भगवान् गणेश की सर्व प्रथम पूजा क्यों की जाती है ? जय श्री राधा
|| जय श्री राधा ||
भगवान् गणेश शिव शक्ति के पुत्र है. जो संतान अपने माता पिता को ही परमेश्वर माने वही सर्वप्रथम पूजनीय देवता है. हमने बाल गणेश के बारे में एक कहानी जरुर सुनी होगी जिसमे सम्पूर्ण ब्रम्हांड के चक्कर लगाने होते है. जिसमे बाकि सब देवता तो तुरंत अपने वाहनों पर बैठ कर इस दुनिया के चक्कर काटते है लेकिन श्रीगणेश जी अपने मातापिता में ही पूर्ण ब्रम्हांड को देखते है जो सच भी है जिसने हमें इस दुनिया में लाया उस जिव के लिए तो उसके माता पिता ही सर्वस्व है. हम बच्चे अनेकों गलतिया करते है लेकिन वे हमें माफ़ कर देते है. हमें भी चाहिए की जब बुढापे में, हमारे माता पिता, बच्चे जैसा बर्ताव करे तब हमें उनका माता पिता बनकर उनका ध्यान रखना चाहिए. जब हम बच्चे होते है, तब वे हमारी गलतियो पर ध्यान न देकर, हमें सही शिक्षा प्रदान करते है तब हमें भी अपने माता पिता को किसी भी कार्य के लिए गलत न समझकर उन्हें अपने साथ रखना चाहिए बल्कि उन्हें जिस तरह हो उस तरह उन्हें सुख पहोंचना चाहिए. भले ही उनके अन्दर सद्गुण हो या न हो, या दुर्गुणों का भंडार हो उन्हें हमें जब वे गलत हो तब उन्हें डांटना भी चाहिए और उन्हीको प्यार भी करना चाहिए. वे ही पूजनीय है इसलिए श्री गणेश जी ने भी उन्हें अपना सर्वस्व मानकर उन्हिकी परिक्रमा की और वे ही विजयी भी हुए. जो अपने माता पिता को ही भगवान् मानता है उसे भगवान् भी भगवान् मानते है, इसलिए तो श्रीनारायण भगवान् ने अपनेसे पहले श्री गणेशजीको सर्वप्रथम पूजनीय का स्थान दिया. क्योकि मातापिता ही लक्ष्मी नारायण का स्वरुप है वे ही शिव है और स्वयं शक्ति भी. आज कल जिन बच्चों ने अपने माता पिता को साथ रखा है जो अपने माता पिता को ही भगवान् मानता है उसकी सेवा में स्वयं लक्ष्मी जी रहती है, जो धन प्रदान करने वाली देवी है. जो जिव सिर्फ पैसो को ही अपना मानता है उसके मन में शांति नहीं है और शांति से बड़ा धन कोई नहीं. जो शिवशक्ति को ही अपने माता पिता में देखता है उसके जीवन में धन तो रहता ही है लेकिन शांति के साथ. जिन के पास धन नहीं है और वे अपने माता पिता की सेवा करना चाहते है उनके लिए सिर्फ इतना कहना चाहता हु की जब हम छोटे थे तब उन्होंने अपने आप को भूल कर सिर्फ हमें प्रधानता समझकर हमें वह सब दिया जिसकी हमें जरुरत है. तो क्या हम उन्हें दो समयकी रोटी, और प्यार नहीं दे सकते.
शादी होने के बाद एक पति पत्नी को एकांत (एक दुसरे से प्यार ) की जरुरत होती है. यह सब होने के पहले मातापिता का भी कर्त्तव्य बनता है की वे अपने पुत्री या पुत्र को इस काबिल बनाये की वे स्वयं सारी जिम्मेदारिया खुद उठा सके उन्हें अपने मातापिता पर निर्भर न होना पड़े. जो अपने बच्चो को इस तरह शिक्षा देते है उनके बच्चे उनके साथ हमेशा रहते है. बच्चे को सिर्फ पैसा कमाना सिखा दे इसको सही शिक्षा नहीं कहते. पैसा जो कमाया है, उस धन को परमार्थ यानि दुसरों की मदत करने में भी लगाये. जब हम अपने बच्चों को दूसरों के सेवा करना सिखाते है तब बच्चे भी अपने माता पिता का अच्छेसे ध्यान रख पाए इस काबिल हो जाते है. उन्हें भी ज्ञान हो जाता है की सच्चे भगवान् तो हमारे माता पिता ही है. उन्हिकी सेवा करने से प्रभु प्रसन्न होते है. प्रभु प्रसन्न होने पर हमें कुछ पाना बाकि नहीं रहता, सबकुछ भगवान् ही बने है, वे ही हमें अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष सबकुछ जो हमारे लिए सही है वे प्रदान करते है.
दोस्तों में कोई ज्ञानी नहीं हु मेरे मन में जो कुछ आ रहा है वही में लिख रहा हु. में भी अपने आप से सीखता हु की जो में लिख रहा हु उसे में भी अपने जीवन में एक सौ आठ प्रतिशत उतार सकू.
"त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव, त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देव देव"
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