो सिर्फ अपने भगवान् के लिए जो माता पिता और गुरु बने है. एक प्रेम की कहानी मेरे माता पिता की भी है उनका भी प्रेमविवाह हुआ है. मैंने उनके बिच प्यार,लड़ाई, झगडा देखा है लेकिन उन्होंने एक दुसरे का साथ कभी नहीं छोड़ा इससे बड़ा मेरे घर में प्रेम का उदाहरण नहीं है. इसलिए मैंने भी उनके सुझाये हुए लड़की के साथ विवाह किया क्योकि मुझे पता है अगर वे अपने लिए बेस्ट चुन सकते है तो में भी उन्हीका बच्चा हु तो मेरे लिए भी वो बेस्ट ही चुनेगे और उन्होंने चुना भी जिसके साथ में भी खुश हु. मेरी पत्नी भी मेरा बड़े अच्छेसे से ध्यान रखती है. में भी उसे चाहता हु. जय श्री राधा . प्रेम का सबसे बड़ा और प्यारा जोड़ा तो सिर्फ राधाकृष्ण का ही है. क्योकि वे ही हमारे माता,पिता,गुरु,दोस्त,सबकुछ वही बने है ..........................जय श्री राधा.



सेक्स्

बलं बलवतां चाहं कामरागविवर्जितम् । धर्माविरुद्धो भूतेषु कामोऽस्मि भरतर्षभ ।। ११ ।।
 यह गीता का सातवे अध्याय का ११ व श्लोक है जिसमे भगवान् कृष्ण बताते है की 
"में बलवानों का कामनाओं तथा इच्छा से रहित बल हैं। हे भरतश्रेष्ठ (अर्जुन)! मैं वह काम (सेक्स) हूँ , जो धर्म के विरुद्ध नहीं है।"
तात्पर्य : बलवान पुरुष की शक्ति का उपयोग दुर्बलों की रक्षा के लिए होना चाहिए, व्यक्तिगत आक्रमण के लिए नहीं। इसी प्रकार धर्म-सम्मत ( शादी के बाद दोंनो की इच्छा से ) मैथुन (सेक्स) सन्तानोत्पति के लिए होना चाहिए, अन्य कार्यों के लिए नहीं। अतः माता-पिता का उत्तरदायित्व है कि वे अपनी सन्तान को कृष्णभावनाभावित बनाएँ।
यह तात्पर्य "श्री श्रीमद ए.सी.भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद जी का है"

|| जय श्री राधा || 



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 || जय श्री राधा ||


|| Sree Ganeshay Namah ||


भगवान् गणेश शिव शक्ति के पुत्र है. जो संतान अपने माता पिता को ही परमेश्वर माने वही सर्वप्रथम पूजनीय देवता है. हमने बाल गणेश के बारे में एक कहानी जरुर सुनी होगी जिसमे सम्पूर्ण ब्रम्हांड के चक्कर लगाने होते है. जिसमे बाकि सब देवता तो तुरंत अपने वाहनों पर बैठ कर इस दुनिया के चक्कर काटते है लेकिन श्रीगणेश जी अपने मातापिता में ही पूर्ण ब्रम्हांड को देखते है जो सच भी है जिसने हमें इस दुनिया में लाया उस जिव के लिए तो उसके माता पिता ही सर्वस्व है. हम बच्चे अनेकों गलतिया करते है लेकिन वे हमें माफ़ कर देते है. हमें भी चाहिए की जब बुढापे में, हमारे माता पिता, बच्चे जैसा बर्ताव करे तब हमें उनका माता पिता बनकर उनका ध्यान रखना चाहिए. जब हम बच्चे होते है, तब वे हमारी गलतियो पर ध्यान न देकर, हमें सही शिक्षा प्रदान करते है तब हमें भी अपने माता पिता को किसी भी कार्य के लिए गलत न समझकर उन्हें अपने साथ रखना चाहिए बल्कि उन्हें जिस तरह हो उस तरह उन्हें सुख पहोंचना चाहिए. भले ही उनके अन्दर सद्गुण हो या न हो, या दुर्गुणों का भंडार हो उन्हें हमें जब वे गलत हो तब उन्हें डांटना भी चाहिए और उन्हीको प्यार भी करना चाहिए. वे ही पूजनीय है इसलिए श्री गणेश जी ने भी उन्हें अपना सर्वस्व मानकर उन्हिकी परिक्रमा की और वे ही विजयी भी हुए. जो अपने माता पिता को ही भगवान् मानता है उसे भगवान् भी भगवान् मानते है, इसलिए तो श्रीनारायण भगवान् ने अपनेसे पहले श्री गणेशजीको सर्वप्रथम पूजनीय का स्थान दिया. क्योकि मातापिता ही लक्ष्मी नारायण का स्वरुप है वे ही शिव है और स्वयं शक्ति भी. आज कल जिन बच्चों ने अपने माता पिता को साथ रखा है जो अपने माता पिता को ही भगवान् मानता है उसकी सेवा में स्वयं लक्ष्मी जी रहती है, जो धन प्रदान करने वाली देवी है. जो जिव सिर्फ पैसो को ही अपना मानता है उसके मन में शांति नहीं है और शांति से बड़ा धन कोई नहीं. जो शिवशक्ति को ही अपने माता पिता में देखता है उसके जीवन में धन तो रहता ही है लेकिन शांति के साथ. जिन के पास धन नहीं है और वे अपने माता पिता की सेवा करना चाहते है उनके लिए सिर्फ इतना कहना चाहता हु की जब हम छोटे थे तब उन्होंने अपने आप को भूल कर सिर्फ हमें प्रधानता समझकर हमें वह सब दिया जिसकी हमें जरुरत है. तो क्या हम उन्हें दो समयकी रोटी, और प्यार नहीं दे सकते. 
शादी होने के बाद एक पति पत्नी को एकांत (एक दुसरे से प्यार ) की जरुरत होती है. यह सब होने के पहले मातापिता का भी कर्त्तव्य बनता है की वे अपने पुत्री या पुत्र को इस काबिल बनाये की वे स्वयं सारी जिम्मेदारिया खुद उठा सके उन्हें अपने मातापिता पर निर्भर न होना पड़े. जो अपने बच्चो को इस तरह शिक्षा देते है उनके बच्चे उनके साथ हमेशा रहते है. बच्चे को सिर्फ पैसा कमाना सिखा दे इसको सही शिक्षा नहीं कहते. पैसा जो कमाया है, उस धन को परमार्थ यानि दुसरों की मदत करने में भी लगाये. जब हम अपने बच्चों को दूसरों के सेवा करना सिखाते है तब बच्चे भी अपने माता पिता का अच्छेसे ध्यान रख पाए इस काबिल हो जाते है. उन्हें भी ज्ञान हो जाता है की सच्चे भगवान् तो हमारे माता पिता ही है. उन्हिकी सेवा करने से प्रभु प्रसन्न होते है. प्रभु प्रसन्न होने पर हमें कुछ पाना बाकि नहीं रहता, सबकुछ भगवान् ही बने है, वे ही हमें अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष सबकुछ जो हमारे लिए सही है वे प्रदान करते है.
दोस्तों में कोई ज्ञानी नहीं हु मेरे मन में जो कुछ आ रहा है वही में लिख रहा हु. में भी अपने आप से सीखता हु की जो में लिख रहा हु उसे में भी अपने जीवन में एक सौ आठ प्रतिशत उतार सकू.

"त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव, त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देव देव"

|| जय श्री राधा ||

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 हम सब से पहले रामायण के बारे में समझते है.

रा = राम 

माँ = माँ सीता 

य  = जय + विजय   

न = नारायण 

नारायण यानि विष्णु भगवान् के जो पार्षद थे जय विजय, उन्हें भगवान् की कृपा से भेजा गया था, क्योकि रामजी ही  नारायण है. दुनिया जो नारायण चला रहे है उन्हें अपने बच्चो यानि हमें ही शिक्षा देने हेतु इस धरा पर अवतार लेना था. इसलिए भगवान् के पार्षद को ही विल्लेन का रोल मिला और नारायण ने राम का रोल निभाया और जो सीता जी है, सबसे बड़ा किरदार इन्हिका है क्योकि वे स्वयं शिवजी है जानते है किस तरह....

S - शिव 

I - इश्वर 

T - त्रिनेत्रधारी  

A - अम्बा के पति  ( अम्बा ही कृष्ण है - जल्द ही जानेंगे )

राम और रावण दोंनो ही श्री शिवजी के भक्त थे लेकिन श्रीराम जी को मर्यादापुरुषोत्तम कहा गया है, श्री सीताजी जो श्रीराम की अर्धांगिनी है उन्हें किडनेप करने का जो प्लान है वह रावण का नहीं नारायण का ही है, क्योकि अपनी माँ को भी कोई किडनेप करता है भला, उन्हें तो बस एक रोल मिला है जिसको रावन ने बड़े अच्छी तरह निभाया. इस रामायण के डायरेक्टर, प्रोडूसर, एक्टर स्वयं नारायण ही है क्योकि नारायण के अलावा कुछ है ही नहीं. वही इस सृष्टि का ब्रम्हा रूप से निर्माण करते है, नारायण रूप से पालन करते है और शिव रूप से अंत करते है. 

हम आम इन्सान जिस तरह नारीशक्ति को गलत नजरिये से देखते है तब राम को तो आना ही पड़ेगा अपनी शक्ति को बचाने के लिए. सबसे सिंपल एक बात कहना चाहता हु की भगवान् न ही पुरुष होते है न ही श्री वह प्रेम रूप से हर जिव के ह्रदय में वास करते है. सीताराम,राधेश्याम,शिवशक्ति,लक्ष्मीनारायण  कोई अलग भगवान् नहीं है. वे सब एक परम आत्मा है जो सबके दिल में परमात्मा के रूप में बसते है. सीता,राधा,शिव,लक्ष्मी एक ही है और राम,श्याम,शक्ति,नारायण एक ही है, यह सब ज्ञान की बाते मुझे अपने गुरु से ही प्राप्त हुई है बाकि में कुछ नहीं हु सब गुरुदेव का है. गुरुदेव ही श्री राधारानी है.  

शिव ही राधा है क्योकि दोंनो ही एक है जो परम कृपालु है. जो इनका हो जाता है उसे भगवान् अपने आप को सौप देते है. भगवान् ही राम है इसलिए सीता बनकर शिवजी की सेवा करते है, शिव ही राधा है जिनकी सेवा में स्वयं कन्हैया तत्पर रहते है. यानि यह अपने आपको कभी बड़ा नहीं मानते, हमेशा एक दुसरे की सेवा करते है. हमेशा पति पत्नी बनकर एक दुसरे का साथ निभाते है. दोस्त बनकर दोस्ती निभाते है, पिता बनकर बेटे का ध्यान रखते है. गुरु बनकर अपने शिष्य को ज्ञान देते है. माँ बनकर दुलार करते है.

इस दुनिया में भगवान् के अलावा कोई है ही नहीं जो भगवान् को भूल जाये उसे माया नचाती है. जिसे भगवान् ने स्वीकार कर लिया उसके लिए स्वयं भगवान् नाचते है जिस तरह गोपियो के लिये नाच रहे है. इसके लिए हमें सिर्फ भगवान् को भगवान् न मानकर बस अपना प्रियतम मानना चाहिए. जिस तरह एक श्री अपने पति को अपना सबकुछ सौप देती है उसी तरह अगर यह मनुष्य अपना सबकुछ भगवान् को सौप दे तो भगवान् उसे अपने मन के मंदिर में दीखते ही है. मंदिर ही एक ऐसी जगह है जहा मन में ही भगवान् का दीदार यानि भगवान् दिख सकते है.

|| जय श्री राधा || 


 

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|| श्रीराधा || 


श्री राधा ही है जिन्होंने श्रीकृष्ण को बांसुरी सिखाई, जिस तरह एक सेवक अपने स्वामी से तनख्वा लेता है और बदलेमे स्वामी का काम करता है उसी तरह श्री राधा श्रीकृष्ण की स्वामिनी है, वे उन्हें प्रेम करती है बदलेमे श्रीकृष्ण श्रीराधा श्रीराधा श्रीराधा श्रीराधा सिर्फ श्रीराधा बांसुरी से गाते है. क्योकि श्रीकृष्ण को बांसुरी प्रदान करने वाली श्रीराधा ही तो है, क्योकि जब कोई सेवक स्वामी के पास उनका काम करने जाता है तो स्वामी अपने सेवक को सारी चीजे प्रदान करता सिखाता है जिससे उसका सेवक अच्छेसे काम कर पाए. यह शायद ही किसी ग्रन्थ में लिखा होगा लेकिन मेरे भगवान् श्रीगुरुदेव श्रीराधा रानी की कृपा से आज इस विषय पर लिखने का मन किया. हम मनुष्य अपने आप को माने है तभी हमसे गलतिया होती है लेकिन जब हम अपने जीवन का कण्ट्रोल श्रीराधा के श्री चरणों में अर्पित कर देते है तो सब ज्ञान बिना किसीके सिखाये मन में आ जाता है क्योकि सबको सिखाने वाली श्री राधा मन में ही तो बसी है.

म = महारानी श्रीराधा 

न = नन्द के लाडले को प्यार करने वाली.

म = माधुर्य की चरम सीमा 

न = वृन्दावन की रानी श्री राधा 

कितना भी श्रीराधा की धारा में डूबने की कोशिश की जाय लेकिन श्रीराधा डूबना नहीं तैरना सिखाती है. मारना नहीं अपने प्यारे पर मरना सिखाती है. जो श्रीराधा को जान ले ऐसा मनुष्य हो ही नहीं सकता. हम तो श्रीकृष्ण के सखा है. श्रीकृष्ण ही राधा है, राधा ही मन है, मन श्रीकृष्ण के बिना अधुरा है इसलिए मन से एक बार राधाकृष्ण कहके देखो क्या पता उनका दर्शन मन में ही हो जाये. मंदिर इसलिए मंदिर नहीं होता क्योकि उसमे भगवान् की मूर्ति है,

मन = मन में 

दिर = दीदार हो जाये ( दिख जाये)

सबसे बड़ा मंदिर तो हमारा मन ही है जिसमे भगवान् मूर्ति नहीं स्वयं परमात्मा के रूप में बैठे है. यह सब गुरुदेव श्रीराधा की कृपा से ही आत्मज्ञान मिल सकता है. बाकि कितनी ही किताबे पढलो अपूर्ण ही बने रहोगे. पढना ही है तो अपने मन को पढो वह सिर्फ श्रीराधा श्रीराधा श्रीराधा श्रीराधा गाना ही सिखाएगा, जो श्रीराधा के भरोसे हो जाये वही श्रीकृष्ण है बाकि श्रीकृष्ण भी वृन्दावनेश्वरी से अलग होने पर द्वारकाधिष कहलाये. वैसे तो श्रीराधा ही श्रीकृष्ण है, शरीर भले दो दिखाई दे लेकिन आत्मा एक ही है. श्रीकृष्ण का मन यानि स्वयं श्रीकृष्ण प्रेम रूप से श्रीराधा बनकर वृन्दावन में है. उनके अलावा हमारा है ही कौन, सब जिव माया में फसे है और सोचते है की भगवान को भी हम अपने जैसा बनाये. लेकिन श्रीकृष्ण श्री गीता जी में कहते है की..........( जय श्री राधा endless )

|| जय श्री राधा ||

दोस्तों इस माया से मुक्त सिर्फ श्री राधा कर सकती है 
क्योकि वही मायापति भगवान् का प्रेम है 
जो भगवान् को प्रेम करे वही श्रीराधा श्रीराधा कहे


|| जय श्री राधा ||




  


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