।। जय श्री कृष्णा ।।
भगवान क्या है ?
भगवान एक ऐसी शक्ति है जो सबको जीवन प्रदान करती है,भूखे का पेट भरती है, भटके हुए को रास्ता दिखाती है, किसी भी समस्या का समाधान करने में मदतरूप होती है। बहोत से लोग सबकुछ जानकर भी अनजान बने रहते है। सबको पता है की भगवान है ,वे हमें हर समस्या से पार ले जा सकते है फिर भी हमारे मुख से भगवान का नाम तक नहीं आता। ऐसा क्यों हो रहा है क्या आप जानते है ? इसका जवाब है की हमने अभीतक भगवान् को जाना नहीं है।
भगवान् कहा रहते है ?
भगवन सबके अंदर वास करते है। इस जगत के हर कण में भगवान विराजमान है। इसे अच्छी तरह से समज़ने के लिए हम एक भक्त की कहानी समज़ते है। नामदेव जी महाराष्ट्र के प्रसिद्ध भक्त है। उनकी भक्ति की वजह उन्हें भगवान् विठ्ठल ने कई बार दर्शन दिए है। लेकिन सिर्फ मंदिर में। संत ग्यानेश्वर और उनकी बहन भगवान के अच्छे भक्त थे,उन्होंने एक बार सभी संतो को बुलाया , वे जानना चाहते थे की कोनसा भक्त कच्चा है और कोनसा भक्त पक्का है। उनमे संत नामदेव जी भी थे। ये जो मुलाकात थी वह गोरा कुम्भार के घर पर हुई थी। गोरा कुम्भार जी भी भगवान के अच्छे भक्त थे। उन्हें भी भगवान ने उनके घर पर आकर कई बार दर्शन दिए थे इस लेवल की उनकी भक्ति थी। तो मीटिंग शुरू होती है। जो घड़ा बनता है उसमे जो थापी इस्तेमाल होती है उसे संत ग्यानेश्वर जी सभी भक्तो की पीठ पर मारना शुरू करते है। सभी भक्त उस मार को सह लेते है लेकिन जब वे संत नामदेव की पीठ पर मारते है तो वे गुस्से में आ जाते है और बोलते है तुम्हे क्या लगता है की में सच्चा भक्त नहीं हु। तो ग्यानेश्वर जी अपनी बहन को पूछते है की बोलो बहना यह नामदेव जी कैसे भक्त है तो उनकी बहन कहती है, बाकि सारे संत तो पक्के भक्त है लेकिन नामदेव जी थोड़े कच्चे है। यह सुनकर संत नामदेव जी रोते रोते सीधे पंढरपुर भगवन को मिलने चले जाते है। हर बार की तरह भगवान् विठ्ठल जी नामदेव जी को दर्शन देते है। तो नामदेव जी भगवान् को पूछते है की क्या मै सच्चा भक्त नहीं हु ? तो भगवान् बोलते है की तुम्हारी भक्ति अभी कच्ची है । तो नामदेव जी भगवान विठ्ठल से कहते है, वो कब पकेगी प्रभु तो भगवान् नामदेवजी से कहते है की जब तुम्हारे जीवन में कोई गुरु मिलेगा। तो तुम सबसे पहले एक गुरु बनाओ। तो संत नामदेव जी भगवान् को पूछते है : आप ही बताओ मेरे लिए अच्छा गुरु कहा मिलेगा ? तो भगवान् कहते है : सामने ही जंगल में एक संत है जिनका नाम खेचरदासजी है उन्हें तुम अपना गुरु बनालो। तो नामदेवजी वहासे विठ्ठल विठ्ठल जपते हुए जंगल में पोहचते है। वहा भगवान् शिवजी का छोटा सा मंदिर होता है।
वह खेचरदास जी महाराज शिवजी की पिंड पर पैर रखकर आराम कर रहे होते है। नामदेव जी उन्हें देखकर सोचते है की ये खेचरदसजी नहीं हो सकते। क्योकि कोई गुरु भगवन पर पैर रखकर तो सोयेगा नहीं। ये सोचकर जैसे ही वे वहां से निकलने लगते है। तभी खेचरदास जी ने आवाज लगाई ... अरे नामदेव यहाँ आओ। अब नामदेव जी सोच में पड़ गए ...की इनको मेरा नाम कैसे पता ? वे खेचरदास जी के पास आये और उनसे पूछने लगे .... आपको मेरा नाम कैसे पता ? तभी खेचरदास जी उनसे कहते है ... अरे बेटा तुम्हे कौन नहीं जानता ? आपको विठ्ठल भगवान् जी ने भेजा है न। यह सुनकर नामदेव जी फिरसे दंग रह गए। उनको लगा की ये कोई सामान्य व्यक्ति हो ही नहीं सकते. फिर उन्होंने हाथ जोड़कर श्री खेचरदास जी से पूछा ... प्रभु आप सब कुछ जानते हो, आप ग्यानी, भक्त है फिर आपने शिवलिंग पर पाव रखकर क्यों सो रहे हो ? भगवान के उपर आपने पाव रखा यह तो अपराध है तब संत खेचरदास जी ने कहा की ठीक है चलो जहा शिवजी नहीं है वहा मेरा पैर उठाकर रख दो , में तो बुढा हो गया हु जरा तू ही मेरी मदत कर दे उठाने में . जैसे ही नामदेव जी ने उनके पैरो को दूसरी जगह उठाकर रखा वहा से शिवजी प्रगट हो गए यानि वहा से दूसरी शिवलिंग निकल आई . उन्होंने फिर से उनका पैर तीसरी जगह रखा वहा से फिर से शिवजी प्रगट हो गए .उन्होंने चारो तरफ घुमाया उन सभी जगहों से शिवजी प्रगट होने लगे तब खेचरदास जी ने कहा बेटा नामदेव तुम्हे यही समजाने के लिए विट्ठल भगवान ने मेरे पास भेजा है ,तुम विट्ठलनाथ जी का दर्शन सिर्फ विट्ठलनाथ जी के मंदिर में करते हो .यही तुम्हारा कच्चापन है.तो पकापन क्या है, हम कैसे पकेंगे नामदेव जी ने कहा .तब श्री खेचरदास जी कहते की तुम विट्ठल भगवान् का दर्शन सब में करना शुरू कर दो ,हर जगह हर कण में इश्वर है यह द्रष्टिकोण बनालो तब तुम पक जाओगे .अबकी बार खेचरदास जी के ग्यान से वे इतने प्रभावित हो गए की उन्होंने उसी जंगल में कुटिया बना ली. और वे वहा रहने लगे .एक दिन क्या हुआ की वे रोटी बना रहे थे तभी एक कुत्ता रोटी लेकर भागा. तो नामदेव जी उस कुत्ते के पीछे घी की कटोरी लेकर भागने लगे और कहते है ...प्रभु रुक जाओ रुक जाओ ....सुखी रोटी मत खाओ यह घी भी ले लीजिये तभी लोग कहते है अरे यह कुत्ता है, क्या कह रहे हो ? तभी नामदेव जी ने कहा तुम इन्हें कुत्ता समझ रहे हो ये कुत्ता नहीं इस जिव में मेरे विट्ठलनाथ जी है, हर जगह विट्ठलनाथ जी है ,ये मेरे विट्ठलनाथ है. और जब इस भाव से विट्ठलनाथ पुकारा तब उस कुत्ते से
विट्ठलनाथ जी प्रगट हो गए और उनसे गले लग कर कहने लगे अभी तुम पूरी तरह से पक गए हो. कच्चा भक्त वही जो सिर्फ मंदिर में भगवान का दर्शन करता हो, लेकिन पक्का भक्त वही जो हर जगह हर कण में भगवान का दर्शन करता हो.
दोस्तों अभी आपको पता चल ही गया होगा की भगवान् हर कण में है. यह नामदेव जी की कथा श्री अनुरुद्धाचार्य जी के एक सत्संग से ली है, में उनको धन्यवाद करता हु इस सुन्दर कथा को उन्होंने अपने श्री मुख से कही है. आप उनका इस कथा का विडियो भी देख सकते है जो Youtube पर उपलब्ध है .
भगवान के नाम में कितनी शक्ति है ?
भगवान के नाम में कितनी शक्ति है इसे हम एक कथा के द्वारा समझेंगे. यह कथा देवी विश्वेश्वरी जी की कथा से ली गई है ।जिनका वीडियो आप उनके नाम पर क्लिक कर के देख सकते है । काशी एक बड़ा राज्य था , तो एकदिन काशी नरेश भगवान् राम जी के दर्शन के लिए अयोध्या पहुंचे .सभा लगी हुई थी. भगवान सिंहासन पर आरूढ़ (बैठे) थे ,हनुमानजी बैठे हुए थे और विश्वामित्रजी, वशिष्टजी और सारी सभा मंत्रिगनोसे भरी हुई थी. जैसे ही कशी नरेश सभा में प्रवेश करने वाले थे तो उन्हें नारद जी मिल गए. काशीनरेश ने उन्हें प्रणाम किया तो नारदजी ने उन्हें कहा की भगवान के दर्शन के लिए जा रहे हो. काशीनरेश ने कहा : हा. ठीक है जाओ जाओ लेकिन हमारी एक बात याद रखना और जैसा हम कह रहे है वैसा ही कहना ऐसा नारदजी ने कहा.
काशीनरेश : ठीक है, क्या करना है ?
नारदजी बोले : सबको प्रणाम करना ,रामजी , लक्ष्मणजी को ,भरत जी को लेकिन विश्वामित्र जी को आपको प्रणाम नहीं करना .बाकि सारी सभा को प्रणाम करना।
काशीनरेश बोले : विश्वामित्रजी क्रोधी महात्मा है की अगर मैंने उन्हें प्रणाम नहीं किया तो वे मुझे श्राप दे देंगे।
नारदजी : आप उसकी चिंता मत करिये,में तुम्हे वचन देता हु की आप का बाल भी बाक़ा नहीं होगा। लेकिन जैसा में कहू वैसा करना
काशीनरेश को लगा ,नारदजी इतने विश्वास से कह रहे है तो में उनके अनुसार ही करता हु।
काशीनरेश का सभा में प्रवेश हुआ रामजी को प्रणाम किया, माता जानकी को प्रणाम किया, वशिष्टजी को प्रणाम किया ,सबको प्रणाम किया केवल विश्वामित्रजी को नहीं किया. अब विश्वामित्रजी की इतनी अवहेलना, इतना बड़ा अपमान ,सबको प्रणाम किया लेकिन विश्वामित्रजी को नहीं किया. यह सब देखकर वे क्रोधित हुए , यह देखकर काशीनरेश वहासे भाग निकले, ... भागते भागते वे नारद जी के पास आए और उनसे कहने लगे कि हमें बचाइए हमारी रक्षा कीजिए , आपके कहने से ही हम इस दुविधा में फसे है। तभी वे कहते की तुम्हे केवल श्री हनुमान जी की मां अंजनी ही बचा सकती है।
तभी वे माता अंजनी के पास गए और उनके चरण पकड़कर कहने लगे मां बचाइए रक्षा कीजिए तभी माता ने काशीनरेश को अभय ( आशीर्वाद ) दिया .उसके उपरांत माता पूछती है की तुम्हे डर किसका है, कौन तुम्हे मरने वाला है. तब काशीनरेश ने कहा की भगवन ने प्रतिज्ञा की है की शाम होते होते हमें मार देंगे .यह सब सुनने के बाद माता सोचने लगी की रामजी जिसके लिए धनुष उठा चुके हो उन्हें कौन बचा सकता है .तभी माता को याद आया हनुमान जी का स्मरण किया .हनुमानजी माता के स्मरण करते ही तुरंत उनके चरणों में आ गए .उन्हें प्रणाम किया और उन्होंने कहा ... माता क्या आपने मुझे बुलाया ..माता कहती है ...हनुमान मुझे तुझसे एक वचनं चाहिए . हनुमान जी ने हाथ जोड़े ..माँ आप जो आदेश करे में उसका पालन करूँगा , यह मेरा धर्म है. अंजनी माता ने कहा नहीं नहीं आज आदेश नहीं मुझे वचन दो की में जो कहूँगी वह करना ही है . सो हनुमान जीने वचन दे दिया . अंजनी माता ने कहा...(सामने काशीनरेश की और इशारा करते हुए) देख यह मेरी शरण में आया है और इसे मैंने वचन दिया है ... बड़े से बड़ा व्यक्ति भी इसका शत्रु हो तो भी इसका प्राणांत ( मरना ) नहीं होना चाहिए. इसके प्राणों की रक्षा तुम्हे करनी है . सो माता ने जब वचन ले लिया तो हनुमान जी बोले ठीक है. लेकिन यह तो बताओ की इसे संकट किससे है , इसे कौन परीशान कर रहा है .अंजनी माता ने कहा... आपके आराध्य भगवान श्री राम ने संध्या होते होते इसका प्राणांत करना है यह प्रण किया है. तो हनुमान जी महाराज को खुद पसीना आ गया की राम जी ने सकल्प किया है. तभी हनुमान जी बोले ... माताजी आपने एक सेवक और उसके स्वामी को आमने सामने कर दिया , में भला रामजी से कैसे बचाऊंगा...अंजनी माता ने कहा ... यह तुम जानो...पर तुमने मुझे वचन दिया है की काशीनरेश को कुछ होने वाला नहीं .हनुमान जी ने माता के चरणों में प्रणाम किया और भगवान् का नाम लेकर काशीनरेश को अपने साथ सरयू के किनारे लेकर आये. उन्हें सरयू नदी के अन्दर गले तक पानी आ जाये वहा तक ले गए. और उन्हें बोले की एक क्षण के लिए भी राम नाम रटना मत छोड़ना यह तुम्हे में मंत्र दे रहा हु. राम नाम लेते रहना . ठीक है काशीनरेश ने कहा ... बिलकुल हम पूर्ण एकाग्रता के साथ राम नाम लेंगे. काशीनरेश राम नाम जपने लगे .कुछ समय बाद भगवान को सुचना मिली की काशीनरेश अयोध्या के बगल में ही सरयू में खड़े है. तभी भगवान् राम सरयू के घाट पर आये है. काशीनरेश को लक्ष करके राम जी ने बाण मारा . हनुमान जी घाट पर ही बैठे है .आँख बंद है राम जी आ गए यह देख तो लिया लेकिन सामने से दिखाते नहीं है की उन्होंने राम जी को देख लिया . हनुमान जी की आँख बंद है और राम नाम का जप भी चल रहा है और काशीनरेश का भी चल रहा है. राम जी ने बाण मारा और राम जी बाण भी अमोघ है यानि एक बार वः छुट गया तो लक्ष को भेद कर ही वापस आता है. पर आज उल्टा हो गया. राम जी ने बाण मारा लेकिन काशीनरेश के शारीर को भी छो नहीं पाया और काशीनरेश की परिक्रमा करके भगवान् के पास लौट कर भगवान् के तरकश में आ गया . वशिष्ट जी खड़े है , विश्वमित्र जी खड़े है. अनेक अनेक देवता लोग आ गए यह सब देख कर वे सोचने लगे की यहाँ हो क्या रहा है . और हनुमान जी आँख बंद किये राम राम का जप कर रहे है .हनुमान जी ने एक आँख खोल कर देख लिया की एक बाण तो वापस आ गया मतलब राम नाम का प्रभाव तो हो रहा है. भगवान् ने लगातार बाण छोड़े. विश्वामित्र जी ने कहा राम यदि आज तुमने संकल्प पूरा नहीं किया तो मुझसे ज्यादा क्रोधी महात्मा और कोई नहीं है, में श्राप दे दूंगा. राम जी बोले महाराज में पूरी कर रहा हु लेकिन आज मेरा बन ही काम नहीं कर रहा . बन जाता है लेकिन काशीनरेश की परिक्रमा करके वापस आ जाता है. संध्या हो गयी , सूर्यास्त हुआ और जैसे ही सूर्यास्त हुआ नारद जी आये भगवान् के पास. भगवान् उदास हो गए की आज उन्हेंने संकल्प की पूर्ति नहीं की .आज मैंने जो प्रतिज्ञा की थी वो पूरी नहीं हुई .तो श्री राम जी हाथ जोड़कर विश्वामित्र जी से बोले की महाराज आज में बहोत शर्मिंदा हु ... आज में प्रतिज्ञा को पूरा नहीं कर पाया. तबतक नारद जी आये और उन्होंने भगवान् को कहा की आपको शर्मिंदा होने की जरुरत नहीं है .आप पहले पूरी घटना तो समझलो .आज आपका बाण क्यों नहीं काम कर रहा , क्योकि सामने आपके नाम का कवच पहन कर के खड़े है काशीनरेश. तब उस समय हनुमान जी ने देखा की सूर्यास्त हो गया तो हनुमान जी काशीनरेश का हाथ पकड़कर बाहर लाये. और धीरे से कान में कह दिया की भगवान् के चरण पकड ले. तभी काशीनरेश ने श्री राम जी को साष्टांग दंडवत किया. बादमे विश्वामित्र जी से क्षमा याचना की और कहा महाराज मुझसे भूल हो गयी लेकिन मैंने जो किया वो कराया नारद जी ने. मैंने अपनी मर्जी से कुछ नहीं किया . नारद जी ने सभी देवताओ के सामने त्रिभुवन में यह घोषणा की महाराज यह लीला इसलिए जरुरी थी की जो लोग राम नाम को सहज मानते है , जो लोग राम नाम की महिमा नहीं जानते , उन लोगे के लिए यह जरुरी है.
दोस्तों इस तरह हमने जाना की भगवान् नाम में कितनी शक्ति है. में श्री अनुरुद्धाचार्य और देवी विश्वेश्वरी जी का आभारी हु जिनकी कथाओं के माध्यम से हम इस अनमोल ज्ञान को जान रहे है .