श्री कृष्ण को बांसुरी बजाना किसने सिखाया जय श्री राधा | जय श्री राधा
|| श्रीराधा ||
श्री राधा ही है जिन्होंने श्रीकृष्ण को बांसुरी सिखाई, जिस तरह एक सेवक अपने स्वामी से तनख्वा लेता है और बदलेमे स्वामी का काम करता है उसी तरह श्री राधा श्रीकृष्ण की स्वामिनी है, वे उन्हें प्रेम करती है बदलेमे श्रीकृष्ण श्रीराधा श्रीराधा श्रीराधा श्रीराधा सिर्फ श्रीराधा बांसुरी से गाते है. क्योकि श्रीकृष्ण को बांसुरी प्रदान करने वाली श्रीराधा ही तो है, क्योकि जब कोई सेवक स्वामी के पास उनका काम करने जाता है तो स्वामी अपने सेवक को सारी चीजे प्रदान करता सिखाता है जिससे उसका सेवक अच्छेसे काम कर पाए. यह शायद ही किसी ग्रन्थ में लिखा होगा लेकिन मेरे भगवान् श्रीगुरुदेव श्रीराधा रानी की कृपा से आज इस विषय पर लिखने का मन किया. हम मनुष्य अपने आप को माने है तभी हमसे गलतिया होती है लेकिन जब हम अपने जीवन का कण्ट्रोल श्रीराधा के श्री चरणों में अर्पित कर देते है तो सब ज्ञान बिना किसीके सिखाये मन में आ जाता है क्योकि सबको सिखाने वाली श्री राधा मन में ही तो बसी है.
म = महारानी श्रीराधा
न = नन्द के लाडले को प्यार करने वाली.
म = माधुर्य की चरम सीमा
न = वृन्दावन की रानी श्री राधा
कितना भी श्रीराधा की धारा में डूबने की कोशिश की जाय लेकिन श्रीराधा डूबना नहीं तैरना सिखाती है. मारना नहीं अपने प्यारे पर मरना सिखाती है. जो श्रीराधा को जान ले ऐसा मनुष्य हो ही नहीं सकता. हम तो श्रीकृष्ण के सखा है. श्रीकृष्ण ही राधा है, राधा ही मन है, मन श्रीकृष्ण के बिना अधुरा है इसलिए मन से एक बार राधाकृष्ण कहके देखो क्या पता उनका दर्शन मन में ही हो जाये. मंदिर इसलिए मंदिर नहीं होता क्योकि उसमे भगवान् की मूर्ति है,
मन = मन में
दिर = दीदार हो जाये ( दिख जाये)
सबसे बड़ा मंदिर तो हमारा मन ही है जिसमे भगवान् मूर्ति नहीं स्वयं परमात्मा के रूप में बैठे है. यह सब गुरुदेव श्रीराधा की कृपा से ही आत्मज्ञान मिल सकता है. बाकि कितनी ही किताबे पढलो अपूर्ण ही बने रहोगे. पढना ही है तो अपने मन को पढो वह सिर्फ श्रीराधा श्रीराधा श्रीराधा श्रीराधा गाना ही सिखाएगा, जो श्रीराधा के भरोसे हो जाये वही श्रीकृष्ण है बाकि श्रीकृष्ण भी वृन्दावनेश्वरी से अलग होने पर द्वारकाधिष कहलाये. वैसे तो श्रीराधा ही श्रीकृष्ण है, शरीर भले दो दिखाई दे लेकिन आत्मा एक ही है. श्रीकृष्ण का मन यानि स्वयं श्रीकृष्ण प्रेम रूप से श्रीराधा बनकर वृन्दावन में है. उनके अलावा हमारा है ही कौन, सब जिव माया में फसे है और सोचते है की भगवान को भी हम अपने जैसा बनाये. लेकिन श्रीकृष्ण श्री गीता जी में कहते है की..........( जय श्री राधा endless )
0 टिप्पणियाँ