रावण ने माँ सीता का अपहरण क्यों किया ? जय श्री राधा

by - अप्रैल 17, 2025

 हम सब से पहले रामायण के बारे में समझते है.

रा = राम 

माँ = माँ सीता 

य  = ज+ विजय   

न = नारायण 

नारायण यानि विष्णु भगवान् के जो पार्षद थे जय विजय, उन्हें भगवान् की कृपा से भेजा गया था, क्योकि रामजी ही  नारायण है. दुनिया जो नारायण चला रहे है उन्हें अपने बच्चो यानि हमें ही शिक्षा देने हेतु इस धरा पर अवतार लेना था. इसलिए भगवान् के पार्षद को ही विल्लेन का रोल मिला और नारायण ने राम का रोल निभाया और जो सीता जी है, सबसे बड़ा किरदार इन्हिका है क्योकि वे स्वयं शिवजी है जानते है किस तरह....

S - शिव 

I - इश्वर 

T - त्रिनेत्रधारी  

A - अम्बा के पति  ( अम्बा ही कृष्ण है - जल्द ही जानेंगे )

राम और रावण दोंनो ही श्री शिवजी के भक्त थे लेकिन श्रीराम जी को मर्यादापुरुषोत्तम कहा गया है, श्री सीताजी जो श्रीराम की अर्धांगिनी है उन्हें किडनेप करने का जो प्लान है वह रावण का नहीं नारायण का ही है, क्योकि अपनी माँ को भी कोई किडनेप करता है भला, उन्हें तो बस एक रोल मिला है जिसको रावन ने बड़े अच्छी तरह निभाया. इस रामायण के डायरेक्टर, प्रोडूसर, एक्टर स्वयं नारायण ही है क्योकि नारायण के अलावा कुछ है ही नहीं. वही इस सृष्टि का ब्रम्हा रूप से निर्माण करते है, नारायण रूप से पालन करते है और शिव रूप से अंत करते है. 

हम आम इन्सान जिस तरह नारीशक्ति को गलत नजरिये से देखते है तब राम को तो आना ही पड़ेगा अपनी शक्ति को बचाने के लिए. सबसे सिंपल एक बात कहना चाहता हु की भगवान् न ही पुरुष होते है न ही श्री वह प्रेम रूप से हर जिव के ह्रदय में वास करते है. सीताराम,राधेश्याम,शिवशक्ति,लक्ष्मीनारायण  कोई अलग भगवान् नहीं है. वे सब एक परम आत्मा है जो सबके दिल में परमात्मा के रूप में बसते है. सीता,राधा,शिव,लक्ष्मी एक ही है और राम,श्याम,शक्ति,नारायण एक ही है, यह सब ज्ञान की बाते मुझे अपने गुरु से ही प्राप्त हुई है बाकि में कुछ नहीं हु सब गुरुदेव का है. गुरुदेव ही श्री राधारानी है.  

शिव ही राधा है क्योकि दोंनो ही एक है जो परम कृपालु है. जो इनका हो जाता है उसे भगवान् अपने आप को सौप देते है. भगवान् ही राम है इसलिए सीता बनकर शिवजी की सेवा करते है, शिव ही राधा है जिनकी सेवा में स्वयं कन्हैया तत्पर रहते है. यानि यह अपने आपको कभी बड़ा नहीं मानते, हमेशा एक दुसरे की सेवा करते है. हमेशा पति पत्नी बनकर एक दुसरे का साथ निभाते है. दोस्त बनकर दोस्ती निभाते है, पिता बनकर बेटे का ध्यान रखते है. गुरु बनकर अपने शिष्य को ज्ञान देते है. माँ बनकर दुलार करते है.

इस दुनिया में भगवान् के अलावा कोई है ही नहीं जो भगवान् को भूल जाये उसे माया नचाती है. जिसे भगवान् ने स्वीकार कर लिया उसके लिए स्वयं भगवान् नाचते है जिस तरह गोपियो के लिये नाच रहे है. इसके लिए हमें सिर्फ भगवान् को भगवान् न मानकर बस अपना प्रियतम मानना चाहिए. जिस तरह एक श्री अपने पति को अपना सबकुछ सौप देती है उसी तरह अगर यह मनुष्य अपना सबकुछ भगवान् को सौप दे तो भगवान् उसे अपने मन के मंदिर में दीखते ही है. मंदिर ही एक ऐसी जगह है जहा मन में ही भगवान् का दीदा यानि भगवान् दिख सकते है.

|| जय श्री राधा || 


 

You May Also Like

0 टिप्पणियाँ