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जय श्री राम

रा = राधा + माँ = माधव

जय श्री राधा 
हा दोस्तो भगवान हमारे दिल में ही वास करते है, भगवद गीता का यह श्लोक प्रमाण है.......
वे इस श्लोक में कह रहे है कि में ही सारे जीवो के हृदय में स्थित परमात्मा हु, में ही समस्त जीवो का आदि, मध्य तथा अंत हु।
दोस्तो मंदिर में भगवान के दर्शन तो हम करते ही है, लेकिन भगवान मंदिर के अलावा हमारे मन में ही अपना दीदार (दिखना) करवाते है। लेकिन उसके लिए मन का साफ होना जरूरी है,
हमसे अनंत जन्मों से अनेकों विभिन्न प्रकार के अच्छे तथा बुरे कर्म किए है, और उनका फल हमे भोगना ही पड़ता है लेकिन जब हम प्रति दिन भगवान को स्मरण करते है, उनका भजन करते है, उन्हें देखते है तो वे पाप कर्म मानो तलवार से छोटे होकर सुई जितना ही दर्द देते है यानी हमारे पाप कर्मों को अति सूक्ष्म कर देते है और शुभ कर्मों का हमे अच्छा फल भी देते है। 
इसलिए दिन में कम से कम एक बार हमे भगवान को जरूर याद कर लेना है।
जय श्री राधा 
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जय श्री राधा 

नमस्ते दोस्तों भगवद गीता के अध्याय 18 में 65 वे श्लोक में भगवान कह रहे है कि......
सदैव मेरा चिंतन करो, मेरे भक्त बनो, मेरी पूजा करो और मुझे नमस्कार करो।
इस प्रकार तुम निश्चित रूप से मेरे पास आओगे ।
में तुम्हे वचन देता हूँ, क्योंकि तुम मेरे मित्र हो ।
दोस्तो भगवान को पाने के लिए हमे सबसे पहले भगवान से रिश्ता बनाना होगा, हम उन्हें अपना दोस्त, बेटा, पिता या और कोई रिश्ता हम भगवान से बना सकते है। भगवान मिलना मुश्किल है लेकिन भगवान को अपना रिश्तेदार बनाकर जल्द से जल्द मिला जा सकता है।
दोस्तो श्लोक में भगवान कह रहे है कि सदैव मेरा चिंतन करो, लेकिन पहले पहले हमारा चिंतन नहीं होगा, लेकिन बार बार भगवान को याद करने से, उनका भजन करने से, उनकी सेवा करने से धीरे धीरे भगवान में हमारा मन लगने लगेगा। जब हम भगवान के सच्चे भक्त बनेंगे, भगवान की पूजा करेंगे, उन्हें नमस्कार करेंगे तो आसानीसे भगवान हमे मिल जाएंगे
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Jai Shree Radha 

 दोस्तों भगवद गीता के अध्याय 9 के 19 वे श्लोक में भगवान कह रहे है कि में ही ताप प्रदान करता हु, और सूर्य को सुर्यनारायण भी कहते है, यानी सूर्य और कोई नहीं भगवान कृष्ण ही है, वे ही अमर है और हमारे जीवन की मृत्यु रूप में भी वही आते है, वे ही आत्मा है और शरीर भी वही है, बस फर्क इतना है कि शरीर जन्म लेता है इसलिए उसकी मृत्यु निश्चित है और आत्मा अमर है इसलिए उसे कोई मार नहीं सकता।
दोस्तो हम किसी जगह घूमने या किसी काम से जाते है तो उसकी हम पूरी तैयारी करते है, वहां कितने पैसे लगेंगे, क्या पहनेंगे, क्या क्या खायेंगे इस तरह की अनेकों तैयारियां हम करते है, लेकिन जब अंत में भगवान के पास जाना है तब उसकी तैयारी भी हमे करनी चाहिए।
मन में सवाल आता है कि भगवान के पास जाने के लिए क्या करना पड़ेगा
देखो दोस्तो भगवान हमारा दो तरह से वेलकम करते है
अगर हमने अच्छे कर्म किए तो वे कृष्ण बनकर मिलेंगे और हमसे प्रेम करेंगे
और बुरे कर्म किए तो कृष्ण ही यमराज बनकर हमें हमारे बुरे कर्म की सजा भुगतवाकर निष्पाप करके पुनः हमे मौका देते है, लेकिन हमे मनुष्य शरीर मिले यह जरूरी नहीं, मनुष्य शरीर कई योनियों में से गुजरने के बाद मिलेगा।
इसलिए यह मनुष्य शरीर की बहुत अहमियत है, हम जो भी कर रहे है उसे करते करते अगर भगवान को याद कर लिया तो सहज ही भगवान हमे मिल सकते है।
दोस्तो भगवान की और कदम बढ़ाना है तो दिन में कम से कम एक बार महामंत्र गाना चाहिए, जो इस तरह है......
"हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे"
यह मंत्र भजन की तरफ इक नींव बनता है,
इस मंत्र को हर दिन गाना चाहिए।
जय श्री राधा 
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मेरे प्रिय मित्रो,
हम सबको पता है वृन्दावन में रहना आसान नहीं है, लेकिन भगवान कृष्ण ने भगवद गीता में कुछ इस तरह परम गुप्त रहस्य बताया है, जो कुछ इस तरह है.......
इसका मतलब होता है.....
मैं ही लक्ष्य, पालनकर्ता, स्वामी, साक्षी, धाम, शरणस्थली तथा अत्यंत प्रिय मित्र हु ।
मैं सृष्टि तथा प्रलय, सबका आधार, आश्रय तथा अविनाशी बीज भी हूँ।
यानी हम कृष्ण का नाम गाते है, तो हम अनजाने में भी वृन्दावन में ही रह रहे है, लेकिन कृष्ण जल्दी पाने का बस एक ही रास्ता है और वो है श्रीराधा, श्रीराधा ही है जो हमें कृष्ण से समयसे पहले यानी मृत्यु से पहले कृष्ण से मिलवा देगी ।
जय श्री राधा 
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दोस्तो जीवन में कई पडाव आते है, कभी दुख आता है तो कभी सुख मिलता है, यह सब क्यों होता है, इस तरह के अनेक सवाल मन में आते ही है। 

इन सब सवालों के जवाब आज सुलझाने वाले है, 
इस दुनिया में जो कुछ भी हो रहा है, इसमे भगवान ही सब कुछ बने हुए है, वही इंसान है और वे ही ईश्वर है, फर्क बस इतना है की इंसान लेना जानते है, और भगवान देते है। भगवान सिर्फ मूर्ति में ही नही हर इंसान के दिल में भी बसते है, जिसने भगवान को जान लिया उसने सब कुछ जान लिया ऐसा समझना चाहिए, इसलिए हमे कोशिश करनी है की हमसे गलतीसे भी किसका दिल न दुखे, सबको हम खुश नही रख सकते, हमे बस भगवान को खुश करना है, उनके खुश होने के बाद हमारे जीवन में भी खुशियां आ जाती है।
भगवान को खुश करने का बस एक ही रास्ता है और वह है उनके बच्चो का ध्यान रखना, जो राह में भटके है उन्हें राह दिखाना, जिसे भूख लगी है उसे खाना खिलाना, जिसे चोट लगी है उसे दवाई लगाना, जो यह सब ना कर पाए उसके लिए बस एक ही काम है और वह है श्रीराधा का नाम गाना, बस श्रीराधा ही जो हमे कन्हैया से मिलाएगी। इसलिए श्रीराधा श्रीराधा गाते रहो, अपने जीवन में खुशियां लाते रहो।

Jai Sree Radha.......
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श्री गणेशाय नमः


दोस्तो जैसा कि हमे पता है, गंगा जी, जो की श्री नारायण भगवान के चरण कमलों से प्रकट हुई है, यानी नारायण भगवान ही गंगाजी बनकर बह रहे है, उन्हें संभालने की ताकत सिर्फ श्री शिवजी के पास है, इसलिए उन्होंने श्री गंगा जी को अपने सिर पर धारण किया, इसी लिए वह हिमालय से यानी श्री शिवजी के ससुराल से निकलती है, शिवजी को अपनी प्रिया पार्वती से बहोत प्रेम है इसलिए गंगाजी हिमालय से निकलती है शिव बनकर, जब यह नदी बहते बहते समुंदर (बंगाल की खाड़ी) में मिल जाती है, समुंदर में जाते ही सूर्यनारायण भगवान उसे तपाते है और वह बाफ (ब्रम्हा) बनकर आसमान में चली जाती है, पानी में H20 यानी हाइड्रोजन और ऑक्सीजन होता है, जो को हम सांस में लेते है, सांस कोई और नही स्वयं ब्रम्हा बनते है, इसलिए ब्रम्हा की पूजा नही की जाती, क्योंकि उन्हें तो हम सांस के जरिए हर वक्त ले ही रहे है, बर्फ ( शिवजी ), पानी (विष्णुजी) जिन्हे हम देख सकते है उन्ही की ही तो पूजा होगी ना, जय श्री राधे 

इस पूरी थियरी का मतलब साफ है, ये तीनो देवता कोई अलग नहीं है, तीनो एक ही भगवान के प्रकट किए हुए है, और वह है प्रेम के प्यारे श्री राधाकृष्ण, प्रेम के बैगैर ना तो जन्म हो सकता है, न ही कुछ और.........
जय श्री राम 
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|| जय श्री राधा ||

दोस्तों जीवन में गुरुका होना उतना ही जरुरी है जितना इन्सान के लिए साँस लेना. बिना ओक्सिजन के जैसे हमारा शरीर नहीं रह सकता वैसे ही हमारे मन में भगवान् बसे होते है उन्हें जानने के लिए गुरु का होना जरुरी है. मैंने तो मेरे गुरु को पहचान लिया वो है शिव पार्वती जो हमारे माता पिता के दिल में बसे होते है. शरीर को छोड़ा जा सकता है लेकिन परमात्मा को नहीं। गुरु की कृपा से जब कुछ दिनों का वृन्दावन वास मिला तब पता चला की गुरु बिना भगवान् के नहीं रहते, हर जगह बस राधा राधा राधा राधा .....सिर्फ राधा का नाम सुनने को मिलता है क्योकि राधा प्रेम का स्वरुप है जो कृष्ण से प्रेम करे वही श्री राधा है बाकि सब माया है. इस माया मोह से निकालने वाली सिर्फ श्री राधा है. भगवान का जब मन किया की में अपने आप से प्रेम करू तो उनका मन ही श्रीराधा के रूप में प्रकट हो गया. में कोई ज्ञानी नहीं हु मेरे गुरु मेरे मन में बसे है वही सब कुछ करने वाले है हम तो बस उनके गोद में बैठे है. वे जैसा चाहे वैसा कराये. गुरु की कृपा से पता चला की कृष्ण भगवान् के एक एक रोम में अनंत ब्रम्हांड बसते है, तो उनमें ही हम है. हमारे ह्रदय में भी भगवान् बसे है क्योकि जब यह दिल धड़कना बंद करता है तब इस शरीर की कोई अहमियत नहीं रहती इसे जला दिया जाता है या दफना दिया जाता है. इसलिए अपने गुरु से प्रेम करे वे हमें सबके गुरु श्रीराधाकृष्ण के पास पहुंचा देते है. इस बात की सच्चाई श्रीमद भागवत महापुराण में लिखी है उसमे भगवान् श्री कृष्ण कहते है की सच्चा गुरु मेरा ही स्वरुप है इसलिए गुरु ही  श्रीराधाकृष्ण है.

जीवन में गुरु क्यों बनाये ?

  भगवान् ने भी जब अवतार लिया तब भगवान् को भी उपदेश देने के लिए गुरुको आना पड़ता है. क्योकि बिना गुरु के भगवान् भी भगवान् नहीं बन सकते. श्रीराम हो चाहे श्रीकृष्ण दोंनो ही गुरु के पास गए उनसे सीखे वैसे तो भगवान् होने पर उन्हें सब ज्ञान है परन्तु हम जैसे सामान्य जनों को शिक्षा देने हेतु वे भी गुरु के पास जाते है उनकी सेवा करके वे भगवान् बनते है. हमें भगवान् से यह शिक्षा मिलती है की जो गुरु की मन से तन से या धन से सेवा करता है वह भगवान् का ही स्वरुप है.भगवान् और गुरु में कोई अंतर हो ही नहीं सकता. गुरुसे एक कथा सुनने को मिली की महाराष्ट्र के एक संत जिन्हें भगवान ने कई बार दर्शन दिए फिर भी वे अपूर्ण थे क्योकि उन्होंने गुरु नहीं बनाया था, जिसने गुरु नहीं बनाया उसे भगवान् मिलने पर भी उसके मन में आनंद का उद्गम नहीं हो सकता, जब विट्ठल (श्रीकृष्ण) भगवान ने उन्हें गुरु बनाने को बोला तब वे पूर्ण परमेश्वर को प्राप्त हो गए उन भक्त संत का नाम था श्री नामदेवजी. जब उनके गुरूजी से उन्हें भगवान् का स्वरुप का पता चला तब उन्हें ज्ञान हुआ की सिर्फ भगवान् की मूर्ति में ही भगवान् नहीं होते हर जगह हर किसीमें सिर्फ भगवान् ही बसे है. इस तरह के अनंत ब्रम्हांड को चलाने वाले सिर्फ भगवान् ही है.

में गुरुकी महिमा का वर्णन करने में असमर्थ हु इसलिए अपने गुरु की आग्या का पालन करे. उनकी आग्या बस इतनी है की भगवान् को हम हमेशा याद रखे, उन्हें प्यार करे, उनके नाम का गान करे, भगवान् श्रीकृष्ण भी गीता में यह कहते है " हे अर्जुन मैंने तुम्हे जो ज्ञान दिया है उसे तुम भूल जाओ और सिर्फ मेरा ध्यान करो, मुझे प्रेम करो, मुझे अर्पित किया प्रसाद पाओ, अपने आप को मुझे समर्पित कर दो. यही सबसे बड़ा, गहरा और जानने योग्य है, भगवान् गुरु ही प्रेमानंद है जो हमें प्रेम में डुबाकर भगवान् के पास पहोंचाने वाले है.

इसलिए बस श्रीराधा श्रीराधा श्रीराधा श्रीराधा कहते चलो..., भगवान् कही दूर नहीं तुम्हारे अन्दर ही बसे है.

|| जय श्री राधा || 
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 || जय श्री राधा ||


|| Sree Ganeshay Namah ||


भगवान् गणेश शिव शक्ति के पुत्र है. जो संतान अपने माता पिता को ही परमेश्वर माने वही सर्वप्रथम पूजनीय देवता है. हमने बाल गणेश के बारे में एक कहानी जरुर सुनी होगी जिसमे सम्पूर्ण ब्रम्हांड के चक्कर लगाने होते है. जिसमे बाकि सब देवता तो तुरंत अपने वाहनों पर बैठ कर इस दुनिया के चक्कर काटते है लेकिन श्रीगणेश जी अपने मातापिता में ही पूर्ण ब्रम्हांड को देखते है जो सच भी है जिसने हमें इस दुनिया में लाया उस जिव के लिए तो उसके माता पिता ही सर्वस्व है. हम बच्चे अनेकों गलतिया करते है लेकिन वे हमें माफ़ कर देते है. हमें भी चाहिए की जब बुढापे में, हमारे माता पिता, बच्चे जैसा बर्ताव करे तब हमें उनका माता पिता बनकर उनका ध्यान रखना चाहिए. जब हम बच्चे होते है, तब वे हमारी गलतियो पर ध्यान न देकर, हमें सही शिक्षा प्रदान करते है तब हमें भी अपने माता पिता को किसी भी कार्य के लिए गलत न समझकर उन्हें अपने साथ रखना चाहिए बल्कि उन्हें जिस तरह हो उस तरह उन्हें सुख पहोंचना चाहिए. भले ही उनके अन्दर सद्गुण हो या न हो, या दुर्गुणों का भंडार हो उन्हें हमें जब वे गलत हो तब उन्हें डांटना भी चाहिए और उन्हीको प्यार भी करना चाहिए. वे ही पूजनीय है इसलिए श्री गणेश जी ने भी उन्हें अपना सर्वस्व मानकर उन्हिकी परिक्रमा की और वे ही विजयी भी हुए. जो अपने माता पिता को ही भगवान् मानता है उसे भगवान् भी भगवान् मानते है, इसलिए तो श्रीनारायण भगवान् ने अपनेसे पहले श्री गणेशजीको सर्वप्रथम पूजनीय का स्थान दिया. क्योकि मातापिता ही लक्ष्मी नारायण का स्वरुप है वे ही शिव है और स्वयं शक्ति भी. आज कल जिन बच्चों ने अपने माता पिता को साथ रखा है जो अपने माता पिता को ही भगवान् मानता है उसकी सेवा में स्वयं लक्ष्मी जी रहती है, जो धन प्रदान करने वाली देवी है. जो जिव सिर्फ पैसो को ही अपना मानता है उसके मन में शांति नहीं है और शांति से बड़ा धन कोई नहीं. जो शिवशक्ति को ही अपने माता पिता में देखता है उसके जीवन में धन तो रहता ही है लेकिन शांति के साथ. जिन के पास धन नहीं है और वे अपने माता पिता की सेवा करना चाहते है उनके लिए सिर्फ इतना कहना चाहता हु की जब हम छोटे थे तब उन्होंने अपने आप को भूल कर सिर्फ हमें प्रधानता समझकर हमें वह सब दिया जिसकी हमें जरुरत है. तो क्या हम उन्हें दो समयकी रोटी, और प्यार नहीं दे सकते. 
शादी होने के बाद एक पति पत्नी को एकांत (एक दुसरे से प्यार ) की जरुरत होती है. यह सब होने के पहले मातापिता का भी कर्त्तव्य बनता है की वे अपने पुत्री या पुत्र को इस काबिल बनाये की वे स्वयं सारी जिम्मेदारिया खुद उठा सके उन्हें अपने मातापिता पर निर्भर न होना पड़े. जो अपने बच्चो को इस तरह शिक्षा देते है उनके बच्चे उनके साथ हमेशा रहते है. बच्चे को सिर्फ पैसा कमाना सिखा दे इसको सही शिक्षा नहीं कहते. पैसा जो कमाया है, उस धन को परमार्थ यानि दुसरों की मदत करने में भी लगाये. जब हम अपने बच्चों को दूसरों के सेवा करना सिखाते है तब बच्चे भी अपने माता पिता का अच्छेसे ध्यान रख पाए इस काबिल हो जाते है. उन्हें भी ज्ञान हो जाता है की सच्चे भगवान् तो हमारे माता पिता ही है. उन्हिकी सेवा करने से प्रभु प्रसन्न होते है. प्रभु प्रसन्न होने पर हमें कुछ पाना बाकि नहीं रहता, सबकुछ भगवान् ही बने है, वे ही हमें अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष सबकुछ जो हमारे लिए सही है वे प्रदान करते है.
दोस्तों में कोई ज्ञानी नहीं हु मेरे मन में जो कुछ आ रहा है वही में लिख रहा हु. में भी अपने आप से सीखता हु की जो में लिख रहा हु उसे में भी अपने जीवन में एक सौ आठ प्रतिशत उतार सकू.

"त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव, त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देव देव"

|| जय श्री राधा ||

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