प्रेम और सेक्स में क्या अंतर है | Jai Sree Radha

by - अप्रैल 17, 2025

|| जय श्री राधा ||

 प्रेम :-



प्रेम में दुसरे का सुख देखा जाता है. में जिसे चाहता हु वह सुखी रहे. प्रेम निस्वार्थ होता है. प्रेम किसीसे भी किया जा सकता है, लेकिन सबसे ज्यादा जरुरी अगर हमारे लिए कोई है तो वे हे हमारे माता पिता, जो अपने माता पिता से प्यार न कर सके वो किसीसे भी प्यार नहीं कर सकता. इसका सबसे अच्छा उदाहरण श्री राम जी का है जिन्होंने अपने पिता की आग्या पर १४ वर्षो का वनवास ख़ुशी ख़ुशी स्वीकार कर लिया. वे चाहे तो राज्य उन्हें मिल सकता था लेकिन वे अपने माता पिता से प्रेम करते थे. प्रभु तो प्रेम के अधीन है, दूसरी बात माता कैकई भी महान है जिसने राम को एक महान कार्य हेतु वनवास प्रदान किया इससे उन्हें काफी भला बुरा सुनने को भी मिला. वैसे भगवान् का जन्म ही दुष्टो का विनाश करने हेतु हुआ था अगर उन्हें सीधे सीधे राज्य मिल जाता तो ... जो भक्त जन है जो भगवान् की पूजा अर्चना करते है उन्हें राक्षसों का भय लगा रहता था राक्षस उन्हें कच्चा खा जाते थे, परीशान करते थे ... गुरु से तो ऐसा भी सुनने को आया है की भक्तजनों की हड्डीयों का ढेर लग गया था इतना राक्षसों का आतंक बढ़ गया था. इन राक्षसों का विनाश और भक्तों पर कृपा करने हेतु भगवान् श्री राम का जन्म हुआ था. कैकई माता ( को यह आदेश की राम को वनवास दिया जाय ) को इसलिए चुना गया की वे बढ़ी साहसी नारीशक्ति थी इकबार जब देवता राक्षसों से बड़े परेशान थे तब राजा दशरथ जो की बड़े शूरवीर योद्धा थे उन्हें देवताओने अपने साथ राक्षसों पर विजय पाने के लिए साथं में बुलाया था .... जब दोनों पक्षों का युद्ध हुआ तब राजा दशरथ का रथ का पहिया रथ से अलग होने वाला था तब माता कैकई जो उनके साथ गयी थी उन्होंने अपनी ऊँगली को पहिये से रथ को जोड़े रखा ताकि राजा दशरथ युद्ध करते रहे उन्हें कोई परिशानी न हो. वे युद्ध पर विजय पाए और उन्हें विजय यानि जित मिली भी. और सच्चा प्रेम का स्वरुप भी यही है की खुदकी परवा न करके अपने पति के लिये दुःख को भी ख़ुशी के साथ सह ले. हमें यह विचार आ सकता है की यह प्रेम कहा गया था जब श्रीराम को उन्होंने वनवास भेजके अपने पति को सबसे बड़ा दुःख दिया. इसमें देश का प्रेम पति के प्रेम से बड़ा होता है जैसे की एक सैनिक भी जब बॉर्डर पर जाता है तो उसके लिए अपने परिवार से ज्यादा देश की महत्वता रहती है. देश यानि अपनी मातृभूमि जिसने हमें जन्म दिया इस मातृभूमि के लिए हर एक कैकई माता अपने बेटे को देश की रक्षा के लिए बॉर्डर पर भेजती है ऐसी माता और बेटे पर हमें गर्व होना चाहिए. यह लिखते हुए में अपने आंसू नहीं रोक पा रहा हु क्योकि में भी तो इस भारत भूमि का ही पुत्र हु. जय श्री भारत, जय श्री राम, माता के चरणों में कोटि कोटि प्रणाम. सीताराम का प्रेम भी बड़ा अद्भुत है....अपनी पत्नी प्रेयसी के लिए कोई सेना, कोई राज्य शासन न होने पर भी जो है उसे ही अपना साथी (श्री हनुमान जी और उनके साथी मित्रों) बनाकर शिवके बड़े भक्त रावन को परास्त किया. श्रीराम और रावन दोनो ही श्री शिवजी के बड़े भक्त थे, श्रीराम से ज्यादा शक्ति, माया, सम्पति में रावन बड़े थे लेकिन चरित्र श्रीरामजी का बड़ा था जिसका चरित्र साफ सुधरा होता है उसे परास्त करने वाला इस धरा पर पैदा होने से पहले मर जाता है. हमने एक पिक्चर देखि होगी सोल्जर जिसका किरदार अल्लू अर्जुन ने बड़े अच्छेसे निभाया है उसमे भी दिखाया है की करैक्टर से बड़ा कोई नहीं ( झुकेका नही साला). झुकेगा तो सिर्फ अपने भगवान् के लिए जो माता पिता और गुरु बने है. एक प्रेम की कहानी मेरे माता पिता की भी है उनका भी प्रेमविवाह हुआ है. मैंने उनके बिच प्यार,लड़ाई, झगडा देखा है लेकिन उन्होंने एक दुसरे का साथ कभी नहीं छोड़ा इससे बड़ा मेरे घर में प्रेम का उदाहरण नहीं है. इसलिए मैंने भी उनके सुझाये हुए लड़की के साथ विवाह किया क्योकि मुझे पता है अगर वे अपने लिए बेस्ट चुन सकते है तो में भी उन्हीका बच्चा हु तो मेरे लिए भी वो बेस्ट ही चुनेगे और उन्होंने चुना भी जिसके साथ में भी खुश हु. मेरी पत्नी भी मेरा बड़े अच्छेसे से ध्यान रखती है. में भी उसे चाहता हु. जय श्री राधा . प्रेम का सबसे बड़ा और प्यारा जोड़ा तो सिर्फ राधाकृष्ण का ही है. क्योकि वे ही हमारे माता,पिता,गुरु,दोस्त,सबकुछ वही बने है ..........................जय श्री राधा.



सेक्स्

बलं बलवतां चाहं कामरागविवर्जितम् । धर्माविरुद्धो भूतेषु कामोऽस्मि भरतर्षभ ।। ११ ।।
 यह गीता का सातवे अध्याय का ११ व श्लोक है जिसमे भगवान् कृष्ण बताते है की 
"में बलवानों का कामनाओं तथा इच्छा से रहित बल हैं। हे भरतश्रेष्ठ (अर्जुन)! मैं वह काम (सेक्स) हूँ , जो धर्म के विरुद्ध नहीं है।"
तात्पर्य : बलवान पुरुष की शक्ति का उपयोग दुर्बलों की रक्षा के लिए होना चाहिए, व्यक्तिगत आक्रमण के लिए नहीं। इसी प्रकार धर्म-सम्मत ( शादी के बाद दोंनो की इच्छा से ) मैथुन (सेक्स) सन्तानोत्पति के लिए होना चाहिए, अन्य कार्यों के लिए नहीं। अतः माता-पिता का उत्तरदायित्व है कि वे अपनी सन्तान को कृष्णभावनाभावित बनाएँ।
यह तात्पर्य "श्री श्रीमद ए.सी.भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद जी का है"

|| जय श्री राधा || 



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