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जय श्री राम

रा = राधा + माँ = माधव

दोस्तो जीवन में कई पडाव आते है, कभी दुख आता है तो कभी सुख मिलता है, यह सब क्यों होता है, इस तरह के अनेक सवाल मन में आते ही है। 

इन सब सवालों के जवाब आज सुलझाने वाले है, 
इस दुनिया में जो कुछ भी हो रहा है, इसमे भगवान ही सब कुछ बने हुए है, वही इंसान है और वे ही ईश्वर है, फर्क बस इतना है की इंसान लेना जानते है, और भगवान देते है। भगवान सिर्फ मूर्ति में ही नही हर इंसान के दिल में भी बसते है, जिसने भगवान को जान लिया उसने सब कुछ जान लिया ऐसा समझना चाहिए, इसलिए हमे कोशिश करनी है की हमसे गलतीसे भी किसका दिल न दुखे, सबको हम खुश नही रख सकते, हमे बस भगवान को खुश करना है, उनके खुश होने के बाद हमारे जीवन में भी खुशियां आ जाती है।
भगवान को खुश करने का बस एक ही रास्ता है और वह है उनके बच्चो का ध्यान रखना, जो राह में भटके है उन्हें राह दिखाना, जिसे भूख लगी है उसे खाना खिलाना, जिसे चोट लगी है उसे दवाई लगाना, जो यह सब ना कर पाए उसके लिए बस एक ही काम है और वह है श्रीराधा का नाम गाना, बस श्रीराधा ही जो हमे कन्हैया से मिलाएगी। इसलिए श्रीराधा श्रीराधा गाते रहो, अपने जीवन में खुशियां लाते रहो।

Jai Sree Radha.......
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श्री गणेशाय नमः


दोस्तो जैसा कि हमे पता है, गंगा जी, जो की श्री नारायण भगवान के चरण कमलों से प्रकट हुई है, यानी नारायण भगवान ही गंगाजी बनकर बह रहे है, उन्हें संभालने की ताकत सिर्फ श्री शिवजी के पास है, इसलिए उन्होंने श्री गंगा जी को अपने सिर पर धारण किया, इसी लिए वह हिमालय से यानी श्री शिवजी के ससुराल से निकलती है, शिवजी को अपनी प्रिया पार्वती से बहोत प्रेम है इसलिए गंगाजी हिमालय से निकलती है शिव बनकर, जब यह नदी बहते बहते समुंदर (बंगाल की खाड़ी) में मिल जाती है, समुंदर में जाते ही सूर्यनारायण भगवान उसे तपाते है और वह बाफ (ब्रम्हा) बनकर आसमान में चली जाती है, पानी में H20 यानी हाइड्रोजन और ऑक्सीजन होता है, जो को हम सांस में लेते है, सांस कोई और नही स्वयं ब्रम्हा बनते है, इसलिए ब्रम्हा की पूजा नही की जाती, क्योंकि उन्हें तो हम सांस के जरिए हर वक्त ले ही रहे है, बर्फ ( शिवजी ), पानी (विष्णुजी) जिन्हे हम देख सकते है उन्ही की ही तो पूजा होगी ना, जय श्री राधे 

इस पूरी थियरी का मतलब साफ है, ये तीनो देवता कोई अलग नहीं है, तीनो एक ही भगवान के प्रकट किए हुए है, और वह है प्रेम के प्यारे श्री राधाकृष्ण, प्रेम के बैगैर ना तो जन्म हो सकता है, न ही कुछ और.........
जय श्री राम 
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|| जय श्री राधा ||

दोस्तों जीवन में गुरुका होना उतना ही जरुरी है जितना इन्सान के लिए साँस लेना. बिना ओक्सिजन के जैसे हमारा शरीर नहीं रह सकता वैसे ही हमारे मन में भगवान् बसे होते है उन्हें जानने के लिए गुरु का होना जरुरी है. मैंने तो मेरे गुरु को पहचान लिया वो है शिव पार्वती जो हमारे माता पिता के दिल में बसे होते है. शरीर को छोड़ा जा सकता है लेकिन परमात्मा को नहीं। गुरु की कृपा से जब कुछ दिनों का वृन्दावन वास मिला तब पता चला की गुरु बिना भगवान् के नहीं रहते, हर जगह बस राधा राधा राधा राधा .....सिर्फ राधा का नाम सुनने को मिलता है क्योकि राधा प्रेम का स्वरुप है जो कृष्ण से प्रेम करे वही श्री राधा है बाकि सब माया है. इस माया मोह से निकालने वाली सिर्फ श्री राधा है. भगवान का जब मन किया की में अपने आप से प्रेम करू तो उनका मन ही श्रीराधा के रूप में प्रकट हो गया. में कोई ज्ञानी नहीं हु मेरे गुरु मेरे मन में बसे है वही सब कुछ करने वाले है हम तो बस उनके गोद में बैठे है. वे जैसा चाहे वैसा कराये. गुरु की कृपा से पता चला की कृष्ण भगवान् के एक एक रोम में अनंत ब्रम्हांड बसते है, तो उनमें ही हम है. हमारे ह्रदय में भी भगवान् बसे है क्योकि जब यह दिल धड़कना बंद करता है तब इस शरीर की कोई अहमियत नहीं रहती इसे जला दिया जाता है या दफना दिया जाता है. इसलिए अपने गुरु से प्रेम करे वे हमें सबके गुरु श्रीराधाकृष्ण के पास पहुंचा देते है. इस बात की सच्चाई श्रीमद भागवत महापुराण में लिखी है उसमे भगवान् श्री कृष्ण कहते है की सच्चा गुरु मेरा ही स्वरुप है इसलिए गुरु ही  श्रीराधाकृष्ण है.

जीवन में गुरु क्यों बनाये ?

  भगवान् ने भी जब अवतार लिया तब भगवान् को भी उपदेश देने के लिए गुरुको आना पड़ता है. क्योकि बिना गुरु के भगवान् भी भगवान् नहीं बन सकते. श्रीराम हो चाहे श्रीकृष्ण दोंनो ही गुरु के पास गए उनसे सीखे वैसे तो भगवान् होने पर उन्हें सब ज्ञान है परन्तु हम जैसे सामान्य जनों को शिक्षा देने हेतु वे भी गुरु के पास जाते है उनकी सेवा करके वे भगवान् बनते है. हमें भगवान् से यह शिक्षा मिलती है की जो गुरु की मन से तन से या धन से सेवा करता है वह भगवान् का ही स्वरुप है.भगवान् और गुरु में कोई अंतर हो ही नहीं सकता. गुरुसे एक कथा सुनने को मिली की महाराष्ट्र के एक संत जिन्हें भगवान ने कई बार दर्शन दिए फिर भी वे अपूर्ण थे क्योकि उन्होंने गुरु नहीं बनाया था, जिसने गुरु नहीं बनाया उसे भगवान् मिलने पर भी उसके मन में आनंद का उद्गम नहीं हो सकता, जब विट्ठल (श्रीकृष्ण) भगवान ने उन्हें गुरु बनाने को बोला तब वे पूर्ण परमेश्वर को प्राप्त हो गए उन भक्त संत का नाम था श्री नामदेवजी. जब उनके गुरूजी से उन्हें भगवान् का स्वरुप का पता चला तब उन्हें ज्ञान हुआ की सिर्फ भगवान् की मूर्ति में ही भगवान् नहीं होते हर जगह हर किसीमें सिर्फ भगवान् ही बसे है. इस तरह के अनंत ब्रम्हांड को चलाने वाले सिर्फ भगवान् ही है.

में गुरुकी महिमा का वर्णन करने में असमर्थ हु इसलिए अपने गुरु की आग्या का पालन करे. उनकी आग्या बस इतनी है की भगवान् को हम हमेशा याद रखे, उन्हें प्यार करे, उनके नाम का गान करे, भगवान् श्रीकृष्ण भी गीता में यह कहते है " हे अर्जुन मैंने तुम्हे जो ज्ञान दिया है उसे तुम भूल जाओ और सिर्फ मेरा ध्यान करो, मुझे प्रेम करो, मुझे अर्पित किया प्रसाद पाओ, अपने आप को मुझे समर्पित कर दो. यही सबसे बड़ा, गहरा और जानने योग्य है, भगवान् गुरु ही प्रेमानंद है जो हमें प्रेम में डुबाकर भगवान् के पास पहोंचाने वाले है.

इसलिए बस श्रीराधा श्रीराधा श्रीराधा श्रीराधा कहते चलो..., भगवान् कही दूर नहीं तुम्हारे अन्दर ही बसे है.

|| जय श्री राधा || 
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 || जय श्री राधा ||


|| Sree Ganeshay Namah ||


भगवान् गणेश शिव शक्ति के पुत्र है. जो संतान अपने माता पिता को ही परमेश्वर माने वही सर्वप्रथम पूजनीय देवता है. हमने बाल गणेश के बारे में एक कहानी जरुर सुनी होगी जिसमे सम्पूर्ण ब्रम्हांड के चक्कर लगाने होते है. जिसमे बाकि सब देवता तो तुरंत अपने वाहनों पर बैठ कर इस दुनिया के चक्कर काटते है लेकिन श्रीगणेश जी अपने मातापिता में ही पूर्ण ब्रम्हांड को देखते है जो सच भी है जिसने हमें इस दुनिया में लाया उस जिव के लिए तो उसके माता पिता ही सर्वस्व है. हम बच्चे अनेकों गलतिया करते है लेकिन वे हमें माफ़ कर देते है. हमें भी चाहिए की जब बुढापे में, हमारे माता पिता, बच्चे जैसा बर्ताव करे तब हमें उनका माता पिता बनकर उनका ध्यान रखना चाहिए. जब हम बच्चे होते है, तब वे हमारी गलतियो पर ध्यान न देकर, हमें सही शिक्षा प्रदान करते है तब हमें भी अपने माता पिता को किसी भी कार्य के लिए गलत न समझकर उन्हें अपने साथ रखना चाहिए बल्कि उन्हें जिस तरह हो उस तरह उन्हें सुख पहोंचना चाहिए. भले ही उनके अन्दर सद्गुण हो या न हो, या दुर्गुणों का भंडार हो उन्हें हमें जब वे गलत हो तब उन्हें डांटना भी चाहिए और उन्हीको प्यार भी करना चाहिए. वे ही पूजनीय है इसलिए श्री गणेश जी ने भी उन्हें अपना सर्वस्व मानकर उन्हिकी परिक्रमा की और वे ही विजयी भी हुए. जो अपने माता पिता को ही भगवान् मानता है उसे भगवान् भी भगवान् मानते है, इसलिए तो श्रीनारायण भगवान् ने अपनेसे पहले श्री गणेशजीको सर्वप्रथम पूजनीय का स्थान दिया. क्योकि मातापिता ही लक्ष्मी नारायण का स्वरुप है वे ही शिव है और स्वयं शक्ति भी. आज कल जिन बच्चों ने अपने माता पिता को साथ रखा है जो अपने माता पिता को ही भगवान् मानता है उसकी सेवा में स्वयं लक्ष्मी जी रहती है, जो धन प्रदान करने वाली देवी है. जो जिव सिर्फ पैसो को ही अपना मानता है उसके मन में शांति नहीं है और शांति से बड़ा धन कोई नहीं. जो शिवशक्ति को ही अपने माता पिता में देखता है उसके जीवन में धन तो रहता ही है लेकिन शांति के साथ. जिन के पास धन नहीं है और वे अपने माता पिता की सेवा करना चाहते है उनके लिए सिर्फ इतना कहना चाहता हु की जब हम छोटे थे तब उन्होंने अपने आप को भूल कर सिर्फ हमें प्रधानता समझकर हमें वह सब दिया जिसकी हमें जरुरत है. तो क्या हम उन्हें दो समयकी रोटी, और प्यार नहीं दे सकते. 
शादी होने के बाद एक पति पत्नी को एकांत (एक दुसरे से प्यार ) की जरुरत होती है. यह सब होने के पहले मातापिता का भी कर्त्तव्य बनता है की वे अपने पुत्री या पुत्र को इस काबिल बनाये की वे स्वयं सारी जिम्मेदारिया खुद उठा सके उन्हें अपने मातापिता पर निर्भर न होना पड़े. जो अपने बच्चो को इस तरह शिक्षा देते है उनके बच्चे उनके साथ हमेशा रहते है. बच्चे को सिर्फ पैसा कमाना सिखा दे इसको सही शिक्षा नहीं कहते. पैसा जो कमाया है, उस धन को परमार्थ यानि दुसरों की मदत करने में भी लगाये. जब हम अपने बच्चों को दूसरों के सेवा करना सिखाते है तब बच्चे भी अपने माता पिता का अच्छेसे ध्यान रख पाए इस काबिल हो जाते है. उन्हें भी ज्ञान हो जाता है की सच्चे भगवान् तो हमारे माता पिता ही है. उन्हिकी सेवा करने से प्रभु प्रसन्न होते है. प्रभु प्रसन्न होने पर हमें कुछ पाना बाकि नहीं रहता, सबकुछ भगवान् ही बने है, वे ही हमें अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष सबकुछ जो हमारे लिए सही है वे प्रदान करते है.
दोस्तों में कोई ज्ञानी नहीं हु मेरे मन में जो कुछ आ रहा है वही में लिख रहा हु. में भी अपने आप से सीखता हु की जो में लिख रहा हु उसे में भी अपने जीवन में एक सौ आठ प्रतिशत उतार सकू.

"त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव, त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देव देव"

|| जय श्री राधा ||

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 हम सब से पहले रामायण के बारे में समझते है.

रा = राम 

माँ = माँ सीता 

य  = जय + विजय   

न = नारायण 

नारायण यानि विष्णु भगवान् के जो पार्षद थे जय विजय, उन्हें भगवान् की कृपा से भेजा गया था, क्योकि रामजी ही  नारायण है. दुनिया जो नारायण चला रहे है उन्हें अपने बच्चो यानि हमें ही शिक्षा देने हेतु इस धरा पर अवतार लेना था. इसलिए भगवान् के पार्षद को ही विल्लेन का रोल मिला और नारायण ने राम का रोल निभाया और जो सीता जी है, सबसे बड़ा किरदार इन्हिका है क्योकि वे स्वयं शिवजी है जानते है किस तरह....

S - शिव 

I - इश्वर 

T - त्रिनेत्रधारी  

A - अम्बा के पति  ( अम्बा ही कृष्ण है - जल्द ही जानेंगे )

राम और रावण दोंनो ही श्री शिवजी के भक्त थे लेकिन श्रीराम जी को मर्यादापुरुषोत्तम कहा गया है, श्री सीताजी जो श्रीराम की अर्धांगिनी है उन्हें किडनेप करने का जो प्लान है वह रावण का नहीं नारायण का ही है, क्योकि अपनी माँ को भी कोई किडनेप करता है भला, उन्हें तो बस एक रोल मिला है जिसको रावन ने बड़े अच्छी तरह निभाया. इस रामायण के डायरेक्टर, प्रोडूसर, एक्टर स्वयं नारायण ही है क्योकि नारायण के अलावा कुछ है ही नहीं. वही इस सृष्टि का ब्रम्हा रूप से निर्माण करते है, नारायण रूप से पालन करते है और शिव रूप से अंत करते है. 

हम आम इन्सान जिस तरह नारीशक्ति को गलत नजरिये से देखते है तब राम को तो आना ही पड़ेगा अपनी शक्ति को बचाने के लिए. सबसे सिंपल एक बात कहना चाहता हु की भगवान् न ही पुरुष होते है न ही श्री वह प्रेम रूप से हर जिव के ह्रदय में वास करते है. सीताराम,राधेश्याम,शिवशक्ति,लक्ष्मीनारायण  कोई अलग भगवान् नहीं है. वे सब एक परम आत्मा है जो सबके दिल में परमात्मा के रूप में बसते है. सीता,राधा,शिव,लक्ष्मी एक ही है और राम,श्याम,शक्ति,नारायण एक ही है, यह सब ज्ञान की बाते मुझे अपने गुरु से ही प्राप्त हुई है बाकि में कुछ नहीं हु सब गुरुदेव का है. गुरुदेव ही श्री राधारानी है.  

शिव ही राधा है क्योकि दोंनो ही एक है जो परम कृपालु है. जो इनका हो जाता है उसे भगवान् अपने आप को सौप देते है. भगवान् ही राम है इसलिए सीता बनकर शिवजी की सेवा करते है, शिव ही राधा है जिनकी सेवा में स्वयं कन्हैया तत्पर रहते है. यानि यह अपने आपको कभी बड़ा नहीं मानते, हमेशा एक दुसरे की सेवा करते है. हमेशा पति पत्नी बनकर एक दुसरे का साथ निभाते है. दोस्त बनकर दोस्ती निभाते है, पिता बनकर बेटे का ध्यान रखते है. गुरु बनकर अपने शिष्य को ज्ञान देते है. माँ बनकर दुलार करते है.

इस दुनिया में भगवान् के अलावा कोई है ही नहीं जो भगवान् को भूल जाये उसे माया नचाती है. जिसे भगवान् ने स्वीकार कर लिया उसके लिए स्वयं भगवान् नाचते है जिस तरह गोपियो के लिये नाच रहे है. इसके लिए हमें सिर्फ भगवान् को भगवान् न मानकर बस अपना प्रियतम मानना चाहिए. जिस तरह एक श्री अपने पति को अपना सबकुछ सौप देती है उसी तरह अगर यह मनुष्य अपना सबकुछ भगवान् को सौप दे तो भगवान् उसे अपने मन के मंदिर में दीखते ही है. मंदिर ही एक ऐसी जगह है जहा मन में ही भगवान् का दीदार यानि भगवान् दिख सकते है.

|| जय श्री राधा || 


 

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|| श्रीराधा || 


श्री राधा ही है जिन्होंने श्रीकृष्ण को बांसुरी सिखाई, जिस तरह एक सेवक अपने स्वामी से तनख्वा लेता है और बदलेमे स्वामी का काम करता है उसी तरह श्री राधा श्रीकृष्ण की स्वामिनी है, वे उन्हें प्रेम करती है बदलेमे श्रीकृष्ण श्रीराधा श्रीराधा श्रीराधा श्रीराधा सिर्फ श्रीराधा बांसुरी से गाते है. क्योकि श्रीकृष्ण को बांसुरी प्रदान करने वाली श्रीराधा ही तो है, क्योकि जब कोई सेवक स्वामी के पास उनका काम करने जाता है तो स्वामी अपने सेवक को सारी चीजे प्रदान करता सिखाता है जिससे उसका सेवक अच्छेसे काम कर पाए. यह शायद ही किसी ग्रन्थ में लिखा होगा लेकिन मेरे भगवान् श्रीगुरुदेव श्रीराधा रानी की कृपा से आज इस विषय पर लिखने का मन किया. हम मनुष्य अपने आप को माने है तभी हमसे गलतिया होती है लेकिन जब हम अपने जीवन का कण्ट्रोल श्रीराधा के श्री चरणों में अर्पित कर देते है तो सब ज्ञान बिना किसीके सिखाये मन में आ जाता है क्योकि सबको सिखाने वाली श्री राधा मन में ही तो बसी है.

म = महारानी श्रीराधा 

न = नन्द के लाडले को प्यार करने वाली.

म = माधुर्य की चरम सीमा 

न = वृन्दावन की रानी श्री राधा 

कितना भी श्रीराधा की धारा में डूबने की कोशिश की जाय लेकिन श्रीराधा डूबना नहीं तैरना सिखाती है. मारना नहीं अपने प्यारे पर मरना सिखाती है. जो श्रीराधा को जान ले ऐसा मनुष्य हो ही नहीं सकता. हम तो श्रीकृष्ण के सखा है. श्रीकृष्ण ही राधा है, राधा ही मन है, मन श्रीकृष्ण के बिना अधुरा है इसलिए मन से एक बार राधाकृष्ण कहके देखो क्या पता उनका दर्शन मन में ही हो जाये. मंदिर इसलिए मंदिर नहीं होता क्योकि उसमे भगवान् की मूर्ति है,

मन = मन में 

दिर = दीदार हो जाये ( दिख जाये)

सबसे बड़ा मंदिर तो हमारा मन ही है जिसमे भगवान् मूर्ति नहीं स्वयं परमात्मा के रूप में बैठे है. यह सब गुरुदेव श्रीराधा की कृपा से ही आत्मज्ञान मिल सकता है. बाकि कितनी ही किताबे पढलो अपूर्ण ही बने रहोगे. पढना ही है तो अपने मन को पढो वह सिर्फ श्रीराधा श्रीराधा श्रीराधा श्रीराधा गाना ही सिखाएगा, जो श्रीराधा के भरोसे हो जाये वही श्रीकृष्ण है बाकि श्रीकृष्ण भी वृन्दावनेश्वरी से अलग होने पर द्वारकाधिष कहलाये. वैसे तो श्रीराधा ही श्रीकृष्ण है, शरीर भले दो दिखाई दे लेकिन आत्मा एक ही है. श्रीकृष्ण का मन यानि स्वयं श्रीकृष्ण प्रेम रूप से श्रीराधा बनकर वृन्दावन में है. उनके अलावा हमारा है ही कौन, सब जिव माया में फसे है और सोचते है की भगवान को भी हम अपने जैसा बनाये. लेकिन श्रीकृष्ण श्री गीता जी में कहते है की..........( जय श्री राधा endless )

|| जय श्री राधा ||

दोस्तों इस माया से मुक्त सिर्फ श्री राधा कर सकती है 
क्योकि वही मायापति भगवान् का प्रेम है 
जो भगवान् को प्रेम करे वही श्रीराधा श्रीराधा कहे


|| जय श्री राधा ||




  


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|| जय श्री राधा ||

 प्रेम :-



प्रेम में दुसरे का सुख देखा जाता है. में जिसे चाहता हु वह सुखी रहे. प्रेम निस्वार्थ होता है. प्रेम किसीसे भी किया जा सकता है, लेकिन सबसे ज्यादा जरुरी अगर हमारे लिए कोई है तो वे हे हमारे माता पिता, जो अपने माता पिता से प्यार न कर सके वो किसीसे भी प्यार नहीं कर सकता. इसका सबसे अच्छा उदाहरण श्री राम जी का है जिन्होंने अपने पिता की आग्या पर १४ वर्षो का वनवास ख़ुशी ख़ुशी स्वीकार कर लिया. वे चाहे तो राज्य उन्हें मिल सकता था लेकिन वे अपने माता पिता से प्रेम करते थे. प्रभु तो प्रेम के अधीन है, दूसरी बात माता कैकई भी महान है जिसने राम को एक महान कार्य हेतु वनवास प्रदान किया इससे उन्हें काफी भला बुरा सुनने को भी मिला. वैसे भगवान् का जन्म ही दुष्टो का विनाश करने हेतु हुआ था अगर उन्हें सीधे सीधे राज्य मिल जाता तो ... जो भक्त जन है जो भगवान् की पूजा अर्चना करते है उन्हें राक्षसों का भय लगा रहता था राक्षस उन्हें कच्चा खा जाते थे, परीशान करते थे ... गुरु से तो ऐसा भी सुनने को आया है की भक्तजनों की हड्डीयों का ढेर लग गया था इतना राक्षसों का आतंक बढ़ गया था. इन राक्षसों का विनाश और भक्तों पर कृपा करने हेतु भगवान् श्री राम का जन्म हुआ था. कैकई माता ( को यह आदेश की राम को वनवास दिया जाय ) को इसलिए चुना गया की वे बढ़ी साहसी नारीशक्ति थी इकबार जब देवता राक्षसों से बड़े परेशान थे तब राजा दशरथ जो की बड़े शूरवीर योद्धा थे उन्हें देवताओने अपने साथ राक्षसों पर विजय पाने के लिए साथं में बुलाया था .... जब दोनों पक्षों का युद्ध हुआ तब राजा दशरथ का रथ का पहिया रथ से अलग होने वाला था तब माता कैकई जो उनके साथ गयी थी उन्होंने अपनी ऊँगली को पहिये से रथ को जोड़े रखा ताकि राजा दशरथ युद्ध करते रहे उन्हें कोई परिशानी न हो. वे युद्ध पर विजय पाए और उन्हें विजय यानि जित मिली भी. और सच्चा प्रेम का स्वरुप भी यही है की खुदकी परवा न करके अपने पति के लिये दुःख को भी ख़ुशी के साथ सह ले. हमें यह विचार आ सकता है की यह प्रेम कहा गया था जब श्रीराम को उन्होंने वनवास भेजके अपने पति को सबसे बड़ा दुःख दिया. इसमें देश का प्रेम पति के प्रेम से बड़ा होता है जैसे की एक सैनिक भी जब बॉर्डर पर जाता है तो उसके लिए अपने परिवार से ज्यादा देश की महत्वता रहती है. देश यानि अपनी मातृभूमि जिसने हमें जन्म दिया इस मातृभूमि के लिए हर एक कैकई माता अपने बेटे को देश की रक्षा के लिए बॉर्डर पर भेजती है ऐसी माता और बेटे पर हमें गर्व होना चाहिए. यह लिखते हुए में अपने आंसू नहीं रोक पा रहा हु क्योकि में भी तो इस भारत भूमि का ही पुत्र हु. जय श्री भारत, जय श्री राम, माता के चरणों में कोटि कोटि प्रणाम. सीताराम का प्रेम भी बड़ा अद्भुत है....अपनी पत्नी प्रेयसी के लिए कोई सेना, कोई राज्य शासन न होने पर भी जो है उसे ही अपना साथी (श्री हनुमान जी और उनके साथी मित्रों) बनाकर शिवके बड़े भक्त रावन को परास्त किया. श्रीराम और रावन दोनो ही श्री शिवजी के बड़े भक्त थे, श्रीराम से ज्यादा शक्ति, माया, सम्पति में रावन बड़े थे लेकिन चरित्र श्रीरामजी का बड़ा था जिसका चरित्र साफ सुधरा होता है उसे परास्त करने वाला इस धरा पर पैदा होने से पहले मर जाता है. हमने एक पिक्चर देखि होगी सोल्जर जिसका किरदार अल्लू अर्जुन ने बड़े अच्छेसे निभाया है उसमे भी दिखाया है की करैक्टर से बड़ा कोई नहीं ( झुकेका नही साला). झुकेगा तो सिर्फ अपने भगवान् के लिए जो माता पिता और गुरु बने है. एक प्रेम की कहानी मेरे माता पिता की भी है उनका भी प्रेमविवाह हुआ है. मैंने उनके बिच प्यार,लड़ाई, झगडा देखा है लेकिन उन्होंने एक दुसरे का साथ कभी नहीं छोड़ा इससे बड़ा मेरे घर में प्रेम का उदाहरण नहीं है. इसलिए मैंने भी उनके सुझाये हुए लड़की के साथ विवाह किया क्योकि मुझे पता है अगर वे अपने लिए बेस्ट चुन सकते है तो में भी उन्हीका बच्चा हु तो मेरे लिए भी वो बेस्ट ही चुनेगे और उन्होंने चुना भी जिसके साथ में भी खुश हु. मेरी पत्नी भी मेरा बड़े अच्छेसे से ध्यान रखती है. में भी उसे चाहता हु. जय श्री राधा . प्रेम का सबसे बड़ा और प्यारा जोड़ा तो सिर्फ राधाकृष्ण का ही है. क्योकि वे ही हमारे माता,पिता,गुरु,दोस्त,सबकुछ वही बने है ..........................जय श्री राधा.



सेक्स्

बलं बलवतां चाहं कामरागविवर्जितम् । धर्माविरुद्धो भूतेषु कामोऽस्मि भरतर्षभ ।। ११ ।।
 यह गीता का सातवे अध्याय का ११ व श्लोक है जिसमे भगवान् कृष्ण बताते है की 
"में बलवानों का कामनाओं तथा इच्छा से रहित बल हैं। हे भरतश्रेष्ठ (अर्जुन)! मैं वह काम (सेक्स) हूँ , जो धर्म के विरुद्ध नहीं है।"
तात्पर्य : बलवान पुरुष की शक्ति का उपयोग दुर्बलों की रक्षा के लिए होना चाहिए, व्यक्तिगत आक्रमण के लिए नहीं। इसी प्रकार धर्म-सम्मत ( शादी के बाद दोंनो की इच्छा से ) मैथुन (सेक्स) सन्तानोत्पति के लिए होना चाहिए, अन्य कार्यों के लिए नहीं। अतः माता-पिता का उत्तरदायित्व है कि वे अपनी सन्तान को कृष्णभावनाभावित बनाएँ।
यह तात्पर्य "श्री श्रीमद ए.सी.भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद जी का है"

|| जय श्री राधा || 



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