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जय श्री राम

रा = राधा + माँ = माधव



 केरल देश में मेधावी नामके राजा राज्य करते थे. दुश्मन  राजा ने उनके देश पर आक्रमण कर दिया. युद्ध में मेधावी राजा मारे गए. उनका एक छोटा पुत्र था जिसका नाम चंद्रहास था. राजाके मारे जाने पर चंद्रहास की धाय माँ उन्हें चुपके से दुसरे देश कुंतलपुर ले गयी. वहा पर धाय माँ उस राजकुमार का पालन पोषण करने लगी. एक दिन देवर्षि नारद जी उसी नगर से निकल रहे थे. उन्हें चन्द्रहासजी पर कृपा करनी थी तो देवर्षि नारदजी ने उन्हें भगवान् का नाम, मंत्र बताया. देवर्षि नारद से मिलने के बाद वे भगवान् में मन लगाकर उनकी पूजा सेवा करने लगे. कुंतलपुर देश के राजा भी भगवान् में मन लगाकर उनकी सेवा करते थे. उन राजा के एक लालची मंत्री था उसीके हाथ में राज्य की देखरेक की जिम्मेदारी थी. वो हमेशा धन जुटाने में लगा रहता था. एक दिन चन्द्रहासजी भगवान् का कीर्तन करते हुए उस मंत्री के महल के सामने से गुजर रहे थे उस समय महल में मंत्री के बेटे जो भगवान् को बहोत् मानते थे वे ब्राह्मणों के साथ भगवानकी चर्चा कर रहे थे जब उन्होंने चंद्रहासजी का भजन सुना तो उन्होंने उसे महल में बुलवाया. ब्राम्हनोने मंत्री से कहा की तुम इस बच्चे की देखभाल करो, यह इस कुंतलपुर देश का राजा बनेगा. मंत्री को ब्राह्मनोकी यह बात अच्छी नहीं लगी वे अपने पुत्र को राजाकी गद्दी पर बिठाना चाहते थे. उसने एक षड़यंत्र किया....मंत्री ने एक खास आदमी को कहा की इस चंद्रहास को जंगल में जाकर मार देना. उस बच्चे को बहलाकर वह कसाई जंगल में ले गया. भगवान् पर चंद्रहासका बहोत प्रेम होने से वह बात को समझ गया की उसे मरने के लिए जंगल में लाया गया है. वह उस कसाई से कहता है मुझे मारने के पहले मुझे एक बार भगवान् का भजन करने दो. ऐसाही होता है वह बालक भजन करता है....भजन सुनते ही उस कसाई को उस बालक पर दया आती है. लेकिन डर भी लगता है की अगर मैंने इसे नहीं मारा तो मंत्री मुझे मार डालेगा. चंद्रहासके एक पैर में ६ उँगलियाँ होती है.....वह कसाई एक ऊँगली को काट लेता है और उस बालक यानि चन्द्रहासको जीवित छोड़ देता है. वह कसाई उस ऊँगली को मंत्री के पास दिखाता है.....मंत्री खुश हो जाता है की मैंने ब्रम्हानोकी भविष्यवाणी को विफल कर दिया. वह चंद्रहास दुःख के मारे करुण स्वर से भगवान् को याद कर रहा होता है उसी समय कुंतलपुर देश से सटे हुए एक राज्य के राजा वहासे गुजर रहे होते है. उनके कोई पुत्र नहीं होता है. वे उस बालक को गोद ले लेते है. चंद्रहास को राजा और प्रजा बड़ा प्रेम करने लगती है.....धीरे धीरे चंद्रहास बड़े हो जाते है और उन्हें उस देश का राजा बना दिया जाता है. हर साल की तरह उस राज्य से १०,००० स्वर्ण मुद्राए कर के रूप में कुंतलपुर भेजी जाती है और कुछ खास उपहार भी भेजे जाते है. उस राज्यकी व्यवस्था देखने के लिए कुंतलपुर देश से वह लालची मंत्री उस राज्यमे आता है .....आतेही वह क्या देखता है की जिसको उसने बरसो पहले मारने का षड़यंत्र किया था वह आज भी जिन्दा है. इसका जिन्दा रहना ठीक नहीं वह दुबारा उसे मारने की लिए उसके हाथ में एक चिट्ठी देता है और कहता है.....बेटा इसे मेरे पुत्र के पास दे देना, मुझे किसी और पर भरोसा नहीं है इसलिए में तुम्हे भेज रहा हु. चंद्रहास उस चिट्ठी को लेकर कुंतलपुर के लिए रवाना हो जाता है. जब वह कुंतलपुर पहोंचता है तब उसे बड़ी थकान महसूस होती है वह पासके ही बगीचे में कुछ देर के लिए लेट जाता है. उसी समय उस देश के राजा की राजकुमारी और मंत्री की बेटी विषया उस बगीचे में घूम रही होती है. विषया को वह राजकुमार दिख जाता है... वह उसके पास जाती है और उसके  हाथ की चिट्ठी खोलती है. उस चिट्ठी में लिखा होता है ..... "बेटा इस राजकुमार को आते ही विष दे देना"   उस मंत्री की बेटी को लगता है की पिताजी ने इस चिठ्ठी में कुछ लिखने में भूल कर दी है उसे लगता है की पिता ने मुझे इस राजकुमार को देने के लिए कहा होगा. तो वह क्या करती है की पत्र में विष की जगह वह विषया कर देती है. उस पत्र को बंद करके वह उस राजकुमार के हाथ में दे देती है और वह वहासे निकल जाती है. कुछ देर बाद जब उस राजकुमार की आँख खुलती है तो वह उस मंत्री के बेटे के पास जाकर वह पत्र उसे देता है. पत्र के मुताबिक मंत्री का बेटा अपनी बहन विषया का विवाह चंद्रहास जी के साथ कर देते है. मंत्री वापस आता है कुंतलपुर देश में और देखता है की वह राजकुमार अभी जिन्दा है और सोचता है ....भले मेरी बेटी विधवा हो जाये में इसे मरकर ही रहूँगा. तो वह अपने आदमी को बुलाता है और कहता है की तुम सवेरे माँ भवानी के मंदिर में चले जाना वहा जैसे ही कोई पूजा करने आये उसे मार डालना. वह उस राजकुमार से भी कहता है की बेटा तुम सवेरे माता के मंदिर में पूजा करने चले जाना. जब उस मंत्री के बेटी की शादी हो रही थी तब उस देश के राजा भी उस शादी में आये हुए थे.उन्हें चंद्रहासजी पसंद आ गए और उन्होंने सोचा की मेरी बेटी के लिए भी यह राजकुमार योग्य होगा. तो वे उस मंत्री के बेटे को उस राजकुमार के पास भेजते है की तुम उसे बुला लाओ. मंत्री का बेटा उस राजकुमार को बुलाने के लिए जाता है. मंत्री का बेटा कहता है .... चंद्रहासजी आपको राजाने बुलाया है.....चंद्रहास कहता है लेकिन मंत्री जी ने मुझे मंदिर जाने को कहा है......मंत्री का बेटा कहता है .....आपकी जगह में मंदिर चला जाता हु और आप राजा  के पास चले जाइये. वैसे ही होता है राजकुमार का राजा की बेटी के साथ विवाह हो जाता है और वहा मंदिर पर मंत्री का बेटा मारा जाता है. जब मंत्री को यह बात पता चलती है की उसका बेटा ही मंदिर पर गया है तो वह भी मदिर पर भागते भागते जाता है और देखता है की मेरा बेटा मर चूका है. पच्छाताप में वह भी अपना गला काट देता है. कुछ समय बाद चंद्रहासजी मंदिर पर आते है और देखते है की मंत्री और उनका बेटा मरा पड़ा है,उनकी यह दशा देख कर उसे लगता है की यह सब मेरे कारन ही हुआ है इसलिए वह भी अपने आप को मारने जाता है तो स्वयं माँ भगवती वहा प्रगट हो जाती है और कहती है ... बेटा रुको तुम्हे मरने की जरुरत नहीं है. सबको अपने कर्मो का ही फल मिलता है. तुम वरदान मांगो .... चंद्रहासजी कहते है माँ मेरी भक्ति और बढे और यह मंत्री और मंत्रीं का बेटा पुनः जीवित हो जाये और इस मंत्री में सद्बुद्धि आ जाये यही मेरी कामना है. माँ तथास्तु कहकर अंतर्धान हो जाती है. फिर सब राज्य में लौट आते है और अपना जीवन भगवान् की भक्ति में लगाकर पूर्ण करते है.

जय श्री राधा 

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दोस्तो भगवद गीता एक रोडमैप की तरह है, हमारे शरीर का एक दिन अंत होने वाला है, हम अपने पुण्य और पापों को ही साथ ले जाएंगे। हमसे शुभ कर्म ज्यादा हो, हमे ज्ञान प्राप्त हो, क्या सही है और क्या गलत है इसकी समझ प्राप्त करने में भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन का यह अद्भुत संवाद हमे भगवान की और ले जाने में सहायता करता है। इसलिए भगवद गीता से हमे जुड़ना जरूरी है।
जय श्री राधा 
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जय श्री राधा 
हा दोस्तो भगवान हमारे दिल में ही वास करते है, भगवद गीता का यह श्लोक प्रमाण है.......
वे इस श्लोक में कह रहे है कि में ही सारे जीवो के हृदय में स्थित परमात्मा हु, में ही समस्त जीवो का आदि, मध्य तथा अंत हु।
दोस्तो मंदिर में भगवान के दर्शन तो हम करते ही है, लेकिन भगवान मंदिर के अलावा हमारे मन में ही अपना दीदार (दिखना) करवाते है। लेकिन उसके लिए मन का साफ होना जरूरी है,
हमसे अनंत जन्मों से अनेकों विभिन्न प्रकार के अच्छे तथा बुरे कर्म किए है, और उनका फल हमे भोगना ही पड़ता है लेकिन जब हम प्रति दिन भगवान को स्मरण करते है, उनका भजन करते है, उन्हें देखते है तो वे पाप कर्म मानो तलवार से छोटे होकर सुई जितना ही दर्द देते है यानी हमारे पाप कर्मों को अति सूक्ष्म कर देते है और शुभ कर्मों का हमे अच्छा फल भी देते है। 
इसलिए दिन में कम से कम एक बार हमे भगवान को जरूर याद कर लेना है।
जय श्री राधा 
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जय श्री राधा 

नमस्ते दोस्तों भगवद गीता के अध्याय 18 में 65 वे श्लोक में भगवान कह रहे है कि......
सदैव मेरा चिंतन करो, मेरे भक्त बनो, मेरी पूजा करो और मुझे नमस्कार करो।
इस प्रकार तुम निश्चित रूप से मेरे पास आओगे ।
में तुम्हे वचन देता हूँ, क्योंकि तुम मेरे मित्र हो ।
दोस्तो भगवान को पाने के लिए हमे सबसे पहले भगवान से रिश्ता बनाना होगा, हम उन्हें अपना दोस्त, बेटा, पिता या और कोई रिश्ता हम भगवान से बना सकते है। भगवान मिलना मुश्किल है लेकिन भगवान को अपना रिश्तेदार बनाकर जल्द से जल्द मिला जा सकता है।
दोस्तो श्लोक में भगवान कह रहे है कि सदैव मेरा चिंतन करो, लेकिन पहले पहले हमारा चिंतन नहीं होगा, लेकिन बार बार भगवान को याद करने से, उनका भजन करने से, उनकी सेवा करने से धीरे धीरे भगवान में हमारा मन लगने लगेगा। जब हम भगवान के सच्चे भक्त बनेंगे, भगवान की पूजा करेंगे, उन्हें नमस्कार करेंगे तो आसानीसे भगवान हमे मिल जाएंगे
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Jai Shree Radha 

 दोस्तों भगवद गीता के अध्याय 9 के 19 वे श्लोक में भगवान कह रहे है कि में ही ताप प्रदान करता हु, और सूर्य को सुर्यनारायण भी कहते है, यानी सूर्य और कोई नहीं भगवान कृष्ण ही है, वे ही अमर है और हमारे जीवन की मृत्यु रूप में भी वही आते है, वे ही आत्मा है और शरीर भी वही है, बस फर्क इतना है कि शरीर जन्म लेता है इसलिए उसकी मृत्यु निश्चित है और आत्मा अमर है इसलिए उसे कोई मार नहीं सकता।
दोस्तो हम किसी जगह घूमने या किसी काम से जाते है तो उसकी हम पूरी तैयारी करते है, वहां कितने पैसे लगेंगे, क्या पहनेंगे, क्या क्या खायेंगे इस तरह की अनेकों तैयारियां हम करते है, लेकिन जब अंत में भगवान के पास जाना है तब उसकी तैयारी भी हमे करनी चाहिए।
मन में सवाल आता है कि भगवान के पास जाने के लिए क्या करना पड़ेगा
देखो दोस्तो भगवान हमारा दो तरह से वेलकम करते है
अगर हमने अच्छे कर्म किए तो वे कृष्ण बनकर मिलेंगे और हमसे प्रेम करेंगे
और बुरे कर्म किए तो कृष्ण ही यमराज बनकर हमें हमारे बुरे कर्म की सजा भुगतवाकर निष्पाप करके पुनः हमे मौका देते है, लेकिन हमे मनुष्य शरीर मिले यह जरूरी नहीं, मनुष्य शरीर कई योनियों में से गुजरने के बाद मिलेगा।
इसलिए यह मनुष्य शरीर की बहुत अहमियत है, हम जो भी कर रहे है उसे करते करते अगर भगवान को याद कर लिया तो सहज ही भगवान हमे मिल सकते है।
दोस्तो भगवान की और कदम बढ़ाना है तो दिन में कम से कम एक बार महामंत्र गाना चाहिए, जो इस तरह है......
"हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे"
यह मंत्र भजन की तरफ इक नींव बनता है,
इस मंत्र को हर दिन गाना चाहिए।
जय श्री राधा 
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मेरे प्रिय मित्रो,
हम सबको पता है वृन्दावन में रहना आसान नहीं है, लेकिन भगवान कृष्ण ने भगवद गीता में कुछ इस तरह परम गुप्त रहस्य बताया है, जो कुछ इस तरह है.......
इसका मतलब होता है.....
मैं ही लक्ष्य, पालनकर्ता, स्वामी, साक्षी, धाम, शरणस्थली तथा अत्यंत प्रिय मित्र हु ।
मैं सृष्टि तथा प्रलय, सबका आधार, आश्रय तथा अविनाशी बीज भी हूँ।
यानी हम कृष्ण का नाम गाते है, तो हम अनजाने में भी वृन्दावन में ही रह रहे है, लेकिन कृष्ण जल्दी पाने का बस एक ही रास्ता है और वो है श्रीराधा, श्रीराधा ही है जो हमें कृष्ण से समयसे पहले यानी मृत्यु से पहले कृष्ण से मिलवा देगी ।
जय श्री राधा 
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दोस्तो जीवन में कई पडाव आते है, कभी दुख आता है तो कभी सुख मिलता है, यह सब क्यों होता है, इस तरह के अनेक सवाल मन में आते ही है। 

इन सब सवालों के जवाब आज सुलझाने वाले है, 
इस दुनिया में जो कुछ भी हो रहा है, इसमे भगवान ही सब कुछ बने हुए है, वही इंसान है और वे ही ईश्वर है, फर्क बस इतना है की इंसान लेना जानते है, और भगवान देते है। भगवान सिर्फ मूर्ति में ही नही हर इंसान के दिल में भी बसते है, जिसने भगवान को जान लिया उसने सब कुछ जान लिया ऐसा समझना चाहिए, इसलिए हमे कोशिश करनी है की हमसे गलतीसे भी किसका दिल न दुखे, सबको हम खुश नही रख सकते, हमे बस भगवान को खुश करना है, उनके खुश होने के बाद हमारे जीवन में भी खुशियां आ जाती है।
भगवान को खुश करने का बस एक ही रास्ता है और वह है उनके बच्चो का ध्यान रखना, जो राह में भटके है उन्हें राह दिखाना, जिसे भूख लगी है उसे खाना खिलाना, जिसे चोट लगी है उसे दवाई लगाना, जो यह सब ना कर पाए उसके लिए बस एक ही काम है और वह है श्रीराधा का नाम गाना, बस श्रीराधा ही जो हमे कन्हैया से मिलाएगी। इसलिए श्रीराधा श्रीराधा गाते रहो, अपने जीवन में खुशियां लाते रहो।

Jai Sree Radha.......
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श्री गणेशाय नमः


दोस्तो जैसा कि हमे पता है, गंगा जी, जो की श्री नारायण भगवान के चरण कमलों से प्रकट हुई है, यानी नारायण भगवान ही गंगाजी बनकर बह रहे है, उन्हें संभालने की ताकत सिर्फ श्री शिवजी के पास है, इसलिए उन्होंने श्री गंगा जी को अपने सिर पर धारण किया, इसी लिए वह हिमालय से यानी श्री शिवजी के ससुराल से निकलती है, शिवजी को अपनी प्रिया पार्वती से बहोत प्रेम है इसलिए गंगाजी हिमालय से निकलती है शिव बनकर, जब यह नदी बहते बहते समुंदर (बंगाल की खाड़ी) में मिल जाती है, समुंदर में जाते ही सूर्यनारायण भगवान उसे तपाते है और वह बाफ (ब्रम्हा) बनकर आसमान में चली जाती है, पानी में H20 यानी हाइड्रोजन और ऑक्सीजन होता है, जो को हम सांस में लेते है, सांस कोई और नही स्वयं ब्रम्हा बनते है, इसलिए ब्रम्हा की पूजा नही की जाती, क्योंकि उन्हें तो हम सांस के जरिए हर वक्त ले ही रहे है, बर्फ ( शिवजी ), पानी (विष्णुजी) जिन्हे हम देख सकते है उन्ही की ही तो पूजा होगी ना, जय श्री राधे 

इस पूरी थियरी का मतलब साफ है, ये तीनो देवता कोई अलग नहीं है, तीनो एक ही भगवान के प्रकट किए हुए है, और वह है प्रेम के प्यारे श्री राधाकृष्ण, प्रेम के बैगैर ना तो जन्म हो सकता है, न ही कुछ और.........
जय श्री राम 
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|| जय श्री राधा ||

दोस्तों जीवन में गुरुका होना उतना ही जरुरी है जितना इन्सान के लिए साँस लेना. बिना ओक्सिजन के जैसे हमारा शरीर नहीं रह सकता वैसे ही हमारे मन में भगवान् बसे होते है उन्हें जानने के लिए गुरु का होना जरुरी है. मैंने तो मेरे गुरु को पहचान लिया वो है शिव पार्वती जो हमारे माता पिता के दिल में बसे होते है. शरीर को छोड़ा जा सकता है लेकिन परमात्मा को नहीं। गुरु की कृपा से जब कुछ दिनों का वृन्दावन वास मिला तब पता चला की गुरु बिना भगवान् के नहीं रहते, हर जगह बस राधा राधा राधा राधा .....सिर्फ राधा का नाम सुनने को मिलता है क्योकि राधा प्रेम का स्वरुप है जो कृष्ण से प्रेम करे वही श्री राधा है बाकि सब माया है. इस माया मोह से निकालने वाली सिर्फ श्री राधा है. भगवान का जब मन किया की में अपने आप से प्रेम करू तो उनका मन ही श्रीराधा के रूप में प्रकट हो गया. में कोई ज्ञानी नहीं हु मेरे गुरु मेरे मन में बसे है वही सब कुछ करने वाले है हम तो बस उनके गोद में बैठे है. वे जैसा चाहे वैसा कराये. गुरु की कृपा से पता चला की कृष्ण भगवान् के एक एक रोम में अनंत ब्रम्हांड बसते है, तो उनमें ही हम है. हमारे ह्रदय में भी भगवान् बसे है क्योकि जब यह दिल धड़कना बंद करता है तब इस शरीर की कोई अहमियत नहीं रहती इसे जला दिया जाता है या दफना दिया जाता है. इसलिए अपने गुरु से प्रेम करे वे हमें सबके गुरु श्रीराधाकृष्ण के पास पहुंचा देते है. इस बात की सच्चाई श्रीमद भागवत महापुराण में लिखी है उसमे भगवान् श्री कृष्ण कहते है की सच्चा गुरु मेरा ही स्वरुप है इसलिए गुरु ही  श्रीराधाकृष्ण है.

जीवन में गुरु क्यों बनाये ?

  भगवान् ने भी जब अवतार लिया तब भगवान् को भी उपदेश देने के लिए गुरुको आना पड़ता है. क्योकि बिना गुरु के भगवान् भी भगवान् नहीं बन सकते. श्रीराम हो चाहे श्रीकृष्ण दोंनो ही गुरु के पास गए उनसे सीखे वैसे तो भगवान् होने पर उन्हें सब ज्ञान है परन्तु हम जैसे सामान्य जनों को शिक्षा देने हेतु वे भी गुरु के पास जाते है उनकी सेवा करके वे भगवान् बनते है. हमें भगवान् से यह शिक्षा मिलती है की जो गुरु की मन से तन से या धन से सेवा करता है वह भगवान् का ही स्वरुप है.भगवान् और गुरु में कोई अंतर हो ही नहीं सकता. गुरुसे एक कथा सुनने को मिली की महाराष्ट्र के एक संत जिन्हें भगवान ने कई बार दर्शन दिए फिर भी वे अपूर्ण थे क्योकि उन्होंने गुरु नहीं बनाया था, जिसने गुरु नहीं बनाया उसे भगवान् मिलने पर भी उसके मन में आनंद का उद्गम नहीं हो सकता, जब विट्ठल (श्रीकृष्ण) भगवान ने उन्हें गुरु बनाने को बोला तब वे पूर्ण परमेश्वर को प्राप्त हो गए उन भक्त संत का नाम था श्री नामदेवजी. जब उनके गुरूजी से उन्हें भगवान् का स्वरुप का पता चला तब उन्हें ज्ञान हुआ की सिर्फ भगवान् की मूर्ति में ही भगवान् नहीं होते हर जगह हर किसीमें सिर्फ भगवान् ही बसे है. इस तरह के अनंत ब्रम्हांड को चलाने वाले सिर्फ भगवान् ही है.

में गुरुकी महिमा का वर्णन करने में असमर्थ हु इसलिए अपने गुरु की आग्या का पालन करे. उनकी आग्या बस इतनी है की भगवान् को हम हमेशा याद रखे, उन्हें प्यार करे, उनके नाम का गान करे, भगवान् श्रीकृष्ण भी गीता में यह कहते है " हे अर्जुन मैंने तुम्हे जो ज्ञान दिया है उसे तुम भूल जाओ और सिर्फ मेरा ध्यान करो, मुझे प्रेम करो, मुझे अर्पित किया प्रसाद पाओ, अपने आप को मुझे समर्पित कर दो. यही सबसे बड़ा, गहरा और जानने योग्य है, भगवान् गुरु ही प्रेमानंद है जो हमें प्रेम में डुबाकर भगवान् के पास पहोंचाने वाले है.

इसलिए बस श्रीराधा श्रीराधा श्रीराधा श्रीराधा कहते चलो..., भगवान् कही दूर नहीं तुम्हारे अन्दर ही बसे है.

|| जय श्री राधा || 
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 || जय श्री राधा ||


|| Sree Ganeshay Namah ||


भगवान् गणेश शिव शक्ति के पुत्र है. जो संतान अपने माता पिता को ही परमेश्वर माने वही सर्वप्रथम पूजनीय देवता है. हमने बाल गणेश के बारे में एक कहानी जरुर सुनी होगी जिसमे सम्पूर्ण ब्रम्हांड के चक्कर लगाने होते है. जिसमे बाकि सब देवता तो तुरंत अपने वाहनों पर बैठ कर इस दुनिया के चक्कर काटते है लेकिन श्रीगणेश जी अपने मातापिता में ही पूर्ण ब्रम्हांड को देखते है जो सच भी है जिसने हमें इस दुनिया में लाया उस जिव के लिए तो उसके माता पिता ही सर्वस्व है. हम बच्चे अनेकों गलतिया करते है लेकिन वे हमें माफ़ कर देते है. हमें भी चाहिए की जब बुढापे में, हमारे माता पिता, बच्चे जैसा बर्ताव करे तब हमें उनका माता पिता बनकर उनका ध्यान रखना चाहिए. जब हम बच्चे होते है, तब वे हमारी गलतियो पर ध्यान न देकर, हमें सही शिक्षा प्रदान करते है तब हमें भी अपने माता पिता को किसी भी कार्य के लिए गलत न समझकर उन्हें अपने साथ रखना चाहिए बल्कि उन्हें जिस तरह हो उस तरह उन्हें सुख पहोंचना चाहिए. भले ही उनके अन्दर सद्गुण हो या न हो, या दुर्गुणों का भंडार हो उन्हें हमें जब वे गलत हो तब उन्हें डांटना भी चाहिए और उन्हीको प्यार भी करना चाहिए. वे ही पूजनीय है इसलिए श्री गणेश जी ने भी उन्हें अपना सर्वस्व मानकर उन्हिकी परिक्रमा की और वे ही विजयी भी हुए. जो अपने माता पिता को ही भगवान् मानता है उसे भगवान् भी भगवान् मानते है, इसलिए तो श्रीनारायण भगवान् ने अपनेसे पहले श्री गणेशजीको सर्वप्रथम पूजनीय का स्थान दिया. क्योकि मातापिता ही लक्ष्मी नारायण का स्वरुप है वे ही शिव है और स्वयं शक्ति भी. आज कल जिन बच्चों ने अपने माता पिता को साथ रखा है जो अपने माता पिता को ही भगवान् मानता है उसकी सेवा में स्वयं लक्ष्मी जी रहती है, जो धन प्रदान करने वाली देवी है. जो जिव सिर्फ पैसो को ही अपना मानता है उसके मन में शांति नहीं है और शांति से बड़ा धन कोई नहीं. जो शिवशक्ति को ही अपने माता पिता में देखता है उसके जीवन में धन तो रहता ही है लेकिन शांति के साथ. जिन के पास धन नहीं है और वे अपने माता पिता की सेवा करना चाहते है उनके लिए सिर्फ इतना कहना चाहता हु की जब हम छोटे थे तब उन्होंने अपने आप को भूल कर सिर्फ हमें प्रधानता समझकर हमें वह सब दिया जिसकी हमें जरुरत है. तो क्या हम उन्हें दो समयकी रोटी, और प्यार नहीं दे सकते. 
शादी होने के बाद एक पति पत्नी को एकांत (एक दुसरे से प्यार ) की जरुरत होती है. यह सब होने के पहले मातापिता का भी कर्त्तव्य बनता है की वे अपने पुत्री या पुत्र को इस काबिल बनाये की वे स्वयं सारी जिम्मेदारिया खुद उठा सके उन्हें अपने मातापिता पर निर्भर न होना पड़े. जो अपने बच्चो को इस तरह शिक्षा देते है उनके बच्चे उनके साथ हमेशा रहते है. बच्चे को सिर्फ पैसा कमाना सिखा दे इसको सही शिक्षा नहीं कहते. पैसा जो कमाया है, उस धन को परमार्थ यानि दुसरों की मदत करने में भी लगाये. जब हम अपने बच्चों को दूसरों के सेवा करना सिखाते है तब बच्चे भी अपने माता पिता का अच्छेसे ध्यान रख पाए इस काबिल हो जाते है. उन्हें भी ज्ञान हो जाता है की सच्चे भगवान् तो हमारे माता पिता ही है. उन्हिकी सेवा करने से प्रभु प्रसन्न होते है. प्रभु प्रसन्न होने पर हमें कुछ पाना बाकि नहीं रहता, सबकुछ भगवान् ही बने है, वे ही हमें अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष सबकुछ जो हमारे लिए सही है वे प्रदान करते है.
दोस्तों में कोई ज्ञानी नहीं हु मेरे मन में जो कुछ आ रहा है वही में लिख रहा हु. में भी अपने आप से सीखता हु की जो में लिख रहा हु उसे में भी अपने जीवन में एक सौ आठ प्रतिशत उतार सकू.

"त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव, त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देव देव"

|| जय श्री राधा ||

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 हम सब से पहले रामायण के बारे में समझते है.

रा = राम 

माँ = माँ सीता 

य  = जय + विजय   

न = नारायण 

नारायण यानि विष्णु भगवान् के जो पार्षद थे जय विजय, उन्हें भगवान् की कृपा से भेजा गया था, क्योकि रामजी ही  नारायण है. दुनिया जो नारायण चला रहे है उन्हें अपने बच्चो यानि हमें ही शिक्षा देने हेतु इस धरा पर अवतार लेना था. इसलिए भगवान् के पार्षद को ही विल्लेन का रोल मिला और नारायण ने राम का रोल निभाया और जो सीता जी है, सबसे बड़ा किरदार इन्हिका है क्योकि वे स्वयं शिवजी है जानते है किस तरह....

S - शिव 

I - इश्वर 

T - त्रिनेत्रधारी  

A - अम्बा के पति  ( अम्बा ही कृष्ण है - जल्द ही जानेंगे )

राम और रावण दोंनो ही श्री शिवजी के भक्त थे लेकिन श्रीराम जी को मर्यादापुरुषोत्तम कहा गया है, श्री सीताजी जो श्रीराम की अर्धांगिनी है उन्हें किडनेप करने का जो प्लान है वह रावण का नहीं नारायण का ही है, क्योकि अपनी माँ को भी कोई किडनेप करता है भला, उन्हें तो बस एक रोल मिला है जिसको रावन ने बड़े अच्छी तरह निभाया. इस रामायण के डायरेक्टर, प्रोडूसर, एक्टर स्वयं नारायण ही है क्योकि नारायण के अलावा कुछ है ही नहीं. वही इस सृष्टि का ब्रम्हा रूप से निर्माण करते है, नारायण रूप से पालन करते है और शिव रूप से अंत करते है. 

हम आम इन्सान जिस तरह नारीशक्ति को गलत नजरिये से देखते है तब राम को तो आना ही पड़ेगा अपनी शक्ति को बचाने के लिए. सबसे सिंपल एक बात कहना चाहता हु की भगवान् न ही पुरुष होते है न ही श्री वह प्रेम रूप से हर जिव के ह्रदय में वास करते है. सीताराम,राधेश्याम,शिवशक्ति,लक्ष्मीनारायण  कोई अलग भगवान् नहीं है. वे सब एक परम आत्मा है जो सबके दिल में परमात्मा के रूप में बसते है. सीता,राधा,शिव,लक्ष्मी एक ही है और राम,श्याम,शक्ति,नारायण एक ही है, यह सब ज्ञान की बाते मुझे अपने गुरु से ही प्राप्त हुई है बाकि में कुछ नहीं हु सब गुरुदेव का है. गुरुदेव ही श्री राधारानी है.  

शिव ही राधा है क्योकि दोंनो ही एक है जो परम कृपालु है. जो इनका हो जाता है उसे भगवान् अपने आप को सौप देते है. भगवान् ही राम है इसलिए सीता बनकर शिवजी की सेवा करते है, शिव ही राधा है जिनकी सेवा में स्वयं कन्हैया तत्पर रहते है. यानि यह अपने आपको कभी बड़ा नहीं मानते, हमेशा एक दुसरे की सेवा करते है. हमेशा पति पत्नी बनकर एक दुसरे का साथ निभाते है. दोस्त बनकर दोस्ती निभाते है, पिता बनकर बेटे का ध्यान रखते है. गुरु बनकर अपने शिष्य को ज्ञान देते है. माँ बनकर दुलार करते है.

इस दुनिया में भगवान् के अलावा कोई है ही नहीं जो भगवान् को भूल जाये उसे माया नचाती है. जिसे भगवान् ने स्वीकार कर लिया उसके लिए स्वयं भगवान् नाचते है जिस तरह गोपियो के लिये नाच रहे है. इसके लिए हमें सिर्फ भगवान् को भगवान् न मानकर बस अपना प्रियतम मानना चाहिए. जिस तरह एक श्री अपने पति को अपना सबकुछ सौप देती है उसी तरह अगर यह मनुष्य अपना सबकुछ भगवान् को सौप दे तो भगवान् उसे अपने मन के मंदिर में दीखते ही है. मंदिर ही एक ऐसी जगह है जहा मन में ही भगवान् का दीदार यानि भगवान् दिख सकते है.

|| जय श्री राधा || 


 

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|| श्रीराधा || 


श्री राधा ही है जिन्होंने श्रीकृष्ण को बांसुरी सिखाई, जिस तरह एक सेवक अपने स्वामी से तनख्वा लेता है और बदलेमे स्वामी का काम करता है उसी तरह श्री राधा श्रीकृष्ण की स्वामिनी है, वे उन्हें प्रेम करती है बदलेमे श्रीकृष्ण श्रीराधा श्रीराधा श्रीराधा श्रीराधा सिर्फ श्रीराधा बांसुरी से गाते है. क्योकि श्रीकृष्ण को बांसुरी प्रदान करने वाली श्रीराधा ही तो है, क्योकि जब कोई सेवक स्वामी के पास उनका काम करने जाता है तो स्वामी अपने सेवक को सारी चीजे प्रदान करता सिखाता है जिससे उसका सेवक अच्छेसे काम कर पाए. यह शायद ही किसी ग्रन्थ में लिखा होगा लेकिन मेरे भगवान् श्रीगुरुदेव श्रीराधा रानी की कृपा से आज इस विषय पर लिखने का मन किया. हम मनुष्य अपने आप को माने है तभी हमसे गलतिया होती है लेकिन जब हम अपने जीवन का कण्ट्रोल श्रीराधा के श्री चरणों में अर्पित कर देते है तो सब ज्ञान बिना किसीके सिखाये मन में आ जाता है क्योकि सबको सिखाने वाली श्री राधा मन में ही तो बसी है.

म = महारानी श्रीराधा 

न = नन्द के लाडले को प्यार करने वाली.

म = माधुर्य की चरम सीमा 

न = वृन्दावन की रानी श्री राधा 

कितना भी श्रीराधा की धारा में डूबने की कोशिश की जाय लेकिन श्रीराधा डूबना नहीं तैरना सिखाती है. मारना नहीं अपने प्यारे पर मरना सिखाती है. जो श्रीराधा को जान ले ऐसा मनुष्य हो ही नहीं सकता. हम तो श्रीकृष्ण के सखा है. श्रीकृष्ण ही राधा है, राधा ही मन है, मन श्रीकृष्ण के बिना अधुरा है इसलिए मन से एक बार राधाकृष्ण कहके देखो क्या पता उनका दर्शन मन में ही हो जाये. मंदिर इसलिए मंदिर नहीं होता क्योकि उसमे भगवान् की मूर्ति है,

मन = मन में 

दिर = दीदार हो जाये ( दिख जाये)

सबसे बड़ा मंदिर तो हमारा मन ही है जिसमे भगवान् मूर्ति नहीं स्वयं परमात्मा के रूप में बैठे है. यह सब गुरुदेव श्रीराधा की कृपा से ही आत्मज्ञान मिल सकता है. बाकि कितनी ही किताबे पढलो अपूर्ण ही बने रहोगे. पढना ही है तो अपने मन को पढो वह सिर्फ श्रीराधा श्रीराधा श्रीराधा श्रीराधा गाना ही सिखाएगा, जो श्रीराधा के भरोसे हो जाये वही श्रीकृष्ण है बाकि श्रीकृष्ण भी वृन्दावनेश्वरी से अलग होने पर द्वारकाधिष कहलाये. वैसे तो श्रीराधा ही श्रीकृष्ण है, शरीर भले दो दिखाई दे लेकिन आत्मा एक ही है. श्रीकृष्ण का मन यानि स्वयं श्रीकृष्ण प्रेम रूप से श्रीराधा बनकर वृन्दावन में है. उनके अलावा हमारा है ही कौन, सब जिव माया में फसे है और सोचते है की भगवान को भी हम अपने जैसा बनाये. लेकिन श्रीकृष्ण श्री गीता जी में कहते है की..........( जय श्री राधा endless )

|| जय श्री राधा ||

दोस्तों इस माया से मुक्त सिर्फ श्री राधा कर सकती है 
क्योकि वही मायापति भगवान् का प्रेम है 
जो भगवान् को प्रेम करे वही श्रीराधा श्रीराधा कहे


|| जय श्री राधा ||




  


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|| जय श्री राधा ||

 प्रेम :-



प्रेम में दुसरे का सुख देखा जाता है. में जिसे चाहता हु वह सुखी रहे. प्रेम निस्वार्थ होता है. प्रेम किसीसे भी किया जा सकता है, लेकिन सबसे ज्यादा जरुरी अगर हमारे लिए कोई है तो वे हे हमारे माता पिता, जो अपने माता पिता से प्यार न कर सके वो किसीसे भी प्यार नहीं कर सकता. इसका सबसे अच्छा उदाहरण श्री राम जी का है जिन्होंने अपने पिता की आग्या पर १४ वर्षो का वनवास ख़ुशी ख़ुशी स्वीकार कर लिया. वे चाहे तो राज्य उन्हें मिल सकता था लेकिन वे अपने माता पिता से प्रेम करते थे. प्रभु तो प्रेम के अधीन है, दूसरी बात माता कैकई भी महान है जिसने राम को एक महान कार्य हेतु वनवास प्रदान किया इससे उन्हें काफी भला बुरा सुनने को भी मिला. वैसे भगवान् का जन्म ही दुष्टो का विनाश करने हेतु हुआ था अगर उन्हें सीधे सीधे राज्य मिल जाता तो ... जो भक्त जन है जो भगवान् की पूजा अर्चना करते है उन्हें राक्षसों का भय लगा रहता था राक्षस उन्हें कच्चा खा जाते थे, परीशान करते थे ... गुरु से तो ऐसा भी सुनने को आया है की भक्तजनों की हड्डीयों का ढेर लग गया था इतना राक्षसों का आतंक बढ़ गया था. इन राक्षसों का विनाश और भक्तों पर कृपा करने हेतु भगवान् श्री राम का जन्म हुआ था. कैकई माता ( को यह आदेश की राम को वनवास दिया जाय ) को इसलिए चुना गया की वे बढ़ी साहसी नारीशक्ति थी इकबार जब देवता राक्षसों से बड़े परेशान थे तब राजा दशरथ जो की बड़े शूरवीर योद्धा थे उन्हें देवताओने अपने साथ राक्षसों पर विजय पाने के लिए साथं में बुलाया था .... जब दोनों पक्षों का युद्ध हुआ तब राजा दशरथ का रथ का पहिया रथ से अलग होने वाला था तब माता कैकई जो उनके साथ गयी थी उन्होंने अपनी ऊँगली को पहिये से रथ को जोड़े रखा ताकि राजा दशरथ युद्ध करते रहे उन्हें कोई परिशानी न हो. वे युद्ध पर विजय पाए और उन्हें विजय यानि जित मिली भी. और सच्चा प्रेम का स्वरुप भी यही है की खुदकी परवा न करके अपने पति के लिये दुःख को भी ख़ुशी के साथ सह ले. हमें यह विचार आ सकता है की यह प्रेम कहा गया था जब श्रीराम को उन्होंने वनवास भेजके अपने पति को सबसे बड़ा दुःख दिया. इसमें देश का प्रेम पति के प्रेम से बड़ा होता है जैसे की एक सैनिक भी जब बॉर्डर पर जाता है तो उसके लिए अपने परिवार से ज्यादा देश की महत्वता रहती है. देश यानि अपनी मातृभूमि जिसने हमें जन्म दिया इस मातृभूमि के लिए हर एक कैकई माता अपने बेटे को देश की रक्षा के लिए बॉर्डर पर भेजती है ऐसी माता और बेटे पर हमें गर्व होना चाहिए. यह लिखते हुए में अपने आंसू नहीं रोक पा रहा हु क्योकि में भी तो इस भारत भूमि का ही पुत्र हु. जय श्री भारत, जय श्री राम, माता के चरणों में कोटि कोटि प्रणाम. सीताराम का प्रेम भी बड़ा अद्भुत है....अपनी पत्नी प्रेयसी के लिए कोई सेना, कोई राज्य शासन न होने पर भी जो है उसे ही अपना साथी (श्री हनुमान जी और उनके साथी मित्रों) बनाकर शिवके बड़े भक्त रावन को परास्त किया. श्रीराम और रावन दोनो ही श्री शिवजी के बड़े भक्त थे, श्रीराम से ज्यादा शक्ति, माया, सम्पति में रावन बड़े थे लेकिन चरित्र श्रीरामजी का बड़ा था जिसका चरित्र साफ सुधरा होता है उसे परास्त करने वाला इस धरा पर पैदा होने से पहले मर जाता है. हमने एक पिक्चर देखि होगी सोल्जर जिसका किरदार अल्लू अर्जुन ने बड़े अच्छेसे निभाया है उसमे भी दिखाया है की करैक्टर से बड़ा कोई नहीं ( झुकेका नही साला). झुकेगा तो सिर्फ अपने भगवान् के लिए जो माता पिता और गुरु बने है. एक प्रेम की कहानी मेरे माता पिता की भी है उनका भी प्रेमविवाह हुआ है. मैंने उनके बिच प्यार,लड़ाई, झगडा देखा है लेकिन उन्होंने एक दुसरे का साथ कभी नहीं छोड़ा इससे बड़ा मेरे घर में प्रेम का उदाहरण नहीं है. इसलिए मैंने भी उनके सुझाये हुए लड़की के साथ विवाह किया क्योकि मुझे पता है अगर वे अपने लिए बेस्ट चुन सकते है तो में भी उन्हीका बच्चा हु तो मेरे लिए भी वो बेस्ट ही चुनेगे और उन्होंने चुना भी जिसके साथ में भी खुश हु. मेरी पत्नी भी मेरा बड़े अच्छेसे से ध्यान रखती है. में भी उसे चाहता हु. जय श्री राधा . प्रेम का सबसे बड़ा और प्यारा जोड़ा तो सिर्फ राधाकृष्ण का ही है. क्योकि वे ही हमारे माता,पिता,गुरु,दोस्त,सबकुछ वही बने है ..........................जय श्री राधा.



सेक्स्

बलं बलवतां चाहं कामरागविवर्जितम् । धर्माविरुद्धो भूतेषु कामोऽस्मि भरतर्षभ ।। ११ ।।
 यह गीता का सातवे अध्याय का ११ व श्लोक है जिसमे भगवान् कृष्ण बताते है की 
"में बलवानों का कामनाओं तथा इच्छा से रहित बल हैं। हे भरतश्रेष्ठ (अर्जुन)! मैं वह काम (सेक्स) हूँ , जो धर्म के विरुद्ध नहीं है।"
तात्पर्य : बलवान पुरुष की शक्ति का उपयोग दुर्बलों की रक्षा के लिए होना चाहिए, व्यक्तिगत आक्रमण के लिए नहीं। इसी प्रकार धर्म-सम्मत ( शादी के बाद दोंनो की इच्छा से ) मैथुन (सेक्स) सन्तानोत्पति के लिए होना चाहिए, अन्य कार्यों के लिए नहीं। अतः माता-पिता का उत्तरदायित्व है कि वे अपनी सन्तान को कृष्णभावनाभावित बनाएँ।
यह तात्पर्य "श्री श्रीमद ए.सी.भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद जी का है"

|| जय श्री राधा || 



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|| जय श्री राधा ||

 मेरे देश के प्रधानमंत्री मेरे प्यारे मोदीजी :-



मोदीजी मेरे पिता सामान है, जो अपने घर को जिसे भारत कहा जाता है, उस भारत भूमि की बड़ी निपुणता और सच्चाई के साथ अपना सर्वस्व अर्पित करके सेवा कर रहे है.
 
में चाहता हु की मुझे श्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदीजी जो पुरे देश को ईमानदारी की सिख देते है उनकी सेवा का मुझे अवसर प्राप्त हो. जो पुरे देश की सेवा करे उनकी हर भारतवासी को सेवा करनी चाहिए.

मोदीजी की सेवा करने के लिए उनके हाथ पैर दबाने की जरुरत नहीं है, न ही वे बूढ़े है, वे एक सशक्त भारत के ताकतवर देशसेवक है.

मोदीजी की सेवा हम पूरी इमानदारीसे तब कर पाएंगे जब हम  देश की स्वच्छता पर ध्यान देंगे और देश को स्वच्छ करने का प्रण भी लेंगे. जिस भी कार्यक्षेत्र में हम हो उस काम को हम बड़ी ईमानदारी और अपने देश की सेवा समझके करेंगे तब हम सचमे श्री मोदीजी की सेवा कर सकते है. जय श्री भारत. भारत ही भगवान् है 

भा - भगवान् 
र   -  रथ पर बैठे अपने भक्त को सही गलत समझाने वाले
त  -  तांडव करने वाले, जो नहीं सुनेगा उसको हम सिखायेंगे.

दोस्तों श्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदीजी के बारे में गहराई के साथ लिख सके उतना दिमाग मेरे पास नहीं है. में बस अपने देश की सेवा करना चाहता हु. जय हो भारत, हम सोने की चिड़िया नहीं है, हमारे देश की भूमि का हर एक कण भगवान् है जिसे कोई नहीं लुट सकता.

|| जय श्री राधा ||




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 नारी क्या है - जय श्री राधा 


नारी ही भगवान् की शक्ति है और स्वयं भगवान् भी, जो एक पुरुष को पुरुषोत्तम बनाती है. नारी नारायण की माता है जिसे जगत्जननी अम्बा कहते है. अम्बा यानि शिव को शिव बनाने वाली जिसके बगैर शिव भी अधूरे से है. नारी के बारे में समझना इतना आसान नहीं है क्योकि हर जगह वही है पूरी दुनिया ही नारी है जिसे समझने के लिए हमारे पास पर्याप्त बुद्धि नहीं है, बस हम उसे भोग भाव से देखकर अपना विनाश् कर रहे है. जिसने नारी को शक्ति माना है वह पुरुष पुरुष नहीं बल्कि पुरुषोत्तम भगवान् शिव ही है. 

नारी की सेवा होनी चाहिए, पूजा होनी चाहिए 

दोस्तों, इस कलयुग के घोर अन्धकार को सिर्फ एक नारी ही दूर कर सकती है. इसलिए उसकी सारी पूरी की जा सके ऐसी मनोकामनाए उसके पति को पूरी करनी चाहिए जब ऐसा हो तब वह पति नहीं रहता, पति परमेश्वर बन जाता है. नारी के बारे में क्या कहू ....इस दुनिया में अगर सबसे सुन्दर कुछ हो तो वह है श्री राधा जो नारीशक्ति की पहचान है जो कृष्ण को भगवान् बनाने वाली है. भगवान् कृष्ण के पास बस एक ही शक्ति है और वह है श्री राधा श्री राधा श्री राधा श्री राधा.......endless.
जब भगवान् श्रीराधा कहते है तब इस दुनिया को प्रकट कर पाते है. सारी शक्तिओ की स्वामिनी श्रीराधा ही है. बस वह अपने आप को दुनिया के सामने नहीं लाती क्योकि उसे समझने वाले तो सिर्फ श्रीकृष्ण ही है. क्योंकि जो पत्नी होती है वह पति से प्रेम करती है लेकिन श्रीराधा ने पतिपरमेश्वर से प्रेम किया, इसके लिए राधाकृष्ण कहा जाता है. श्रीराधा न ही श्री है न ही पुरुष वह एक महान प्रेम का गहरा समुद्र है जिसका न अंत है न जिसकी शुरुआत नजर आती है. श्रीराधा प्रेम की चरण सीमा है. जिसने श्रीराधा के चरणों में अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया वही भगवान् कृष्ण है बाकि तो सब श्री पुरुष अपने आप को माने है. जब हम एक पुरुष होते है तब भगवान् श्री बनकर हमारी सेवा करते है अपना शरीर मन तन धन सबकुछ अपने पति परमेश्वर को समर्पित कर देती है. जब नारी माता बनती है तब वह अपने खून को दूध बनाकर अपने प्यारे लल्ला को दूध पिलाती है.उसे कष्ट भी होता है फिर भी वह अपने कष्टों को भुलाकर अपने प्यारे बच्चे का दुलार करती है सचमे श्री महान आत्मा परमात्मा ही है. हम पुरुष अपने चमड़े की चप्पल बनाकर श्री का ऋण उतारने की कोशिश करे तो भी अनंत जन्मो तक हम नहीं उतार सकते. श्री सिर्फ इज्जत के साथ प्यार चाहती है. उसे किसी चप्पल की जरुरत नहीं उसे बस प्यार से दुलार से दिल से लगा लो उसीमे वह खुश हो जाएगी अगर वह आपकी पत्नी बनी है तो. आपकी बेटी है तो उसके पैर छूने चाहिये न की उसे ज्यादा रोक टोक करनी चाहिए, एक पिता का काम है की वह अपनी बेटी को सही शिक्षा दे, उसे समझाए की बेटी तुम जो करना चाहती हो उसे करो लेकिन एक बात आपको ध्यान रखनी है की में आपका पिता हु मै आपसे बहोत प्यार करता हु अगर तुम्हे कोई लड़का पसंद आता है तो मुझे बताओ में उससे आपकी शादी करवाऊंगा. जब पिता ऐसी बात अपनी बेटी से करता है न तब वह बेटी कभी किसी लड़के के साथ भागके शादी नहीं करेगी. क्योकि उसे पता चल जायेगा की मेरे लिए मेरे पापा बेस्ट ही चुनेंगे अगर मुझे कोई लड़का पसंद आता है तो उसे सबसे पहले मेरे माता पिता को खुश करना होगा, अपने आप को साबित करना होगा की वह एक राजा है जो दुसरे राजा की राजकुमारी को एक राजमहल में रख पाए. राजमहल का मतलब कोई बड़ा महल नहीं बस जहा उसकी बेटी जाये, उसे जो चाहिए वह सब उसका पति परमेश्वर दे बस यही इक पिता की मनोकामनाए होती है. अगर मैंने और कुछ लिखा तो में रो रो के मर जाऊंगा क्योकि अभी मेरे आंसू नहीं रुक रहे क्योकि श्री के बारे में जाने ऐसा पुरुष पैदा नहीं हुआ. में अपना सौभाग्य मानता हु की मेरे जरिये भगवान् श्रीराधा ही यह पोस्ट लिख रही है. 

|| जय श्री राधा ||

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 यार किसीभी पोस्ट को लिखने से पहले काफी कुछ सोचना पड़ता है लेकिन इस पोस्ट को लिखने के लिए मुझे एक सेकंड के लिए भी नही सोचना पड़ा क्योंकि में खुद इस समस्या का सामना कर चुका हूं और शायद ही मेरे अलावा कोई इतनी महत्वपूर्ण जानकारी कोई आपको दे सकता है ।


 
पागलपन का सबसे बड़ा कारण है विचार ,एक ऐसी सोच जो मरने से पहले हमें मार देती है, ऐसी सोच को जन्म भी हम देते है और इसे खत्म करने का इलाज भी हमारे अंदर होता है।

मैंने खुद ऐसे विचारों को जन्म भी दिया है और उससे आज भी लड़ता हु। मेरे दिमाग मे सबसे पहले यह विचार तब आया था जब में किसी लड़की के लिए पागल था ,आप इसे वन साइड लव भी कह सकते है, ये कैसे हुआ जानते है।

* मेरी वन साइड लव स्टोरी

मेरा घर उस लड़की के एकदम सामने था ,में फर्स्ट फ्लोर पर था और वह लड़की सामने वाले मकान के ग्राउंड फ्लोर पर रहती थी । हमारी कभी कभी बातचीत होती रहती थी,मेरे परिवार वालो को भो वह अच्छी लड़की लगती थी और शायद इसी वजह से मुझे भी लगने लग गया था कि वह मेरे लिए अच्छी रहेगी,यह कुछ ऐसा हुआ था कि में उससे दिल से नही दिमाग से प्यार करने लग गया था। 

* पागलपन में क्या होता है

यही वह सोच थी जिसने मुझे एकदम पागल बना दिया था ,मेरा किसी मे भी मन नही लगता था वह जिस लड़की से में दिमाग से प्यार करता था वह मेरे से उम्र में एक साल बड़ी थी ,उस समय मेरी एलेवेंथ स्टैंडर्ड में साइंस की पढ़ाई चल रही थी ,समय काफी मुश्किलों से भरा था ।

पागलपन में कुछ ऐसा होता था कि मुझे कई रातो तक नींद नही आती थी में रात में उठकर कही चला जाता था और घूम कर फिर कर वापस घर मे आकर सोने की कोशिश करता था लेकिन सो नही पाता था।

ऐसा मेरे साथ क्यों होता था इसके जवाब में मैं इतना ही कहना चाहूंगा कि मेरा दिमाग मुझमे था ही नही वह न मुझे एक जगह बैठने देता न कुछ अच्छा सोचने देता था।

*पागलपन का हद से ज्यादा बढ़ जाना

मैं उस लड़की के पीछे इतना पागल हो गया था कि एकदिन मैंने लगभग रात को 1.00 बजे उसके घर का दरवाजा खट खटाया कुछ देर दरवाजा खट खटाने के बाद अंदर से एक आवाज आई वह आवाज उसके पापा की थी।

उन्होंने अंदर से पूछा कौन है बाहर से,मेने जवाब दिया में हु सुमित आपके सामने रहने वाला लड़का ,उन्होंने दरवाजा खोला और पूछा इतनी रात को क्या काम है मैं कुछ बोला और वह शब्द थे मैं आपकी लड़की से शादी करना चाहता हु,उन्होंने कहा पागल हो गए हो क्या ,दरसल में सचमे पागल हो गया था।

उस लड़की के पिता ने कहा में तुम्हारे पिता से बात करना चाहता हु,और मुझ पागल को लगा कि सचमे मेरी उससे शादी हो जायेगी।

दूसरा दिन आया मैंने अपने घर वालो को रात की बात बताई और मेरे पापा उस लड़की के घर उसके पापा से मिलने चले गए ।

मेरे पापा की उस लड़की के पाप से बात हुई, इस बारे में मेरे पापा ने घर पर कुछ बराबर बताया नही,मेरे घर वाले मुझे लेकर बहोत परेशान थे,क्योकि मेरी हालत ही कुछ ऐसी थी। 

*पागलपन का इलाज

(जो बात आपके दिल मे ज्यादा समय से है उसे बोल दे और बिल्कुल न घबराये)


जब मैंने उसके घर पर शादी की बात की थी उसके बाद से मेरे दिल को और दिमाग को एकदम शांति मिल गई थी क्योंकि जो बात में उससे कहना चाहता था वो मैंने बोल दी थी, कुछ दिन बीते, मेरे पापा ने मेरे स्कूल जाकर 10 दिनों की छुट्टी ले ली थी,वे मुझे गांव लेकर गए ।

गांव में एक दो दिन रहने के बाद मुझे अच्छा लगने लग गया था,जो मेरी बाहर घूमने की बीमारी या कहो पागलपन वो ठीक हो गया था,कुछ ही दिनों में मैं पूरी तरह ठीक हो गया था।

ठीक होने के बाद में और मेरा परिवार अपने शहर आ गया, दिन बीतते गए जो लड़की मेरे सामने रहती थी,जिसके लिए में पागल था उसके पापा ने वहासे काफी दूर नया घर ले लिया ,और वह चली गई।

इस तरह यह रियल लाइफ कहानी यहा खत्म हुई। इस कहानी में, मैं जो बात अपने दिल मे छुपा कर बैठा की "मुझे उससे शादी करनी है"अगर में यह बात नही कर्ता तो शायद में यह लेख नही लिख रहा होता क्योंकि यह बात मुझे हर दिन हर इक सेकंड चैन से जीने नही देती थी । अंदर से एक आवाज आती तू यह बात बता नही तो मै कुछ भी कर दूंगा । देखिये दोस्तो जीवन मे ऐसी कोई बात जो किसीको बताना बहुत जरूरी है,और वह बात अगर हम उस व्यक्ति को नही बताते ,और अपने ही अंदर दबाये रखते है तो यह बहुत बड़ी समस्या है, तो हमेशा ध्यान रखिये कोई भी बात अपने अंदर न दबाये ,खुल कर जो भी बात आप किसीसे कहना चाहते है जरूर कहे ,भले सामने वाले व्यक्ति को आपकी बात अच्छी लगे या बुरी 
कुछ समय के लिए प्रॉब्लम हो सकती है,लेकिन कुछ समय बाद आप अपने लिए खुश होंगे कि यार अच्छा हुआ मैंने मेरे दिल की बात बता दी।

दोस्तो इस सच्ची कहानी से हमे बहोत बड़ी सिख मिलती है और वह है,किसीको देख कर या किसीके कहने पर अगर आपको कोई अच्छा लगता है तो वह गलत है,जब आपका दिल बोले यार यही सही है तो उसी पर यकीन करें।

दोस्तो अपने माता पिता का हमेशा ख्याल रखे,वो कैसे भी हो जरूरत के समय पर सिर्फ वही आपके लिए खड़े होंगे और आपकी जितनी मदत हो सके उतनी करेंगे।

मैं अपने माता पिता को धन्यवाद देना चाहता हु की उस समय मेरे माता पिता ने मेरा बहोत ध्यान रखा।
                                             धन्यवाद.
दर्शना जिसका मै हर दिन दर्शन करके पागल हो गया था - आज 30 मार्च २०२५ को माफ़ी मांग रहा हु. मैंने उसे रातको जगाकर परीशान किया और उसके परिवार की भी माफ़ी मांगता हु, क्योकि वे मेरी वजह से उन्हें दूसरी जगह रहने जाना पड़ा. 

|| जय श्री राधा ||




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ज्यादा सोचने की बीमारी को इस तरह करे दूर


 

                

दोस्तों जैसे जैसे समय बीतता जा रहा है वैसे वैसे हम कुछ ज्यादा ही सोच रहे है .किसी विषय पर सोचना सही बात है लेकिन बहोत ज्यादा सोचना हमे बहोत नुकसान कर सकता है.किस तरह हम ज्यादा सोचने की बीमारी को दूर कर  सकते है जानते है.

१.अपने मन को इतना व्यस्त रखे की उसे कुछ सोचना का समय न मिले जैसे की आप अपनी एक दिनचर्या बना सकते है की आपको पुरे दिन में क्या करना है.

२.कुछ व्यायाम करे जैसे ,आप सुबह खुली हवा में चलना ,आप दौड़ भी लगा सकते है, सूर्यनमस्कार सबसे अच्छा व्यायाम है इसको करने के बाद आपको कोई और व्यायाम करने की कोई जरुरत नहीं पड़ेगी.


३.ध्यान करे, ध्यान करना कोई बड़ा काम नहीं है लेकिन जितना आसान लगता है उतना है भी नहीं.ध्यान करने का सबसे अच्छा उपाय है किसी शांत जगह पर  बैठ जाये .उसके बाद अपनी आँख बंद कर के जो हम साँस लेते है उस पर अपना ध्यान केन्द्रित करे .

४.अपने अन्दर के गुण का विकास करे ,मेरे कहने का मतलब है आपको जो काम करना पसंद हो जैसे की गाना गाना ,डांस करना ,चित्र बनाना ऐसा कुछ जिससे आपके मन को अच्छा लगे और किसी को कोई हानि न हो.

५.अक्सर हम ज्यादा तब सोचते है जब कोई बात हमारे मन में दबी होती है और हमें डर अगता है की अगर यह बात हम किसीसे कहेंगे तो कोई समस्या आ जाएगी लेकिन डरिये मत और जो बात हमारे दिल में छुपी हो वः बता दे.

हम ज्यादा क्यों सोचते है ? और इसके क्या कारन है ?

हम जैसे जैसे बड़े होते है वैसे वैसे हम पर घर की जिम्मेदारिया आ जाती है ,यह सबके साथ होता है फर्क सिर्फ इतना है की किसी पर समय से पहले आ जाती है और किसी पर जल्दी नहीं आती.इन्ही सब कारणों के बारे में हम जानने वाले है .चलो शुरू करते है.

१.हम जब छोटे होते है.तब पढाई का टेंशन होता है. कोई इस टेंशन पर विजय पा लेता है तो कोई इसको संभाल नहीं पाता और इसका कारन है समय पर पढाई न करना ,जितने भी विद्यार्थी है और हम सबको अपने काम समय से पहले या समय पर पुरे कर लेने चाहिए . 


२.जब हम किसी लड़की या किसी लड़के के प्यार में होते है तब हम पहले से ज्यादा सोचने लग जाते है.किसी भी विषय पर सोचने का एक दायरा होता है जैसे वह पार हो जाता है तो ढेरो समस्याए खड़ी हो जाती है. जो हमें नहीं करना है.

३.शक करना ,जब हम किसी पर शक करते है तब हम ज्यादा सोचने लग जाते है. ऐसा अक्सर मिया बीबी ,बिजनेस पार्टनर ,भाई भाई इस तरह के अनेको उदहारण है इन सबके बिच में शक नामकी बीमारी आ जाती है.पहली बात तो सबके लिए सकारात्मक सोचे और अपने जीवन से शक नाम के अक्षर को ही निकाल दे.

४. जब हम पर कोई गुस्सा करता है तब उस इन्सान के बारे में हमारे मन में लाखो ऐसे शब्द पैदा हो जाते है,जिससे हम उसके बारे में ज्यादा ही सोचने लग जाते है.लेकिन हमें अपने मन को भटकने नहीं देना है.हमें देखना है की जिस कारन से वह इन्सान हम पर गुस्सा हुआ है क्या हम उसके लिए जवाबदार है या नहीं.अगर है तो उसे क्षमा मांग लेनी चाहिए और अगर हमारी कोई गलती नहीं है फिर भी हमें उस इन्सान से शांति से ही बात करनी है.

५. खाली बैठना ,जिस इन्सान के पास कोई काम नहीं होता वह ज्यादा सोचने का काम कर लेता है. इसका उत्तर में पहले ही बता चूका हु और एक बार और दोहराता हु .कभीभी खाली न बैठे, हमेशा कोई न कोई कार्य करते रहे.और जिस इन्सान के पास करने को कुछ नहीं है वह खाली समय में अपने भगवान का नाम स्मरण कर सकता है.

ज्यादा सोचना क्या सही है ? में जब ज्यादा सोचता हु तो क्या करता हु ?

दोस्तों में अभी आपको बताने वाला हु, एक सबसे सही और जल्द से जल्द अपना सके ऐसा रास्ता जिससे हम तुरंत अपनी ज्यादा सोचने की बीमारी को दूर कर सकते है.पहली बात तो यह है सोचना सही है और अच्छा सोचना सबसे ज्यादा सही है लेकिन बहोत ज्यादा सोच लेना सही नहीं है.

दोस्तों यह आर्टिकल मैंने ऐसे ही नहीं लिख दिया ,यह आर्टिकल लिखने की वजह है और वह है की में भी कभी जरुरत से ज्यादा किसी विषय पर सोच लेता हु और इससे मुझे काफी समस्याओ का सामना करना पड़ता है उसमे से एक है आप कही न कही खोये रहते है और अपना काम समय पर पूरा करने में असमर्थ साबित होते है.  आपको भूलने की बीमारी लग जाती है.दोस्तों यह सब मेरे साथ होता था लेकिन मुझे इसका इलाज मिल गया है और वह है में कभी खाली नहीं बैठता हु कुछ न कुछ क्रिएटिव करता रहता हु जैसे की यह आर्टिकल जो आप पढ़ रहे है वह आर्टिकल मैंने लिखा इसकी जगह पर में सोशल मीडिया पर समय ख़राब कर सकता था या फिर गेम खेल सकता था लेकिन नहीं मुझे अपने आप को हर दिन बेहतर बनाना है इसलिए में कुछ न कुछ अच्छा और काम का काम करता रहता हु .


अपने आप को व्यस्त रखने के कई तरीके है.उसमे से एक है में भगवान के नाम का जप करता हु या फिर कोई अच्छा भक्तिगीत सुनता हु.इससे यह फायदा होता है की आप ज्यादा सोचना बंद करते हो और यह आपके मन को स्वच्छ कर देता है और अपने अन्दर की नकारात्मकता को दूर करता है. अपने अन्दर एक नई उर्जा का निर्माण होता है.


दूसरा तरीका जिससे में अपने आप को व्यस्त रखता हु, वह है चित्र बनाना या डिजाईन बनाना यह काम मुझे सबसे अच्छा लगता है.आप फोटो में देख पा रहे होंगे की कैसे मैंने एक सुन्दर डिजाईन बनाइ है.दोस्तों ऐसा कुछ अनोखा करने से अपने मस्तिष्क का विकास भी होता है और आप इसके द्वारा पैसे भी कमा सकते है.

तीसरा तरीका जिसमे में खाली समय में, में मेरे भाई के साथ बैडमिंटन खेलता हु. इससे एक्सरसाइज भी हो जाती है और हर दिन करने से आपकी किसीभी काम को करने की शक्ति भी बढ़ जाती है.


चौथा तरीका इसमें में किताबे पढ़ता हु ,और यह किताबे ऐसी होती है जिससे हम अपने लाइफ को कैसे बेहतर ढंग से जी सके उसका ज्ञान हमें मिलता है .में दो किताबो के नाम आपको बताना चाहूँगा जिससे आप भी अपने जीवन को एक सही दिशा दे सकते हो.१.सोचिये और आमिर बनिए - नेपोलियन हिल २.विजुलाइजेशन - डॉ जीतेन्द्र आधिया.


पाचवा और आखरी तरीका सबसे ज्यादा कारगर,जब कभी आप फ्री हो तब अपनी आँखे बंद कर ले और अपने विचारो को देखे यह समजने में थोडा कठिन हो सकता है लेकिन करने में नहीं .इसमें यह होता है की हम अगर कुछ ज्यादा ही सोच रहे है तो उसे हम धीरे धीरे कम कर सकते है.और जब आप इसको जान जाओगे तब आपके विचार आपके काबू में होंगे.इसे हम एक तरह का मैडिटेशन भी बोल सकते है. 


धन्यवाद की आप अभीतक इस पोस्ट को पढ़ रहे है. 


|| जय श्री राधा ||




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|| राधा राधा ||



 

भगवान का नाम बार बार लेना यही सबसे बड़ा धन है यह गुरुदेव की कृपा से समझ आया है . आज के इस युग मे हमे पैसों का तो महत्व पता है लेकिन भगवान् के नाम का महत्व कम हो गया है. भगवान् का नाम ही हमें सच्चा सुख और शांति देता है. भगवान् के नाम में अनंत शक्ति है जिसका खुद भगवान् पार नहीं पा सकते. गुरुदेव की कृपा से भगवान् का नाम हमें प्राप्त होता है. अपने जीवन में हम जो चाहे वह प्राप्त कर सकते है लेकिन हमारा उतना नाम जप होना चाहिए. हमसे हर दिन जाने अनजाने में अनगिनत पाप होते रहते है, इन पापों का नाश करके सुख प्रदान करने वाला भगवान् का नाम है. लेकिन गुरुदेव कहते है की नाम का सहारा लेकर हमें जानबूझकर पाप नहीं करने चाहिए, अगर ऐसा हम करेंगे तो हमारा भगवान् से विश्वास कम होने लगेगा और भगवान् का नाम जपना भी छुट जायेगा. गलती से या नासमझी से हम से पाप हो भी जाये तो सिर्फ भगवान् का नाम ही एक मात्र सहारा है उसे हमें बार बार मन लगे या न लगे जपना चाहिए यही एकमात्र पापो का नाश करने में समर्थ है यही गुरुकृपा से पता चला है.भगवान् के नाम की महिमा अनंत है जिसे हम आम लोग नहीं बोल सकते.

यह .....

१. सारे पापों को ख़त्म कर देता है

२.सच्चे गुरु की प्राप्ति करवाता है.

३.चिंतामुक्त कर देता है.

४.सद्बुद्धि प्रदान करता है.

५.हमारे अन्दर सद्गुण जाग्रत हो जाते है.

६.भगवान् से मिला देता या भगवद प्राप्ति करा देता है.

७.परमसुख आनंद देता है.   

८.हर समस्या से लड़ने में सामर्थ्य प्रदान करता है.

९.धन भी प्रदान करता है.

१०.मन में मैल को धो डालता है.........

भगवान् के नाम में अनंत शक्ति है जिसका हम पार नहीं पा सकते......................................no end

१. सारे पापों को ख़त्म कर देता है

 दोस्तों हम अपने जीवन में जाने अनजाने में अनेको पाप करते रहते है जिससे हमें बड़ा दुःख भोगना पड़ सकता है. इन्ही दुखों का नाश करने वाला एकमात्र भगवान् का नाम है. जब हम नाम जपना आरंभ करते है तब हमारे मन में कई गंदे विचार आते है यह इसलिए होता है क्योकि हमने अनेको जन्मों में कई पाप किये है, यही पापों की गन्दगी हमसे निकलने लगती है. और हम यह सोचते है की मैंने जब से भगवान् का नाम लेना शुरू किया है तब से ही यह परेशानी या जलन शुरू हुई है. लेकिन हमें इन गंदे विचारों पर ध्यान नहीं देना है और भगवान् का नाम जितना हो सके उतना लेना ही चाहिए.

 २.सच्चे गुरु की प्राप्ति करवाता है.

भगवान् का नाम हमें सच्चे गुरु की प्राप्ति करा देता है. इस जीवन में गुरु का होना अति आवश्यक है , जैसे हम किसी घने जंगल में खों गए हो और हमें उस जंगल से बाहर निकलना है तो हमें ऐसे इन्सान की जरुरत पड़ेगी जो उस जंगल के बारे में सब कुछ जानता हो तभी तो वह हमें उस जंगल से बहार निकाल पायेगा, ठीक उसी तरह हम माया रूपी सुन्दर दिखने वाले जंगल में फसे है. इसी जंगल से बहार निकालकर भगवान् से मिलाने वाले गुरुदेव का जीवन में होना अति आवश्यक है. गुरु ज्ञान का सागर है जो हमें सच्चा ज्ञान उपदेश देकर हमारे विकारों को दूर कर देते है. भगवान् " भगवद महापुराण " में भी कहते है की सच्चा गुरु मेरा ही रूप है.   

३.चिंतामुक्त कर देता है.

दुनिया में ऐसा कोई नहीं है जो चिंतित नही है सब को कोई न कोई चिंता लगी ही रहती है. भगवान् के नाम का चिंतन ही हमारी चिंता को दूर कर सकता है. आज के समय में हम चिंता से छुटकारा पाने के लिए न जाने कितने उपाय करते है लेकिन उन उपायों से हम कुछ समय के लिए तो चिंता मुक्त हो सकते है लेकिन पुरे जीवनभर चिंता मुक्त करने वाला सिर्फ भगवान् का नाम ही है. हमारे मन में अक्सर यह विचार आता है की हम इतने परेशान , चिन्तायुक्त क्यों हो जाते है. इसका कारन है जीवन में अध्यात्म की कमी. हम इन्सान विज्ञानं , खेल ,पढाई और भी क्षेत्रों में आगे बढ़ रहे है लेकिन आध्यात्म यानि भगवान् से जुड़ जाना इससे काफी ...काफी ...दूर है, इसी कारन से हम डिप्रेशन में चले जाते है. हम बचपन से ही पढाई करना शुरू करते है . क्यों ? क्योकि बड़े होकर हमें बिजनेस करना है या नोकरी करनी है. मतलब पैसा कमाना है. पैसा हम क्यों कमा रहे है ? क्योकि हमें पता है की पैसो से हम बहोत सारी चीजे खरीद सकते है जो हमें सुख पहोचाये .लेकिन पैसा हमारे शरीर को सुख पहोचाता है मन को नहीं. सुखी मन में ही भगवान बसते है इसलिए मन को सुख पहोचाने के लिए भगवान् का नाम लेना बहोत अनिवार्य है. क्योकि सच्चा सुख भगवान् के नाम में ही है.

४.सद्बुद्धि प्रदान करता है.

इस युग में अपनी बुद्धि को शुद्ध रखना बड़ा चेलेंज बन गया है. छोटो से लेकर बड़ो तक सबकी बुद्धि में सिर्फ कचरा भरा जा रहा है. इसका कारन है टीवी, शॉर्ट्स, इन्स्टा रील्स और भी...यह सब एक बीमारी की तरह हमारे बुद्धि का नाश करते जा रहे है. इनमे एक खास बात है की ये सब हमें वही विडिओज दिखाते है जो हम देखना चाहते है. इनको बार बार देखने का मन करता रहता है. इनसे बचने के लिए हमें भगवान् के नाम की शरण लेनी चाहिए. जब भी हमें इन्हें देखने का मन हो तो तुरंत भगवान् का नाम जपना स्टार्ट कर देना चाहिए जैसे राधा राधा राधा राधा ..... दुनिया में भगवान अलग अलग नहीं है. सबके भगवान् एक ही है , बस उन्होंने अनेकों अवतार लिए है और लेते रहेंगे उन सभी के नाम अलग अलग है लेकिन उन सभी अवतारों में एक ही इश्वर है. अगर सबके भगवान् अलग अलग होते तो हम इन्सान एक जैसे नहीं होते. किसीके चार हाथ ,किसीके दो मुह मतलब सब भगवान् अपने अपने हिसाब से इन्सान की रचना करते ना. लेकिन ऐसा नहीं है भगवान् है सिर्फ एक इसलिए इन्सान भी एक जैसे ही है. हमारा जिस भगवान् पर विशेष प्रेम हो उन भगवान् का हमें नाम जपना चाहिए या जो नाम हमारे प्रिय गुरूजी प्रदान करे वह नाम हमें जपना चाहिए. उनके द्वारा प्रदत्त किया हुआ नाम हमारी बुद्धि को जल्द से जल्द शुद्ध करके हमें परम शांति प्रदान करता है. जैसे घर को साफ रखने के लिए हम हर दिन उसकी सफाई करते है उसी तरह हमारे बुद्धि भी जाने अनजाने अशुद्ध हो जाती है उसे शुद्ध रखने के लिए हमें हर दिन नाम जपना चाहिए जो हमारी बुद्धि में झाड़ू लगाकर उसमे भगवान को स्थापित करके सारे कचरे को साफ कर देता है.

५.हमारे अन्दर सद्गुण जाग्रत हो जाते है.

दोस्तों  हम जैसा सोचते है या जिसके बारे में सोचते है वैसे हम बन जाते है. उसी तरह हम भगवान् का नाम जप, उनका स्मरण करते है तब भगवान् हमें सद्गुण प्रदान कर देते है क्योकि सारे सद्गुण भगवान् के नाम में विराजमान रहते है. भगवान अनंत कलाओंके स्वामी है. हम भगवान् के ही तो अंश है इसलिए हमारे अन्दर भी अनेकों कलाए होती है. भगवान् को भूलकर हम इतने व्यस्त हो गए है की हम अपने आप को खोते जा रहे है. हमें पता ही नहीं की हमारे अन्दर भगवान् ने कौनसी कला, गुण, शक्ति भरकर रखी है. भगवान् हर किसीको इस पृथ्वीतल पर भेजने से पहले उस जिव के अन्दर अपनी कला भर देते है ताकि वह अपने आप को इस धरती पर जीवन जी सकने में समर्थ हो सके. हम देखते है की हर जिव में चाहे वह जानवर हो पक्षी हो या और कोई जीवात्मा हो उसमें एक अनोखी पावर या शक्ति होती ही है. आज के समय में इन्सान को छोड़कर सारे जीवों को अपनी शक्ति, गुणों के बारे में पता है लेकिन इन्सान इस इन्टरनेट के जाल में ऐसा फस चूका है की उसे अपने आप को जानने के लिए समय ही नहीं है. इसी जाल से निकालकर हमें अपने सद्गुण या शक्ति जाग्रत करने वाला सिर्फ भगवान् का नाम ही है.

६.भगवान् से मिला देता या भगवद प्राप्ति करा देता है.

भगवान् में मन लगाना कठिन है. लेकिन अच्छे कर्म तो हम कर ही सकते है जिससे भगवान् का हममे मन लग जाये. क्योकि जब हम किसीकी हेल्प करते है तो हम किसी और की नहीं अपने आप की ही हेल्प कर रहे है भगवान् के पास पहोंचने में. अच्छा कर्म भगवान् तक पहोंचाता है, भगवान् सच्चे गुरु तक पहोंचाते है और सच्चा गुरु हमें भगवान् से भी बड़ा भगवान् का नाम प्रदान करते है. भगवान् के नाम का निरंतर गान ( जप बड़े महात्मा करते है ) हमें सारा ज्ञान दे देता है जिसको जानने के बाद कुछ जानना बाकि नहीं रहता. सब कुछ यानि भगवान् के स्वभाव को जान लेना ही भगवद प्राप्ति है. 

७.परमसुख आनंद देता है. 

एक कहावत है न ..... फूलों पर चलने से पहले तुम्हें कांटो से गुजरना पड़ेगा. यह कहावन गुरुकृपा से पूरी तरह सही है. क्योकि गुरु न हो तो ऐसा सोंचेंगे की ....यार ... फूलो पर चलना किसे है हम तो नाले से होकर गुजरेंगे. लेकिन हम इन्सान है हमें सुख चाहिए इसलिए हमें कांटो पर चलना गुरुदेव सिखाते है. क्योकि गुरु ऐसेही कोई नहीं बनता, बहोत ठोकरे ... बहोत कांटे ... दिल तोड़कर भगवान में मन लगाना पड़ता है. इसमें एक सीक्रेट है की जब हमें गुरुदेव कांटो पर चलना सिखा देते है तब पता चलता है की कांटे तो थे ही नहीं हमने फूलों को ही कांटे समझ लिया था. गुरुदेव भगवान् कोई जादूगर नहीं है की कांटो को फूलो में बदल दे....वे सिर्फ हमारी सोच को माया से हटाकर मायापति श्रीकृष्ण में लगा देते है. श्रीकृष्ण के बारेमें में सोचना ही परमानन्द ( प्रेमानंद ) है को सबके गुरु है. जय श्री राधा .....

८.हर समस्या से लड़ने में सामर्थ्य प्रदान करता है.

दोस्तों जीवन हमेशा इक जैसा नहीं रहता, इसमें उतार चढाव आते रहते है. उसी तरह जब आप अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण निर्णय लेते है जैसे की आप जॉब कर रहे हो लेकिन जॉब से जो इनकम, रेस्पेक्ट चाहिए वो नहीं मिल रही तब आप जॉब छोड़कर कुछ ऐसा करना चाहते है जिससे आपका भला हो और जिससे दूसरों का भी जीवन आनंद से भर जाये वो समय मानो आप कांटो पर ही चल रहे हो उस समय आपका कोई साथ दे या न दे लेकिन जिसने भगवान् का अमूल्य नाम का स्मरण, चिंतन, गान किया है उसका साथ भगवान् कभी नहीं छोड़ते. इस घटना से गुरुदेव महाराज ने एक कथा श्री रामजी भगवान की सुनाई जो में आपके साथ बांटना चाहता हु. जब श्री राम जी समुन्दर पर रामसेतु बना रहे थे तब सबको पता ही है की नल और नील ( जिन्हें ऐसा वरदान ( श्राप ) मिला था की वे जो भी पानी में डालेंगे वह डूबेगा नहीं )( इसमें वरदान इसलिए बोला गया क्योकि जो भगवान् के लिए कुछ करता है उसे मिला हुआ श्राप भी वरदान हो जाता है.) पानी में पत्थर फेंक रहे है फिरभी पुल सही से नहीं बन रहा था क्योकि अभी उस पत्थर पर "राम" नाम नहीं लिखा था. राम नाम ने पत्थर को जोड़कर रखा उसी तरह यह "राम" नाम हम जब मुसीबत में होते है (या न भी हो) तब हमें वह छोड़कर नहीं जाता, परीशान नहीं करता, वह हमारे दिल में आकर बैठ जाता है और हमेशा हमें जीवन में सही रास्ता दिखता है. भगवान् के नाम की महिमा अपार है ( जिसका कोई अंत न हो ). यह हमेशा हमारे साथ माता-पिता,दोस्त,पत्नी,बेटा बनकर रहता है. हमें कभीभी शरीरों को अपना नहीं मानना चाहिए. क्योकि इनका मरना तय है क्योकि इन्होने जन्म लिया है इसलिए हमें हमेशा कोशिश करनी चाहिए की जो हमारे माता पिता या अन्य संबध है उनके अन्दर हम भगवान् को देखें. भगवान् को हर जगह न देखने से हम परीशान हो जायेंगे, दुखी होंगे, रुलायेंगे और बहुत कुछ हो जायेगा. गुरुकृपा से पता चला की इस दुनिया में तुम्हारा भगवान् के अलावा कोई नहीं है. इसलिए राधा राधा, कृष्ण कृष्ण, राम राम, अल्ला अल्ला जिसे भी आप अपना भगवान् समझते हो उनका नाम स्मरण कर लिया करो. इसमें मैंने अल्हा (अल्हादिनी + लाडली + हमारी = श्री राधा ) का भी नाम लिया है क्योकि भगवान् एक ही है, उनके नाम अनेकों है, इन्सान उन्हें अलग रूपों में मानकर उनकी अनेकों प्रकार से पूजा करते है. वैसे भी भगवान् श्री कृष्ण गीता में भी कहते है की जिस भी भगवान् की आप पूजा कर रहे हो उसमे में तुम्हारा विश्वास और भी मजबूत करूँगा क्योकि वे सारे मेरे ही तो रूप है. गुरुकृपा से पता चला की भगवान् तो हर जगह है, दिवार से नरसिंह बनकर तो कभी श्वान (dog) से विट्ठल भगवान् बनकर प्रकट हो जाते है. बस भगवान् को देखने की दृष्टी ( नजरया ) चाहिए. जो गुरुकृपा से प्राप्त होती है और भगवान् के नाम का स्मरण,चिंतन,विश्वास गुरु को कृपा करने को मजबूर हो कर देता है. गुरु कोई आम इन्सान नहीं होता (भले वह इन्सान के रूप में दिख रहा हो ) . वे स्वयं भगवान् (श्री राधा) होते है जो जल्दी पहचान में नहीं आते. और जिसने अपने गुरु में भगवान् को देख लिया उसने समझलो भगवान् को पा ही लिया. जय श्री राधा ........

९.धन भी प्रदान करता है.

जो भगवान् का हो जाता है उसकी सारी जरूरते भगवान् स्वयं पूर्ण करते है. क्योकि लक्ष्मी पति जो ठहरे. लक्ष्मीपति है ठीक है लेकिन लक्ष्मी भी उन्हें चुनती है जो लक्ष्मी के पीछे नहीं दौड़ते, उनसे कोई उमीद नहीं रखते जब समुद्र मंथन हो रहा था तब सब चाहते थे की उन्हें लक्ष्मी मिले लेकिन लक्ष्मी ने उन्हें चाहा जो कुछ नहीं चाहते, अपने आप में ही पूर्ण स्वरुप परमात्मा जो है. क्योकि भगवान् श्री कृष्ण को भी पता है की लक्ष्मी और कोई नहीं वे स्वयं है. क्योकि भगवान् के अलावा इस दुनिया में कोई है ही नहीं. वे ही राम बनते है और रावन { जो उन्हीका पार्षद है, एक बार जय विजय जो भगवान् के द्वारपाल है उन्हें सनक सनंदन (५ वर्ष के दिखने वाले भगवान् का गुण गान करने वाले भक्त) ने श्राप दिया था की तुम अभी वैकुण्ठ से गिरकर विल्लन के रोल करोगे क्योकि भगवान् ऐसा ही चाहते है, उन्हें कारन बनाकर भगवान् को अवतार जो लेना था } बनकर  माता स्वरुप श्री सीता जी का हरण करते है. जय श्री राधा ........(में अज्ञानी हु कुछ लिखने में गलती हो तो माफ़ी )

१०.मन में मैल को धो डालता है.........

जिसने ऊपर के स्टेप्स पुरे कर लिए उसके मन में भला गन्दगी कैसे रह सकती है. जय श्री राधा ......
|| राधा राधा ||

TRANSLATION

|| RADHA RADHA ||

By the grace of Gurudev, I have understood that taking the name of God repeatedly is the greatest wealth. In today's era, we know the importance of money but the importance of God's name has diminished. Only the name of God gives us true happiness and peace. There is infinite power in the name of God which even God himself cannot reach. By the grace of Gurudev, we get the name of God. We can achieve whatever we want in our life but we should chant the name of God that much. We commit countless sins every day knowingly or unknowingly, the name of God is the one that destroys these sins and provides happiness. But Gurudev says that we should not commit sins intentionally by taking the help of the name, if we do so, then our faith in God will start decreasing and we will also stop chanting the name of God. Even if we commit sins by mistake or due to ignorance, the name of God is the only support. We should chant it again and again whether we feel like it or not. It is the only name capable of destroying sins. This is known by the grace of Guru. The glory of the name of God is infinite which we ordinary people cannot say.

It .....

1. Destroys all sins

2. Makes us attain the true Guru.

3. Makes us free from worries.

4. Provides good sense.

5. Good qualities are awakened within us.

6. Unites us with God or helps us attain God.

7. Gives supreme happiness and joy.

8. Provides strength to fight every problem.

9. Also provides wealth.

10. Washes away the dirt in the mind.........

God's name has infinite power which we cannot overcome.............................no end


1. Destroys all sins

Friends, we keep committing many sins in our life knowingly or unknowingly due to which we may have to suffer great sorrow. The only thing that can destroy these sorrows is God's name. When we start chanting the name, many dirty thoughts come to our mind, this happens because we have committed many sins in many births, this dirt of sins starts coming out of us. And we think that since I have started taking God's name, this trouble or jealousy has started. But we should not pay attention to these dirty thoughts and should take God's name as much as possible.


2. Makes us attain the true Guru.

God's name makes us attain the true Guru. It is very important to have a Guru in this life, just like if we are lost in a dense forest and we have to get out of that forest, then we will need a person who knows everything about that forest, only then he will be able to get us out of that forest, in the same way we are stuck in the beautiful looking jungle of Maya. It is very important to have a Gurudev in life who takes us out of this jungle and unites us with God. Guru is the ocean of knowledge who removes our vices by giving us true knowledge. God also says in "Bhagwad Mahapuran" that the true Guru is my form.


3. Frees from worries.

There is no one in the world who is not worried, everyone is worried about something or the other. Only thinking about the name of God can remove our worries. In today's time, we do not know how many measures to get rid of worries, but with those measures we can be free from worries for some time, but only the name of God can free us from worries for the whole life. We often get this thought in our mind that why do we become so worried and anxious. The reason for this is the lack of spirituality in life. We humans are progressing in science, sports, studies and many other fields but spirituality i.e. connecting with God is very far from this, this is the reason we go into depression. We start studying from childhood itself. Why? Because when we grow up we have to do business or a job. That means we have to earn money. Why are we earning money? Because we know that with money we can buy many things that give us happiness. But money gives happiness to our body, not to the mind. God resides only in a happy mind, so to bring happiness to the mind it is very important to take the name of God. Because true happiness lies in the name of God.

4. Provides good sense.

In this era, keeping your intellect pure has become a big challenge. From young to old, everyone's intellect is being filled with garbage. The reason for this is TV, shorts, insta reels and more... all these are destroying our intellect like a disease. One special thing about them is that they all show us the same videos that we want to watch. We feel like watching them again and again. To avoid them, we should take refuge in the name of God. Whenever we feel like watching them, we should immediately start chanting the name of God like Radha Radha Radha Radha..... There are no different Gods in the world. Everyone's God is the same, he has just taken many incarnations and will keep taking them, all of them have different names but there is only one God in all those incarnations. If everyone's God was different, then we humans would not have been the same. Some have four hands, some have two faces, meaning all Gods would have created humans in their own way. But it is not so, there is only one God and hence humans are also the same. We should chant the name of the God we love the most or the name given by our beloved Guru. The name given by him purifies our intellect as soon as possible and gives us ultimate peace. Just like we clean our house every day to keep it clean, in the same way our intellect also becomes impure knowingly or unknowingly.

5. Virtues are awakened within us.

Friends, we become what we think or what we think about. Similarly, when we chant God's name, remember Him, then God gives us virtues because all virtues reside in God's name. God is the master of infinite arts. We are a part of God, that is why we also have many arts within us. By forgetting God, we have become so busy that we are losing ourselves. We do not know what art, quality, power God has filled within us. Before sending anyone to this earth, God fills his art inside that living being so that it can be able to live on this earth. We see that every living being, whether it is an animal, a bird or any other living being, has a unique power or strength. In today's time, except for humans, all living beings know about their powers and qualities, but humans have got so entangled in the web of the internet that they do not have time to know themselves. It is only God's name that can free us from this web and awaken our virtues or powers.

6. It unites us with God or helps us attain God.

It is difficult to concentrate on God. But we can do good deeds so that God gets attracted to us. Because when we help someone, we are not helping anyone else but ourselves to reach God. Good deeds take us to God, God takes us to the true Guru and the true Guru gives us the name of God which is greater than God. Continuous chanting of God's name (chanting is done by great saints) gives us all the knowledge, after knowing which there is nothing left to know. Knowing everything i.e. the nature of God is attainment of God.

7. Supreme happiness gives bliss.

There is a saying… before walking on flowers you will have to pass through thorns. This saying is completely true with the grace of Guru. Because if there is no Guru then we will think that… friend… who wants to walk on flowers, we will pass through the drain. But we are humans, we need happiness, that is why Gurudev teaches us to walk on thorns. Because no one becomes a Guru just like that, one has to face many obstacles… many thorns… break the heart and concentrate on God. There is a secret in this that when Gurudev teaches us to walk on thorns then we come to know that there were no thorns at all, we had considered flowers as thorns. Gurudev God is not a magician who can turn thorns into flowers… he just removes our thinking from Maya and focuses it on Mayapati Shri Krishna. Thinking about Shri Krishna is bliss (premanand) who is the Guru of all. Jai Shree Radha.....

8. Provides strength to fight every problem.

Friends, life is not always the same, it has ups and downs. Similarly, when you take the most important decision of your life, like you are doing a job but you are not getting the income and respect you want from the job, then you want to leave the job and do something that will benefit you and fill the life of others with happiness. That time is like you are walking on thorns, at that time someone may or may not support you, but God never leaves the side of the one who remembers, thinks and sings the invaluable name of God. From this incident, Gurudev Maharaj narrated a story of Lord Shri Ramji, which I want to share with you. When Shri Ram Ji was building Ram Setu on the sea, everyone knows that Naal and Neel (who had received such a boon (curse) that whatever they put in water will not sink) (boon is said because whoever does something for God, the curse he receives becomes a boon) were throwing stones in the water, but still the bridge was not being built properly because the name "Ram" was not written on that stone yet. Ram's name held the stones together, in the same way this name "Ram" does not leave us when we are in trouble (or even if not), it does not trouble us, it comes and sits in our heart and always shows us the right path in life. The glory of God's name is immense (which has no end). It always stays with us as parents, friend, wife, son. We should never consider the bodies as our own. Because their death is certain because they are born, therefore we should always try to see God in our parents or other relations. If we do not see God everywhere, we will become upset, sad, cry and many other things will happen. By the grace of Guru, I came to know that in this world you have no one except God. Therefore, remember the name of Radha Radha, Krishna Krishna, Ram Ram, Allah Allah, whoever you consider your God. In this, I have also taken the name of Allah (Alhadini + Ladli + Hamari = Shri Radha) because God is only one, he has many names, people worship him in many ways by considering him in different forms. Anyway, Lord Shri Krishna also says in Geeta that whichever God you are worshipping, I will make your faith even stronger in him because all of them are my forms. By the grace of Guru, I came to know that God is everywhere. Sometimes he appears as Narasimha from the wall and sometimes as Vitthal Bhagwan from a dog. You just need the vision to see God. Which is received by the grace of Guru. And remembering, thinking and believing in the name of God forces the Guru to bless. Guru is not an ordinary human being (even if he appears in the form of a human). He is God himself (Shri Radha) who is not easily recognized. And the one who has seen God in his Guru, understand that he has found God. Jai Shri Radha ........ 9. He also provides wealth. The one who becomes God's, God himself fulfills all his needs. Because Lakshmi is his husband. It is alright that he is Lakshmi's husband but Lakshmi also chooses those who don't run after Lakshmi, don't have any expectations from her. When the ocean was being churned, everyone wanted to get Lakshmi but Lakshmi wanted the one who doesn't want anything, who is the complete God in himself. Because even Lord Shri Krishna knows that Lakshmi is none other than himself. Because there is no one in this world except God. He himself becomes Ram and Ravan {who is his councilor, once Jai Vijay who is the gatekeeper of God was cursed by Sanak Sanandan (a devotee who looks like a 5 year old and sings the praises of God) that you will fall from Vaikunth and play the role of a villain because God wants this, by making him the reason God had to take incarnation} abducts Mother form of Sita. Jai Shri Radha ........(I am ignorant, if there is any mistake in writing then please forgive me)

10. Washes away the dirt in the mind.........
How can the one who has completed the above steps have any dirt in his mind. Jai Shri Radha ......

|| RADHA RADHA ||
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