मेरे प्यारे गुरूजी | जय श्री राधा

by - अप्रैल 17, 2025


|| जय श्री राधा ||

दोस्तों जीवन में गुरुका होना उतना ही जरुरी है जितना इन्सान के लिए साँस लेना. बिना ओक्सिजन के जैसे हमारा शरीर नहीं रह सकता वैसे ही हमारे मन में भगवान् बसे होते है उन्हें जानने के लिए गुरु का होना जरुरी है. मैंने तो मेरे गुरु को पहचान लिया वो है शिव पार्वती जो हमारे माता पिता के दिल में बसे होते है. शरीर को छोड़ा जा सकता है लेकिन परमात्मा को नहीं। गुरु की कृपा से जब कुछ दिनों का वृन्दावन वास मिला तब पता चला की गुरु बिना भगवान् के नहीं रहते, हर जगह बस राधा राधा राधा राधा .....सिर्फ राधा का नाम सुनने को मिलता है क्योकि राधा प्रेम का स्वरुप है जो कृष्ण से प्रेम करे वही श्री राधा है बाकि सब माया है. इस माया मोह से निकालने वाली सिर्फ श्री राधा है. भगवान का जब मन किया की में अपने आप से प्रेम करू तो उनका मन ही श्रीराधा के रूप में प्रकट हो गया. में कोई ज्ञानी नहीं हु मेरे गुरु मेरे मन में बसे है वही सब कुछ करने वाले है हम तो बस उनके गोद में बैठे है. वे जैसा चाहे वैसा कराये. गुरु की कृपा से पता चला की कृष्ण भगवान् के एक एक रोम में अनंत ब्रम्हांड बसते है, तो उनमें ही हम है. हमारे ह्रदय में भी भगवान् बसे है क्योकि जब यह दिल धड़कना बंद करता है तब इस शरीर की कोई अहमियत नहीं रहती इसे जला दिया जाता है या दफना दिया जाता है. इसलिए अपने गुरु से प्रेम करे वे हमें सबके गुरु श्रीराधाकृष्ण के पास पहुंचा देते है. इस बात की सच्चाई श्रीमद भागवत महापुराण में लिखी है उसमे भगवान् श्री कृष्ण कहते है की सच्चा गुरु मेरा ही स्वरुप है इसलिए गुरु ही  श्रीराधाकृष्ण है.

जीवन में गुरु क्यों बनाये ?

  भगवान् ने भी जब अवतार लिया तब भगवान् को भी उपदेश देने के लिए गुरुको आना पड़ता है. क्योकि बिना गुरु के भगवान् भी भगवान् नहीं बन सकते. श्रीराम हो चाहे श्रीकृष्ण दोंनो ही गुरु के पास गए उनसे सीखे वैसे तो भगवान् होने पर उन्हें सब ज्ञान है परन्तु हम जैसे सामान्य जनों को शिक्षा देने हेतु वे भी गुरु के पास जाते है उनकी सेवा करके वे भगवान् बनते है. हमें भगवान् से यह शिक्षा मिलती है की जो गुरु की मन से तन से या धन से सेवा करता है वह भगवान् का ही स्वरुप है.भगवान् और गुरु में कोई अंतर हो ही नहीं सकता. गुरुसे एक कथा सुनने को मिली की महाराष्ट्र के एक संत जिन्हें भगवान ने कई बार दर्शन दिए फिर भी वे अपूर्ण थे क्योकि उन्होंने गुरु नहीं बनाया था, जिसने गुरु नहीं बनाया उसे भगवान् मिलने पर भी उसके मन में आनंद का उद्गम नहीं हो सकता, जब विट्ठल (श्रीकृष्ण) भगवान ने उन्हें गुरु बनाने को बोला तब वे पूर्ण परमेश्वर को प्राप्त हो गए उन भक्त संत का नाम था श्री नामदेवजी. जब उनके गुरूजी से उन्हें भगवान् का स्वरुप का पता चला तब उन्हें ज्ञान हुआ की सिर्फ भगवान् की मूर्ति में ही भगवान् नहीं होते हर जगह हर किसीमें सिर्फ भगवान् ही बसे है. इस तरह के अनंत ब्रम्हांड को चलाने वाले सिर्फ भगवान् ही है.

में गुरुकी महिमा का वर्णन करने में असमर्थ हु इसलिए अपने गुरु की आग्या का पालन करे. उनकी आग्या बस इतनी है की भगवान् को हम हमेशा याद रखे, उन्हें प्यार करे, उनके नाम का गान करे, भगवान् श्रीकृष्ण भी गीता में यह कहते है " हे अर्जुन मैंने तुम्हे जो ज्ञान दिया है उसे तुम भूल जाओ और सिर्फ मेरा ध्यान करो, मुझे प्रेम करो, मुझे अर्पित किया प्रसाद पाओ, अपने आप को मुझे समर्पित कर दो. यही सबसे बड़ा, गहरा और जानने योग्य है, भगवान् गुरु ही प्रेमानंद है जो हमें प्रेम में डुबाकर भगवान् के पास पहोंचाने वाले है.

इसलिए बस श्रीराधा श्रीराधा श्रीराधा श्रीराधा कहते चलो..., भगवान् कही दूर नहीं तुम्हारे अन्दर ही बसे है.

|| जय श्री राधा || 

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