भगवान के बारे में जितना जानते है उतना कम ही लगता है. वैसे तो भगवान कृष्ण की कई कहानिया या लीलाए हमने टीवी या मोबाइल के जरिये देखि है. लेकिन शायद ही आप ने इस कहानी को सुना होगा ,इस कहानी को पढ़कर आपको बहोत आनंद आएगा तो चलिए शुरू करते है.
उस समय भगवान कृष्ण जी छोटे थे ,एक दिन उन्हें विचार आया की आज माखन की चोरी करते है तो वे सोचते है की दुसरो के घर में चोरी करने से पहले अपने ही घर चोरी करते है. क्योकि पहली बार चोरी कर रहे है पकडे जायेंगे तो लोग बोलेंगे की चोरी करनी आती नहीं तो क्यों चोरी कर रहे हो, वही अगर घर पर चोरी करते पकडे गए तो कोई कुछ नहीं कहने वाला . तो वो लग जाते है काम पर. उस समय माखन का काम बहोत चलता था तो सबके घरो में एक कमरा सिर्फ माखन का होता था जिस में माखन बनाने से लेकर उसे अच्छेसे रखा जाता था, वहा सारी माखन से भरी हंडिया राखी जाती थी. तो भगवान कृष्ण दोपहर का समय चुनते है चोरी करने के लिए क्योकि उस समय सब सोते थे. जैसे ही दोपहर होती है वे उस कमरे में जाते है वहा निचे एक हांड़ी रखी होती है उसे अपनी और खीचते है,खीचकर एक हाथ अन्दर डालते है.नवनीत निकालते है नवनीत यानि माखन का गोला .अब भोग लगाने ही वाले हे की भगवान के ठीक सामने एक शीशा (दर्पण) पड़ा होता है.तो आप सोच रहे होंगे की इसमें कोंसी बड़ी बात है शीशा तो हर घर में होता है. लेकिन भगवान् कृष्ण पहली बार शीशा देखते है. उन्हें नहीं पता की शीशा क्या होता है ,प्रतिबिम्ब क्या होता है.
और जिस व्यक्तिने आज तक शीशा नहीं देखा उसे ये भी नहीं पता होगा की वह कैसा दीखता है.तो भगवान् कृष्ण को भी नहीं पता की वे कैसे दीखते है.तो भगवान् ने सामने एक शीशा देखा ,उसे देखते ही भगवन अपना हाथ पीछे कर लेते है.भगवान् कहते है अच्छा माता बड़ी होशियार है.माता ने माखन की रखवाली के लिए पहले से ही कोई चोरो खडो रखो है और ये चुपचाप मेरी चोरी देख रहो है.अब ये मैया से जाकर केह्गो मैया कन्हैया चोरी करे .तो भगवान् आईने में अपने आप से ही बात कर रहे है क्योकि उन्हें लग रहा है की उनकी चोरी पकड़ी गयी है और उन्हें ये भी नहीं पता की जिसे वे आईने में देख रहे है वे खुद है.
कहानी में आगे बढ़ते है.
तो भगवान् अपने प्रतिबिम्ब से बात करते है .वे कहते है देख तू भी छोरो में भी छोरो ,तू मित्र है मेरो तू मेरी चोरी मैया से मत कहिये. ये जो माखन है न ये में अकेले नहीं खाओंगो तोहे भी खिलाओंगों. तो यह कहकर भगवान् हाथ आगे करते है ये ले खाले .अब भगवान् ने हाथ आगे किया तो प्रतिबिंब ने भी हाथ आगे किया तो भगवन के हाथ में माखन तो प्रतिबिंब के हाथ में भी माखन .भगवन कहते है तो अच्छा अब मेरी आत्मा ठंडी है गयी.में सोच रहो तो की में ही एक चोर हु लेकिन तू मेरे से भी पक्को चोर निकलो.तने पहले से ही माखन ले रखो है. भगवान कहते है चोर चोर मौसेरे भाई तू मेरी चोरी मत कहिये में तेरी चोरी नहीं कहू. अब ये सारे दृश्य यशोदा मैया और रोहिणी माता पीछे से देख रही है चुपचाप,उन्हें बड़ा आनंद आ रहा है ,की कन्हैया कैसे आईने में अपने आप से बात कर रहा है.जब बाते ख़तम हो गयी तो यशोदा मैया ने आवाज लगाई ...कन्हैया...
भगवान् करने तो चोरी आये है, जवाब नहीं देते. यशोदा मैया आती है और कहती है,कन्हैया यहाँ क्या कर रहा है.
भगवान् ने कहा ( देखिये जो चोरी करने आता है तो उसके मन में पहले से ही डर लगा रहता है).( भगवन सोचते है क्या बता ये इसने मेरा मित्र न बनके सारी बात मैया से कह्दी तो) तो भगवन कहते है ...मैया मोहे माखन का लोभ न है. मैया बोलती है लोभ न है तो इस कमरे में क्यों आया. तो भगवन बोलते है की मैया मेने सोचा की मेरी माता इतने मेहनत से माखन निकाले और ऐसे ही कोई चोर चक्कों माखन चुरा कर ले जाये ,तो में माखन की रखवाली खातिर इस कमरे में आयो. तो आकर मैंने क्या देखा, बोले मैया मैंने देखा एक कालो करुठो छोरो माखन चुरायो है .मैया कहती है कालो करुठो छोरो बोले हा ,मैया कहती है तूने उससे कुछ कहां नहीं भगवान् कहते है मैंने उससे कहा तू क्यों माखन चुराय तू मैया से माखन मांग ले ,तो मैया बोली तो उसने क्या किया ,मैया मैंने तो उसे इतना समजाया पर वो कालो करुठो छोरो में नंदराय को चोरो यो मेरो घर है और वो मेरे घर में मोहे आँख दिखाय. मैया बोलती है, अच्छा तो कहा है वो कालो करुठो छोरो. तो ठाकोर जी (भगवान् कृष्ण ) मैया का हाथ पकड़ कर लाते है और उस कांच के सामने खड़े हो जाते है , और कहते है ये रो ,ये देख कालो करुठो छोरो ,तो मैया कहती है...कन्हैया ये कालो करुठो छोरो तू ही है.भगवान कहते है में कैसे ...,मैया बोलती है इसे शीशा कहते है ये दर्पण है.इसमें हम अपना ही प्रतिबिम्ब देखते है , चल तूने अपने आप को नहीं देखा तू डर रहा होगा ,यशोदा मैया भगवान को गोद में ले लेती है फिर कहती है ये देख मैंने तुझे गोद में लिया तो उसकी माँ में भी उसे गोद लिया फिर कहती है उसकी माता और तेरी माता एक थोड़ी है,पर देख हमारे चेहरे मिल रहे है.भगवान् कहते है हां...तो माता कहती है देख इसे दर्पण (शीशा) कहते है .इसमें हम अपने आप को ही देखते है.अब चोरी की बात तो पता नहीं कहा खो गयी अब माता यशोदा पुरे ब्रज में बता रही है, हर घर जाकर की आज कन्हैया ने ऐसी लीला की है.वो अपने ही दर्पण से बाते कर रहा है. और भगवन के मन में बात बैठ गयी की पहला जो प्रयास था मेरा माखन चुराने का वो तो विफल गया. क्योकि भोग तो लग नहीं पाया भगवान् को. कोई बात नहीं अगली बार कोशिश करेंगे .
इस तरह भगवन कृष्ण ने पहली चोरी की है.
आप सभी का धन्यवाद की आप अभी तक इस कहानी को पढ़ रहे है.और में आपको बताना चाहूँगा की यह जो कहानी आप पढ़ रहे है यह कहानी" जाया किशोरी जी "के सत्संग से ली गयी है.