श्री चंद्रहासजी की अद्भुत कथा | जय श्री राधा | Life Adhyay

by - जून 06, 2025



 केरल देश में मेधावी नामके राजा राज्य करते थे. दुश्मन  राजा ने उनके देश पर आक्रमण कर दिया. युद्ध में मेधावी राजा मारे गए. उनका एक छोटा पुत्र था जिसका नाम चंद्रहास था. राजाके मारे जाने पर चंद्रहास की धाय माँ उन्हें चुपके से दुसरे देश कुंतलपुर ले गयी. वहा पर धाय माँ उस राजकुमार का पालन पोषण करने लगी. एक दिन देवर्षि नारद जी उसी नगर से निकल रहे थे. उन्हें चन्द्रहासजी पर कृपा करनी थी तो देवर्षि नारदजी ने उन्हें भगवान् का नाम, मंत्र बताया. देवर्षि नारद से मिलने के बाद वे भगवान् में मन लगाकर उनकी पूजा सेवा करने लगे. कुंतलपुर देश के राजा भी भगवान् में मन लगाकर उनकी सेवा करते थे. उन राजा के एक लालची मंत्री था उसीके हाथ में राज्य की देखरेक की जिम्मेदारी थी. वो हमेशा धन जुटाने में लगा रहता था. एक दिन चन्द्रहासजी भगवान् का कीर्तन करते हुए उस मंत्री के महल के सामने से गुजर रहे थे उस समय महल में मंत्री के बेटे जो भगवान् को बहोत् मानते थे वे ब्राह्मणों के साथ भगवानकी चर्चा कर रहे थे जब उन्होंने चंद्रहासजी का भजन सुना तो उन्होंने उसे महल में बुलवाया. ब्राम्हनोने मंत्री से कहा की तुम इस बच्चे की देखभाल करो, यह इस कुंतलपुर देश का राजा बनेगा. मंत्री को ब्राह्मनोकी यह बात अच्छी नहीं लगी वे अपने पुत्र को राजाकी गद्दी पर बिठाना चाहते थे. उसने एक षड़यंत्र किया....मंत्री ने एक खास आदमी को कहा की इस चंद्रहास को जंगल में जाकर मार देना. उस बच्चे को बहलाकर वह कसाई जंगल में ले गया. भगवान् पर चंद्रहासका बहोत प्रेम होने से वह बात को समझ गया की उसे मरने के लिए जंगल में लाया गया है. वह उस कसाई से कहता है मुझे मारने के पहले मुझे एक बार भगवान् का भजन करने दो. ऐसाही होता है वह बालक भजन करता है....भजन सुनते ही उस कसाई को उस बालक पर दया आती है. लेकिन डर भी लगता है की अगर मैंने इसे नहीं मारा तो मंत्री मुझे मार डालेगा. चंद्रहासके एक पैर में ६ उँगलियाँ होती है.....वह कसाई एक ऊँगली को काट लेता है और उस बालक यानि चन्द्रहासको जीवित छोड़ देता है. वह कसाई उस ऊँगली को मंत्री के पास दिखाता है.....मंत्री खुश हो जाता है की मैंने ब्रम्हानोकी भविष्यवाणी को विफल कर दिया. वह चंद्रहास दुःख के मारे करुण स्वर से भगवान् को याद कर रहा होता है उसी समय कुंतलपुर देश से सटे हुए एक राज्य के राजा वहासे गुजर रहे होते है. उनके कोई पुत्र नहीं होता है. वे उस बालक को गोद ले लेते है. चंद्रहास को राजा और प्रजा बड़ा प्रेम करने लगती है.....धीरे धीरे चंद्रहास बड़े हो जाते है और उन्हें उस देश का राजा बना दिया जाता है. हर साल की तरह उस राज्य से १०,००० स्वर्ण मुद्राए कर के रूप में कुंतलपुर भेजी जाती है और कुछ खास उपहार भी भेजे जाते है. उस राज्यकी व्यवस्था देखने के लिए कुंतलपुर देश से वह लालची मंत्री उस राज्यमे आता है .....आतेही वह क्या देखता है की जिसको उसने बरसो पहले मारने का षड़यंत्र किया था वह आज भी जिन्दा है. इसका जिन्दा रहना ठीक नहीं वह दुबारा उसे मारने की लिए उसके हाथ में एक चिट्ठी देता है और कहता है.....बेटा इसे मेरे पुत्र के पास दे देना, मुझे किसी और पर भरोसा नहीं है इसलिए में तुम्हे भेज रहा हु. चंद्रहास उस चिट्ठी को लेकर कुंतलपुर के लिए रवाना हो जाता है. जब वह कुंतलपुर पहोंचता है तब उसे बड़ी थकान महसूस होती है वह पासके ही बगीचे में कुछ देर के लिए लेट जाता है. उसी समय उस देश के राजा की राजकुमारी और मंत्री की बेटी विषया उस बगीचे में घूम रही होती है. विषया को वह राजकुमार दिख जाता है... वह उसके पास जाती है और उसके  हाथ की चिट्ठी खोलती है. उस चिट्ठी में लिखा होता है ..... "बेटा इस राजकुमार को आते ही विष दे देना"   उस मंत्री की बेटी को लगता है की पिताजी ने इस चिठ्ठी में कुछ लिखने में भूल कर दी है उसे लगता है की पिता ने मुझे इस राजकुमार को देने के लिए कहा होगा. तो वह क्या करती है की पत्र में विष की जगह वह विषया कर देती है. उस पत्र को बंद करके वह उस राजकुमार के हाथ में दे देती है और वह वहासे निकल जाती है. कुछ देर बाद जब उस राजकुमार की आँख खुलती है तो वह उस मंत्री के बेटे के पास जाकर वह पत्र उसे देता है. पत्र के मुताबिक मंत्री का बेटा अपनी बहन विषया का विवाह चंद्रहास जी के साथ कर देते है. मंत्री वापस आता है कुंतलपुर देश में और देखता है की वह राजकुमार अभी जिन्दा है और सोचता है ....भले मेरी बेटी विधवा हो जाये में इसे मरकर ही रहूँगा. तो वह अपने आदमी को बुलाता है और कहता है की तुम सवेरे माँ भवानी के मंदिर में चले जाना वहा जैसे ही कोई पूजा करने आये उसे मार डालना. वह उस राजकुमार से भी कहता है की बेटा तुम सवेरे माता के मंदिर में पूजा करने चले जाना. जब उस मंत्री के बेटी की शादी हो रही थी तब उस देश के राजा भी उस शादी में आये हुए थे.उन्हें चंद्रहासजी पसंद आ गए और उन्होंने सोचा की मेरी बेटी के लिए भी यह राजकुमार योग्य होगा. तो वे उस मंत्री के बेटे को उस राजकुमार के पास भेजते है की तुम उसे बुला लाओ. मंत्री का बेटा उस राजकुमार को बुलाने के लिए जाता है. मंत्री का बेटा कहता है .... चंद्रहासजी आपको राजाने बुलाया है.....चंद्रहास कहता है लेकिन मंत्री जी ने मुझे मंदिर जाने को कहा है......मंत्री का बेटा कहता है .....आपकी जगह में मंदिर चला जाता हु और आप राजा  के पास चले जाइये. वैसे ही होता है राजकुमार का राजा की बेटी के साथ विवाह हो जाता है और वहा मंदिर पर मंत्री का बेटा मारा जाता है. जब मंत्री को यह बात पता चलती है की उसका बेटा ही मंदिर पर गया है तो वह भी मदिर पर भागते भागते जाता है और देखता है की मेरा बेटा मर चूका है. पच्छाताप में वह भी अपना गला काट देता है. कुछ समय बाद चंद्रहासजी मंदिर पर आते है और देखते है की मंत्री और उनका बेटा मरा पड़ा है,उनकी यह दशा देख कर उसे लगता है की यह सब मेरे कारन ही हुआ है इसलिए वह भी अपने आप को मारने जाता है तो स्वयं माँ भगवती वहा प्रगट हो जाती है और कहती है ... बेटा रुको तुम्हे मरने की जरुरत नहीं है. सबको अपने कर्मो का ही फल मिलता है. तुम वरदान मांगो .... चंद्रहासजी कहते है माँ मेरी भक्ति और बढे और यह मंत्री और मंत्रीं का बेटा पुनः जीवित हो जाये और इस मंत्री में सद्बुद्धि आ जाये यही मेरी कामना है. माँ तथास्तु कहकर अंतर्धान हो जाती है. फिर सब राज्य में लौट आते है और अपना जीवन भगवान् की भक्ति में लगाकर पूर्ण करते है.

जय श्री राधा 

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